ग्रहणी रोग: लक्षण, प्रकार और आयुर्वेदिक उपचार
ग्रहणी रोग एक चिरकारी (दीर्घकालिक) रोग है, जो शरीर में पाचन से संबंधित विकारों का संकेत देता है। इस रोग में मल का अनियमित रूप से त्याग होता है—कभी पचाया हुआ, कभी बिना पचा, कभी पतला, और कभी बिल्कुल नहीं निकलता। यह रोग वात, पित्त, कफ और सन्निपात दोष के आधार पर चार प्रकार का होता है।
ग्रहणी रोग के सामान्य लक्षण
ग्रहणी रोग के कुछ प्रमुख लक्षण इस प्रकार हैं:
- शरीर में शिथिलता (कमजोरी)
- भोजन का देर से पचना (एसिडिटी)
- खट्टे डकार आना
- मुंह से लार का निकलना
- प्यास अधिक लगना और चक्कर आना
- वमन होना (उल्टी आना)
- पेट में गुड़गुड़ाहट और दर्द होना
ग्रहणी रोग के प्रकार
1. वातज ग्रहणी
इस प्रकार के रोग में वात दोष की प्रधानता होती है। इसके लक्षणों में आंखों के सामने अंधेरा छाना, कानों में आवाज सुनाई देना, पसलियों और टांगों में दर्द होना, भूख और प्यास अधिक लगना, और मल का पतला या सूखा होना शामिल हैं। इस अवस्था में रोगी को हृदय विकार, अर्श, पांडुरोग और अन्य वात से जुड़ी बीमारियों की संभावना भी रहती है।
2. पित्तज ग्रहणी
पित्तज ग्रहणी में रोगी का वर्ण पीला पड़ जाता है, और मल नीला या पीला हो जाता है। मल दुर्गन्धित होता है और रोगी को खट्टे डकार और प्यास की समस्या रहती है। इसके अलावा, हृदय और कंठ में जलन का अनुभव होता है।
3. कफज ग्रहणी
इसमें रोगी को भोजन के पचने में कठिनाई होती है, साथ ही वमन, अरुचि, बार-बार थूक आना, हृदय में भारीपन, और उदर में भारीपन का अनुभव होता है। रोगी को मधुर या दूषित डकारें भी आती हैं और वह मानसिक रूप से दुर्बल महसूस करता है।
4. सन्निपातज ग्रहणी
सन्निपातज ग्रहणी में तीनों दोषों के लक्षण मिलते हैं। रोगी को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है जैसे वात, पित्त, और कफ के लक्षणों का सम्मिलन।
आयुर्वेदिक उपचार
1. आमदोष का पाचन
- शुंठी, अतीश, नागरमोथा: 1 चम्मच सुबह और शाम लें।
- दाढीमाष्टक चूर्ण: 1 चम्मच सुबह और शाम लें।
- कूटजारिष्ट: 3 चम्मच समान मात्रा में जल मिलाकर लें।
- चित्रकादि वटी: 2 गोलियां चूसें।
- बेलफल का सेवन और ताजा मठ्ठा पीना लाभकारी होता है।
- अनार के बीज चबाकर खाएं।
2. अन्य औषधियाँ
- मुस्तकारिष्ट, अभ्यारिष्ट, दशमूलारिष्ट: ये औषधियाँ पाचन में सुधार करती हैं।
- कुटजघनवटी, संजीवनी वटी, हिंगवाष्टक चूर्ण: इनसे ग्रहणी रोग के लक्षणों में राहत मिलती है।
- लवण भास्कर चूर्ण, पंचकोल चूर्ण: पाचन को दुरुस्त करते हैं और अपच की समस्या को दूर करते हैं।
योग और पथ्य
- प्रतिदिन योगाभ्यास करें और सात्विक भोजन का सेवन करें। पथ्य आहार ग्रहणी रोग के उपचार में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
इस प्रकार, आयुर्वेदिक चिकित्सा के माध्यम से ग्रहणी रोग को नियंत्रित और ठीक किया जा सकता है। साथ ही, नियमित योग और उचित आहार ग्रहणी रोग से बचाव में भी सहायक होते हैं।
डा. कनिका अग्रवाल
आयुर्वेदिक सलाहकार
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