आज के माहौल में ईमानदार ,सच्चा एवं सक्षम व्यक्ति चुनाव लड़ने की सोच भी नहीं सकता – ओ पी सिहाग
हरियाणा में विधानसभा का चुनाव सम्पन्न हो गया है । लगभग पिछले 40 दिनों की उठा पटक तथा शोर शराबे के बाद कल से पंचकूला सहित पूरे प्रदेश में शांति का माहौल वापिस आया है। इस दौरान जहां चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारो तथा उनके समर्थक चुनाव जीतने के लिए दिन रात एक किए हुए थे वही सरकारी मशीनरी भी शान्ति पूर्वक चुनाव कराने के लिए जी तोड़ मेहनत कर रही थी। आप लोगों को याद होगा काफी सालों पहले विभिन्न पार्टियों के नेता तथा समर्थक चुनाव जीतने के लिए बूथ कैप्चरिग तथा गुंडागर्दी का सहारा लेते थे। लेकिन धीरे-धीरे चुनाव आयोग की सख्ती तथा विभिन्न पार्टियों के नेताओं तथा कार्यकर्ताओं में आई समझ के बाद वो सब बाते हरियाणा में अब लगभग इतिहास हो गई हैं। लेकिन अब भी कुछ बड़ी बड़ी राजनीतिक पार्टियों के धनकुबेर उम्मीदवार चुनाव जीतने के लिए भ्रष्ट तरीके से कमाए गए अकूत धन दौलत के दम पर मतदाताओं के वोटों को खरीदने तथा महँगी अँग्रेजी शराब की पेटिया भेज कर अपने खेमे में लाने का प्रयास करके सरे आम प्रजातंत्र को कलंकित करने का काम करते हैं। अगर मैं पंचकूला हल्के की बात करूँ तो आ रही मीडिया रिपोर्टस तथा शहर में हो रही चर्चाओं के मुताबिक दो बड़ी पार्टियों के उम्मीदवारों की तरफ से करोडों रुपये नकद तथा लाखों रुपये की शराब की पेटिया अपनी जीत सुनिश्चित करने के लिए वोट खरीदने हेतू बांटी गई हैं। उदाहरण के तौर पर चुनाव प्रक्रिया के दौरान बीजेपी के एक बड़े नेता के घर से पुलिस ने 150 से ज्यादा अंग्रेजी दारू की पेटिया बरामद की थी जो वोट खरीदने के लिए रखी थी । अब इस बात से अंदाजा जा सकता है कि कितने बड़े पैमाने पर शराब बांटी गई होगी। अब सवाल उठता है कि क्या पैसा व शराब बांटकर वोट खरीदना नैतिक है या अनैतिक ? दोषी कौन है जो दारू तथा पैसे के बदले अपना वोट के साथ अपना ईमान भी बेचता है या वो भ्रष्ट नेता जो अपने दो नंबर के कमाए गए करोडों रुपये से उन गरीब लोगों की गरीबी तथा मजबूरी का फायदा उठाकर उनका वोट खरीदता है ? इसके लिए क्या हमारा सिस्टम दोषी है? या सामाजिक रूप से ये स्वीकारता की “जंग और मुहब्बत” में सब जायज है की कहावत। किसी भी तरह से चुनाव को जीतना चाहे धन या शराब बांटकर या अन्य अनैतिक तरीके अपना कर ।
हम सब को पता होते हुए भी कि किस तरह हमारे नाक के नीचे ऐसे भ्रष्ट नेता चुनाव जीत जाते हैं और हम सब उनका अभिनन्दन करते हैं,उनकी महिमामंडित करते हैं। वो फिर मंत्री बन कर जो पैसे चुनाव जीतने के लिए वोट खरीदने पर खर्च किए थे उससे कई गुना अधिक पैसे अपने प्रभाव का इस्तेमाल करके कमाते हैं। ये चक्र सालों से चल रहा है अगर हम सबमें चेतना नहीं जागी तथा हमारी आत्मा यू ही सोई रही,कुछ लोग यू ही पैसे तथा शराब के बदले अपना वोट बेचते रहे तो ये भ्रष्ट राजनेता नेता तथा राजनीतिक पार्टियां ऐसे ही अनैतिक तरीके से सत्ता में आते रहेंगी। फिर हम क्राइम फ्री सोसाइटी तथा सम्पूर्ण विकास के लिये तरसते रहेंगे। अगर यही हालात रहे तो कोई भी ईमानदार,सच्चा एवं सक्षम व्यक्ति कभी भी चुनाव लड़ने की हिम्मत ही नहीं कर पाएगा ?
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