गोपाष्टमी कब ? अनुष्ठान और महत्व पूरी जानकारी
कार्तिक शुक्ल अष्टमी की शुरुआत 8 नवंबर को रात 11.56 बजे से हो रही है और इस तिथि का समापन अगले दिन 9 नवंबर को रात 10.45 बजे होगा। उदयातिथि में यह त्योहार 9 नवंबर को मनाया जाएगा।
गोपाष्टमी – अनुष्ठान और महत्व
कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष के दौरान आठवें दिन गोपाष्टमी का त्यौहार मनाया जाता है। यह गायों की पूजा और प्रार्थना करने के लिए समर्पित एक त्यौहार है। इस दिन, लोग गाय माता (गोधन) को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं और गायों के प्रति कृतज्ञता और सम्मान प्रदर्शित करते हैं जिन्हें जीवन देने वाला माना जाता है। हिंदू संस्कृति में, गायों को ‘गौ माता’ कहा जाता है और उनकी देवी की तरह पूजा की जाती है। बछड़ों और गायों की पूजा और प्रार्थनाऐं करने का अनुष्ठान गोवत्स द्वादशी के त्यौहार के समान है जोकि महाराष्ट्र राज्य में मनाया जाता है।
गोपाष्टमी का महत्व क्या है?
गायों को हिंदू धर्म और संस्कृति की आत्मा माना जाता है। उन्हें शुद्ध माना जाता है और हिंदू देवताओं की तरह उनकी पूजा भी की जाती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि कई देवियां और देवता एक गाय के अंदर निवास करते हैं और इसलिए गाय हिंदू धर्म में एक विशेष महत्व रखती हैं। गाय को आध्यात्मिक और दिव्य गुणों का स्वामी माना जाता है और यह देवी पृथ्वी का एक और रूप है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार, गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर गाय की पूजा करने वाले व्यक्तियों को एक खुशहाल जीवन और अच्छे भाग्य का आशीर्वाद मिलता है। यह भक्तों को उनकी इच्छाओं को पूरा करने में भी मदद करता है।
गोपाष्टमी की कहानी क्या है?
गोपाष्टमी के उत्सव से जुड़े कई कहानियां हैं। हिंदू शास्त्रों के अनुसार, गायों को भगवान कृष्ण की सबसे प्रिय माना जाता है। मान्यताओं के अनुसार, गोपाष्टमी वह विशिष्ट दिन था जब नंद महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण और भगवान बलराम को गायों को चराने के लिए पहली बार भेजा, जब वे दोनों पागांडा उम्र 6-10 साल की आयु में प्रवेश कर रहे थे। और इस प्रकार, इस विशेष दिन से, वे दोनों गायों को चराने के लिए जाते थे।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान इंद्र अपने अहंकार के कारण वृंदावन के सभी लोगों को अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहते थे। इसलिए, उन्होंने बृज के पूरे क्षेत्र में बाढ़ लाने का फैसला किया ताकि लोग उनके सामने झुक जाएं और इसलिए वहां सात दिन तक बारिश हुई।
भगवान श्रीकृष्ण को एहसास हुआ कि क्षेत्र और लोग खतरे में हैं, अतः उन्हें बचाने के लिए उन्होंने सभी प्राणियों को आश्रय देने के लिए गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठा लिया। आठवें दिन, भगवान इंद्र को उनकी गलती का एहसास हुआ और बारिश बंद हो गई। उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण से क्षमा मांगी। भगवान इंद्र और भगवान श्रीकृष्ण पर सुरभी गाय ने दूध की वर्षा की और भगवान श्रीकृष्ण को गोविंदा घोषित किया जिसका मतलब है गायों का भगवान। यह आठवां दिन था जिसे अष्टमी कहा जाता है, वह विशेष दिन गोपाष्टमी के रूप में मनाया जाता है।
गोपाष्टमी के अनुष्ठान और उत्सव क्या हैं?
गोपाष्टमी की पूर्व संध्या पर, भक्त सुबह जल्दी उठते हैं और गायों को साफ करते हैं और स्नान करते हैं।
यह हिंदू अनुष्ठान इस दिन बछड़े और गायों की एक साथ पूजा व प्रार्थना करने का दिन है।
पानी, चावल, कपड़े, इत्र, गुड़, रंगोली, फूल, मिठाई, और अगरबत्ती के साथ गायों की पूजा की जाती है। विभिन्न स्थानों पर, पुजारीयों द्वारा गोपाष्टमी के लिए विशिष्ट पूजा भी की जाती है।
गोपाष्टमी पूजा विधि (Gopashtami Puja Vidhi)
1. इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान करें।
2. गोपाष्टमी के दिन साफ-सुथरे कपड़े पहनें।
3. सूर्य देव को अर्घ्य दें।
4. बछड़े और गाय को स्नान कराएं।
5. इसके बाद गाय और बछड़ो का तिलक करें।
6. इस दिन दीपक जलाकर भगवान श्रीकृष्ण और गौ माता की आरती करें।
7. भगवान श्रीकृष्ण को माला और भोग प्रसाद चढाएं।
8. गाय को रोटी, गुड़, फल और मिठाई खिलाएं।
9. इसके बाद गऊ माता और भगवान श्रीकृष्ण का आशीर्वाद लें।
10. अंत में लोगों को अपनी श्रद्धा अनुसार दान
डा कनिका अग्रवाल
ज्योतिषाचार्य
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