ताजा हिमाचली फिल्म पर कांग्रेस नेतृत्व के लिए आत्म चिंतन का विषय
आग भले ऊपर से ठंडी हो मगर राख में तपन बाकी !!!
काठ की हांडी कब तक बचेगी आग से, एक न एक दिन तो उसे जलना ही है। यह कहावत आज की स्थिति में हिमाचल में कांग्रेस की सुक्खू सरकार पर पूरी तरीके से सटीक बैठती है।
लोकसभा चुनाव के ठीक पहले कांग्रेस शासित राज्य हिमाचल में पिछले दो दिनों में जिस तरीके का नाटक हुआ है और उसके बाद में उस नाटक का अंत हुआ है, तो अंतिम सीन को देखकर सिर्फ एक ही लाइन कही जा सकती है कि आग आज भले ठंडी हो गई हो मगर इस चूल्हे की राख में तपन अभी बाकी है।
हिमाचल में आग की लपटे राज्यसभा चुनाव के दौरान जिस तरह से लपट लेकर आई। उसके लिए खुद कांग्रेस का केंद्रीय नेतृत्व जिम्मेदार है ना की राज्य के नेता। यह आग सुखविंदर सिंह सुक्खू की ताजपोसी के समय से ही जलनी शुरू हो गई थी। मगर कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने कभी भी इस आग को बुझाने का काम नहीं किया और खुद ही बैठे बिठाये भाजपा को खेल में विनर बनने का मौका दे दिया। आग अंदर ही अंदर जलती रही। कई बार आल्हा कमान को इस आग की तपन महसूस भी हुई। मगर हर बार पानी की हल्की सी छीटें डालकर उसको ठंडा करने की शायद ही कोई कोशिश की गई हो ऐसा लगता तो नही । मगर जिस तरीके से ज्वालामुखी अंदर ही अंदर जलता रहता है, यह आग भी उसी तरीके से अंदर ही अंदर जलती रही और समय आने पर अचानक से इसमें विस्फोट हुआ। उस विस्फोट की तपन दिल्ली तक महसूस की गई।
क्या हुआ पूरा घटनाक्रम
दरअसल राज्यसभा के चुनाव होने थे। हिमाचल में भी एक सीट भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल पूरा होने की वजह से खाली हो रही थी। मगर कांग्रेस नेतृत्व शायद इस बात से बेखबर था या खबर होने के बावजूद भी हिमाचल की तरफ उनका ध्यान नहीं था। तभी बार-बार मुख्यमंत्री की शिकायतों के बावजूद भी किसी भी कद्दावर नेता ने सुलह समझौते की कभी कोई जरूरत नहीं समझी। अगर दोनों पक्षों को बैठाकर सुलह समझौते कर दिए जाते तो शायद आज कांग्रेस के दामन पर आग की जो लपटे पहुंच गई हैं इसकी लपटे ना पहुंचती।
भाजपा कहां मौका छोड़ती है
विपक्ष किसी भी राज्य का हो, किसी भी दल का हो, मौके की तलाश में हमेशा रहता है क्योंकि हिमाचल में भारतीय जनता पार्टी ही विपक्ष में है इसलिए नाम उन्हीं का आएगा बाकी किसी का नहीं। भाजपा को शुरू दिन से इस बात की जानकारी थी कि मुख्यमंत्री की अपने विधायकों के साथ सब कुछ ठीक नहीं है। इस बात की जानकारी मिलते ही लोकल नेता से लेकर केंद्रीय नेतृत्व तक की आंखें हर वक्त खुली रहती थी कि जैसे ही कोई मौका मिले और एक बार फिर इस राज्य में भाजपा सरकार की वापसी हो जाए। मौका मिला भी राज्यसभा चुनाव में भाजपा ने उस मौके को पूरी तरीके से भुनाया भी और 6 कांग्रेसी विधायकों के साथ-साथ तीन निर्दलीय विधायकों के वोट अपने पक्ष में डलवा कर के अपने उम्मीदवार को जितवा दिया। जबकि पर्चा दाखिल करने के वक्त कांग्रेस उम्मीदवार के पास में 40 वोटो का समर्थन हासिल था क्योंकि राज्यसभा चुनाव में कोई भी विधायक किसी को भी वोट दे सकता है यहां पर विप लागू नहीं होता। जिसका फायदा भाजपा ने बखूबी उठाया और वोट डलवाने के साथ ही इन सभी 9 विधायकों को लेकर भाजपा शासित राज्य हरियाणा में सुरक्षित पहुंचा दिया।
विधायक करते रहे हेलीकॉप्टर की सैर
हरियाणा के बागी विधायक पहले शिमला से पंचकूला फिर पंचकूला मे सरकारी गेस्ट हाउस की महेमानवाजी ली , फिर 3 स्टार होटल और फिर सुबह को पंचकूला से शिमला, फिर शाम होते होते शिमला से वापस पंचकूला हेलीकॉप्टर की सैर करते हुए नजर आए।
क्या होगा बागियों का
अंतिम समाचार मिलने तक विधानसभा स्पीकर ने सत्ता पक्ष से बागी हुए छह विधायकों के बारे में फैसला सुरक्षित रख लिया है। संभावना व्यक्त की जा रही है कि 6 विधायक जिन्होंने राज्यसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ वोट दिया है उनकी सदस्यता जा सकती है। हालांकि अभी यह सब कुछ निर्णय विधानसभा स्पीकर पर है कि वह इस पर क्या निर्णय लेते हैं।
कांग्रेस नेतृत्व के लिए हिमाचल की यह फिल्म आत्म चिंतन का विषय है। एक तरफ तो कांग्रेस नेतृत्व एक लंबी लड़ाई लड़ने के लिए तैयार हो रहा हैं और दूसरी तरफ एक छोटी सी लड़ाई को जीतकर बरकरार रखने में भी कांग्रेस नेतृत्व की सांस फूल रही है। कांग्रेस नेतृत्व को इस घटना पर आत्म चिंतन जरूर करना चाहिए। वरना तो आखिर मे एक ही लाइन
होएहै वही जो राम रचि राखा ,,
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