खरी-खरी : क्या गणतंत्र दिवस मनाना औचित्यपूर्ण होगा बकौल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत द्वारा स्वतंत्रता को लेकर दिए गए बयान के मद्देनजर
नरेन्द्र मोदी की व्यक्तिश: गुलामियत बतौर आरएसएस प्रचारक तो समझी जा सकती है मगर बतौर भारतीय प्रधानमंत्री समझ से परे है। वह किसी भी भारतीय के गले नहीं उतर रही है। स्वतंत्र भारत के इतिहास में नरेन्द्र मोदी को छोड़कर एक भी ऐसा व्यक्ति प्रधानमंत्री नहीं हुआ है जो भारत की स्वातंत्रता – स्वाभिमानता को अपमानित होते हुए अंध-मूक-बधिर बना रहा हो, ना ही कोई किसी भी रजिस्टर्ड – अनरजिस्टर्ड संगठन के आगे घुटनाटेक हुआ हो जैसे पीएम नरेन्द्र मोदी अनरजिस्टर्ड संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के आगे दिखाई दे रहे हैं।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने बीजेपी शासित राज्य मध्यप्रदेश की इंदौर नगरी में आयोजित अहिल्योत्सव समिति के कार्यक्रम में सार्वजनिक बयान दिया कि देश को सच्ची आजादी अयोध्या में राम मंदिर प्राण-प्रतिष्ठा के दिन 22 जनवरी 2024 (माघ द्वादशी) को मिली है ना कि 15 अगस्त 1947 को (15 अगस्त 1947 को तो राजनीतिक आजादी मिली थी)। आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बयान के जरिए केवल आजादी पर ही उंगली नहीं उठाई है बल्कि उसने तो गणतंत्र – संविधान को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है।
*बकौल मोहन भागवत जब देश को 15 अगस्त 1947 को सच्ची आजादी मिली ही नहीं तो फिर 26 जनवरी 1950 को सच्चा संविधान भी लागू नहीं हुआ और ना ही सच्चा गणतंत्र लागू हुआ। मतलब बकौल आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत भारत में पिछले 78 सालों से मनाया जाने वाला स्वतंत्रता दिवस और 74 सालों से मनाया जा रहा गणतंत्र दिवस बेमानी है। *
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान को देशद्रोह की श्रेणी में रखा जाना चाहिए। मोहन भागवत के बयान को एक पखवाड़ा होने जा रहा है मगर अभी तक मोहन भागवत को ना तो सलाखों के पीछे डाला गया है ना ही एफआईआर दर्ज की गई है ना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाया गया है । अगर इस तरह का बयान कांग्रेस या विपक्षी दल के किसी नेता ने दिया होता तो आरएसएस और बीजेपी की फौज ने देशभर में बबाल काट दिया होता।
इतिहास के पन्नों को पलटा जाए तो आरएसएस ने पहले भी कई बार देश की अक्षुण अखंडता की जड़ों मठ्ठा डालने का काम किया है और भारत सरकार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ को दो बार प्रतिबंधित किया गया था। पहली बार होम मिनिस्ट्री की रिपोर्ट पर गृह मंत्री सरदार पटेल ने आरएसएस पर प्रतिबंध लगाया था। इसी तरह दूसरी बार भी गृह मंत्रालय के जरिए सामने आये दस्तावेजों के आधार पर 1975 में प्रतिबंधित किया गया था। मगर आज के दौर में आरएसएस की राजनीतिक विंग बीजेपी की सरकार चल रही है और बीजेपी सरकार में इतना साहस नहीं है कि वह आरएसएस प्रमुख के देशद्रोही बयान पर कार्रवाई कर सके। भारत सरकार का नम्बर तो बाद में आना चाहिए सबसे पहले तो मध्यप्रदेश की सरकार को ही मोहन भागवत पर वैधानिक दंडात्मक कार्रवाई करनी चाहिए थी।
सवाल उठना लाजिमी है कि 2025 की 26 जनवरी को मनाये जाने वाले गणतंत्र दिवस का क्या औचित्य होगा ? मोहन भागवत का यह बयान कहीं बीजेपी नेताओं द्वारा 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान अलग – अलग मंचों पर संविधान बदलने की तोता रटंत को पूरा करने की दिशा में आगे बढाया जाने वाला कदम तो नहीं है ! वैसे फिलहाल तो देशवासियों ने बीजेपी को 400 पार ना भेज कर 240 में समेट कर दो बैसाखियों पर खड़ा कर दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रति प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह का चरण चुंबन करना तो मजबूरीवश समझ के भीतर है मगर बीजेपी की बैसाखियों (चंद्रबाबू नायडू, नितीश कुमार, एकनाथ शिंदे, चिराग पासवान आदि) की क्या मजबूरी है जो वह देशद्रोही बयानों पर आंख – कान बंद करने वाली सरकार को समर्थन दे रहे हैं। क्या उनका भी मानना है कि देश को सच्ची आजादी 15 अगस्त 1947 की जगह 22 जनवरी 2024 (माघ द्वादशी) को मिली है क्योंकि इन नेताओं के द्वारा अभी तक आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत के बयान की न तो निंदा की गई ना ही गिरफ्तारी की मांग की गई और ना ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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