350 वां बलिदान दिवस : मृत्यु का वीरता से वरण करने वाले महान संत गुरु तेग बहादुर जी
जब भी भारत में शौर्य, वीरता जन सेवा,करुणा व जीवंतता की चर्चा होती है, सिख धर्म के महान गुरु व मनीषी सहज ही याद आ जाते हैं। सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की श्रृंखला में गुरु तेग बहादुर जी ऐसे ही वीर पुरुष थे,जिन्होंने देश के हिंदुओं की रक्षार्थ, धर्म की रक्षार्थ, मात्र 54 वर्ष की उम्र में अपने प्राणों का बलिदान हंसते-हंसते कर दिया और क्रूर मुगल शासक औरंगजेब की क्रूरता, अत्याचार व बर्बरता को बौना साबित कर दिया।
21 अप्रैल 1621 को अमृतसर में उनका जन्म हुआ था, उन दिनों अमृतसर लाहौर प्रांत का एक नगर था। उनके पिता सिखों के छठवें गुरु श्री हरगोविंद जी थे। माता का नाम माता ननकी जी था। माता-पिता ने अपने पुत्र का नाम त्यागमल रखा शायद उन्हें पूर्वाभास हो गया था कि उनका यह पुत्र त्याग के श्रेष्ठतम कीर्तिमान स्थापित कर अपने प्राणों का भी बलिदान धर्म के लिए कर देगा। माता-पिता के पांच पुत्रों में ये सबसे छोटे पुत्र थे। सिख गुरु परिवार में जन्म लेने के कारण उन्हें बचपन से ही वीरता, शौर्य, घुड़सवारी, तलवारबाजी, तीरंदाजी की शिक्षा दी गई। समय के साथ-साथ बड़े होने पर माता गुजरी के साथ उनका विवाह हुआ व 1666 में उनके परिवार में एक यशस्वी पुत्र का जन्म पटना में हुआ, जो आगे चलकर सिख धर्म के दसवें गुरु गोविंद सिंह जी कहलाए।
20 मार्च 1664 को उनको नौवें गुरु के रूप में मनोनीत किया गया, उनके पूर्व गुरु हरि कृष्ण जी आठवें गुरु थे। 1665 में उन्होंने आनंदपुर साहिब नगर की स्थापना की। उन्होंने देश का भ्रमण किया जिसमें किरतपुर, आनंदपुर साहिब, रोपड़, सैफाबाद, कुरुक्षेत्र, प्रयाग बनारस, पटना, आसाम आदि स्थान प्रमुख है।
इन स्थानों पर जाकर उन्होंने जन-जन के मन में गरीबों की सहायता, मन में धैर्य और वीरता का समावेश करना व शौर्य के गुण को धारण करना, जन सेवा के करने के भाव जगाए। जनसेवा के बहुत से कार्य उनके द्वारा किए गए जिनमें पीने के पानी के लिए कुएं खुदवाना, उनके आवास की व्यवस्था करना, लोगों को संस्कार और रोजगार देने के कार्य शामिल थे। वे चाहते थे कि हर मानव एक दूसरे की सहायता करके आगे बढ़े। उन्हीं दिनों क्रूर मुगल शासक औरंगजेब के अत्याचारों से देश दहल रहा था, उसने फरमान जारी किया कि हिंदुओं को जबरदस्ती इस्लाम कबूल कराया जाए। हिन्दुओं ने गुरु तेग बहादुर जी से प्रार्थना की कि उनकी रक्षा करें गुरु तेग बहादुर बचपन से ही निडर थे, धर्म और सेवा के संस्कार उनके रोम रोम में समाहित थे, औरंगजेब का फरमान उन तक भी पहुंचा, उन्होंने बड़े ही सहजता से कहा शीश कटा सकते हैं केश नहीं। यानि कि प्राणों का बलिदान देना पड़े तो दे सकते हैं, अपने धर्म का परिवर्तन नहीं करेंगे। यह वर्ष 1675 था। उनकी यह दृढ़ता औरंगजेब को नागवार गुजरी। उसने उनको बंदी बनाकर उनकी हत्या का फरमान जारी कर दिया। दिल्ली चांदनी चौक में उनको बंदी बनाकर लाया गया जल्लाद जलाल जलालुद्दीन ने अपनी निर्मम तलवार से उनका सिर धड़ से अलग कर दिया। यह दिन था 24 नवंबर 1675 जो इतिहास में काले एवं क्रूर पृष्ठ के रूप में अंकित हो गया। निर्भय आचरण, धार्मिक अडिग़ता, शौर्य और वीरता के साथ उन्होंने राष्ट्रवाद और धर्म प्रेम की नई इबारत लिखी।
दिल्ली, चाँदनी चौक में जहां आज शीशगंज गुरुद्वारा है, उसी जगह पर उन्होंने बलिदान दिया था। उनके एक शिष्य ने उनकी मृत देह को मुगलों के चंगुल से निकालकर रकाबगंज साहिब में उनका अंतिम संस्कार किया। इस तरह एक बहादुर संत जो धर्म व राष्ट्र के प्रति समर्पित थे ने अपना बलिदान कर दिया। उनके निधन के पश्चात उनके ही पुत्र श्री गुरु गोविंद सिंह जी को मात्र 9 वर्ष की उम्र में सिख धर्म के 10वें गुरु का दायित्व सौंपा गया। गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान हिंदुस्तान के लिए था हिंदुओं के लिए था इसलिए उनको हिंद की चादर, के नाम से भी सुशोभित किया गया। चांदनी चौक में उनके बलिदान की स्मृति में 1783 में उनके ही अनुयाई बघेल सिंह ने एक गुरुद्वारा बनाया। मात्र 8 माह की अवधि में इसका निर्माण किया गया। 1857 में इसका पुन: विस्तार हुआ और 1930 में इसे वर्तमान स्वरूप मिला।
भारतीय सेना की सिख रेजीमेंट राष्ट्रपति को सलामी देने के बाद शीशगंज गुरुद्वारे में सलामी देकर गुरु तेग बहादुर जी के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन कर, उनके महान बलिदान को नमन करती है।
गुरु तेग बहादुर जी एक वीर होने के साथ-साथ आध्यात्मिक मनीषी भी थे। गुरु ग्रंथ साहिब में उनके 115 भजनों का संकलन किया गया है। उनका 400 वां प्रकाश वर्ष 2022 में मनाया गया। जिसमें देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने श्रद्धा से भाग लिया। उनकी स्मृति में चाँदी का एक स्मारक सिक्का और डाक टिकट जारी कर एक महान योद्धा को, एक महान गुरु को नमन किया।
24 नवंबर 2025 को उनका 350 वां बलिदान दिवस है। भारत मां के इस महान सपूत को कृतज्ञ राष्ट्र का कोटिश: नमन। इसी भावना के साथ कि हम सब नैतिक मूल्यों को अपना कर शौर्य,वीरता के साथ-साथ देश, धर्म, मानव व मानव मूल्यों की प्रगति हेतु एकजुट होकर आगे बढ़ेंगे।
इंजी. अरुण कुमार जैन-विनायक फीचर्स





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