ऑनलाइन खरीदारी पर ‘सुविधा शुल्क’ : हर दूसरा ग्राहक परेशान
शुल्क की पारदर्शिता पर उठे सवाल
नई दिल्ली
ई-कॉमर्स और डिजिटल सेवाओं की दुनिया में ‘सुविधा शुल्क’ अब उपभोक्ताओं के लिए नई चुनौती बनता जा रहा है। एक हालिया सर्वेक्षण के अनुसार, दो में से एक उपभोक्ता का कहना है कि उन्हें अधिकांश ऑनलाइन खरीद पर यह अतिरिक्त शुल्क चुकाना पड़ता है। यह शुल्क अब सिर्फ टिकट बुकिंग या कुछ चुनिंदा श्रेणियों तक सीमित नहीं रह गया, बल्कि रोजमर्रा की जरूरतों से जुड़ी शॉपिंग, डिजिटल पेमेंट और क्विक डिलीवरी सेवाओं पर भी लागू हो गया है।
लोकल सर्कल्स द्वारा किए गए इस सर्वे में खुलासा हुआ कि 62% उपभोक्ताओं को टिकट या सेवाओं की ऑनलाइन बुकिंग के दौरान सुविधा शुल्क देना पड़ा, जबकि 37% उपभोक्ताओं ने बताया कि उनसे हर ऑनलाइन सेवा पर शुल्क वसूला गया। 52% ग्राहकों ने कहा कि उत्पादों की खरीद पर भी यह शुल्क आम हो गया है। वहीं 78% उपभोक्ता ऐसे प्लेटफॉर्म को प्राथमिकता देने की बात कर रहे हैं जो सुविधा शुल्क नहीं लगाते।
बाजार में सक्रिय बड़े प्लेटफॉर्म जैसे कि अमेज़न, स्विगी इंस्टामार्ट, ब्लिंकिट और जेप्टो ने हाल ही में प्रत्येक ऑर्डर पर 5 रुपये का मार्केटप्लेस शुल्क जोड़ना शुरू किया है। यह शुल्क अमेज़न प्राइम जैसे पेड मेंबरशिप ग्राहकों पर भी लागू है। हालांकि डिजिटल सेवाओं और गिफ्ट कार्ड को कुछ छूट दी गई है, फिर भी अधिकांश ऑर्डर इससे प्रभावित हैं।
आरबीआई की 21 अप्रैल 2022 की अधिसूचना में यह स्पष्ट किया गया था कि सुविधा शुल्क का खुलासा लेनदेन से पहले करना अनिवार्य है और यह वैकल्पिक होना चाहिए। परंतु व्यवहार में यह पारदर्शिता अक्सर नदारद रहती है। अधिकांश उपभोक्ता सुविधा शुल्क की जानकारी खरीदारी के अंतिम चरण में पाते हैं, जिससे उनके पास विकल्प सीमित हो जाते हैं।
समस्या केवल ऑनलाइन प्लेटफार्मों तक सीमित नहीं है। देश भर के कई स्थायी स्टोर, विशेष रूप से क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने पर, उपभोक्ताओं से अतिरिक्त शुल्क वसूलते हैं। यहां तक कि कुछ मामलों में स्कूल फीस का भुगतान करने पर भी ₹2000 से अधिक का सुविधा शुल्क लिया गया है, जिससे अभिभावक खासे नाराज़ हैं।
लोकल सर्कल्स के अनुसार, इस व्यापक सर्वे में देश के 321 जिलों से 40,000 से अधिक उपभोक्ताओं की प्रतिक्रियाएं ली गईं। इनमें 64% पुरुष और 36% महिलाएं शामिल थीं। 42% टियर-1 शहरों से, 22% टियर-2 शहरों से और 36% टियर-3, टियर-4 एवं ग्रामीण क्षेत्रों से आए प्रतिभागियों ने अपनी राय साझा की।
इन प्रतिक्रियाओं से स्पष्ट है कि सुविधा शुल्क उपभोक्ताओं के लिए न केवल आर्थिक बोझ बनता जा रहा है, बल्कि पारदर्शिता की कमी इसे एक गंभीर उपभोक्ता अधिकार मुद्दा भी बना रही है। ज़रूरत है कि नियमों को सख्ती से लागू किया जाए और ग्राहकों को पूर्व जानकारी देकर वैकल्पिक विकल्प प्रदान किए जाएं, ताकि डिजिटल लेन-देन वास्तव में ‘सुविधाजनक’ बन सके।
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