नशा होता अच्छा तो माँ कहती खा ले मेरे बच्चा
नशा मनुष्य के लिए होता तनिक भी अच्छा तो माँ अपने बच्चों को देते हुए कहती ले खा मेरे बच्चा। इसी प्रकार पिता भी अपने बच्चे को नशा देते हुए कहता ले बेटा थोड़ी ली पी ले क्यों करता है चिंता अपनी जिंदगी जी ले। इतना ही नहीं गुरुजन अपने शिष्यों को नशा करने की शिक्षा देते और कहते नशा जीवन का आनंद है इससे ही मिलता परमानंद है। शिक्षण संस्थाओं में भी इसका भरपूर प्रचार प्रसार होता। सभी धर्मों ने नशे को नाश का द्वार कहा है। इतना होते हुए भी आज नशे की समस्या विकराल और भयावह रूप ले चुकी है। न केवल भारत अपितु विश्व के लगभग सभी देश इस समस्या को लेकर चिंतित हैं। भारत की सर्वोच्च न्यायालय के जस्टिस माननीय श्री बीवी नागरत्ना और जस्टिस माननीय श्री एन कोटिश्वर सिंह ने ड्रग तस्करी के मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि “नशे में डूबने का अभिप्राय ‘कूल’ होना नहीं है और इससे बचना चाहिए। एनआईए द्वारा एक केस की जांच की जा रही है जिसमें अंकुश विपिन कपूर पर आरोप है कि वह ड्रग तस्करी का नेटवर्क चलाता था। उसने पाकिस्तान से समुन्द्र के रास्ते बड़ी मात्रा में हेरोइन की तस्करी भारत में कराई थी। माननीय जस्टिस श्री नागरत्ना ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि नशे की लत का सामाजिक आर्थिक और मनोवैज्ञानिक रूप से युवाओं पर बुरा प्रभाव पड़ता है। उन्होंने कहा कि यह देश के युवाओं की चमक को ही खत्म करने वाली चीज है। उनका पूरा तेज इससे छिन जाता है।
“सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को यह कहा गया है कि नशे में डूबने का अभिप्राय कूल होना नहीं है और इससे बचना चाहिए।
आज के परिप्रेक्ष्य में भारत के अनेक राज्यों और शहरों में ड्रग्स अर्थात प्रतिबंधित नशे को मनोरंजन का साधन के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है जो एक चिंता का विषय है।
आरम्भिक समय में प्रतिबंधित नशे अर्थात ड्रग्स व्यक्ति के मस्तिष्क को शून्य में ले जाते हैं जिससे उसे लगता है कि वह सब सांसारिक चिंताओं से मुक्त होकर अलग ही संसार में विचरण कर रहा है और जैसे ही ड्रग्स का प्रभाव समाप्त होता है तो उसके शरीर और मस्तिष्क में पीड़ा और कष्ट का अनुभव होता है और वह इस नशे को पुन: लेकर सामान्य होने का प्रयास करता है लेकिन उसके साथ ऐसा नहीं होता बल्कि नशे का प्रभाव तन मन और मस्तिष्क को क्षीण करता है। नशे के सेवन की पुनरावृति मनुष्य को भीतर तक खोखला कर देती है।
युवा युवा न रहकर मृत समान हो जाता है और कुछ ही वर्षों में उसकी मृत्यु संभावित है।
सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रत्येक व्यक्ति को यह कहा गया है कि नशे में डूबने का अभिप्राय कूल होना नहीं है और इससे बचना चाहिए।
आज के परिप्रेक्ष्य में भारत के अनेक राज्यों और शहरों में ड्रग्स अर्थात प्रतिबंधित नशे को मनोरंजन का साधन के रूप में प्रयुक्त किया जा रहा है जो एक चिंता का विषय है।
आरम्भिक समय में प्रतिबंधित नशे अर्थात ड्रग्स व्यक्ति के मस्तिष्क को शून्य में ले जाते हैं जिससे उसे लगता है कि वह सब सांसारिक चिंताओं से मुक्त होकर अलग ही संसार में विचरण कर रहा है और जैसे ही ड्रग्स का प्रभाव समाप्त होता है तो उसके शरीर और मस्तिष्क में पीड़ा और कष्ट का अनुभव होता है और वह इस नशे को पुन: लेकर सामान्य होने का प्रयास करता है लेकिन उसके साथ ऐसा नहीं होता बल्कि नशे का प्रभाव तन मन और मस्तिष्क को क्षीण करता है।
नशे के सेवन की पुनरावृति मनुष्य को भीतर तक खोखला कर देती है।
युवा युवा न रहकर मृत समान हो जाता है और कुछ ही वर्षों में उसकी मृत्यु संभावित है।
आज स्थिति यह है कि प्रतिबंधित नशों के अतिरिक्त चेतावनियुक्त नशे जिसमे तम्बाकू भी स्वास्थ्य के लिए बहुत अधिक घातक हैं जिसके संकेत स्पष्ट रूप से विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा दिए गए हैं।
तम्बाको के कारण विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों के अनुसार प्रति वर्ष 87 लाख मरते हैं।
भारत के अनेक राज्यों और शहरों में लोग तम्बाकू इतना अधिक खाते हैं कि सड़के, सार्वजनिक स्थान, शौचालय आदि उनकी पिचकारियों से लाल हुई पड़ी हैं।
छोटे छोटे बच्चे और महिलाएं भी इनसे दूर नहीं रह पाए। आज भौतिकतावाद और तनाव भरे जीवन में लोग नशे में डूबकर अपने तनाव को कम करने का अकृत्य प्रयास करते हैं जो एक समाधान नहीं है।
आज गानों, फिल्मों और क्षेत्रीय गायकों द्वारा जिस प्रकार नशे का सेवन करते हुए प्रदर्शन किया जा रहा है वह बच्चों और युवाओं के मस्तिष्क पर बहुत बुरा प्रभाव डाल रहा है। लोग तम्बाकू को मुँह में भरकर रखते हैं और यदि कोई उनसे बात करना चाहे तो वे पहले थूकेंगे या मुँह ऊपर करके बोलेंगे।
उन्हें यह पता है कि तम्बाकू से कैंसर होता है लेकिन उनका मस्तिष्क यह स्वीकार नहीं करता कि वे भी कैंसर का शिकार हो सकते हैं। नशे की लत से युवाओं को बचाने के लिए माता-पिता समाज और सरकारी एजेंसियों को प्रयास करने होंगे। जी हाँ, यह सत्य है कि आज समय आ गया है कि इस समस्या को एक अभियान की भांति स्वीकार करना होगा। जिस प्रकार देश को स्वतंत्र कराने के लिए एक स्वतंत्रता आंदोलन चलाया गया था उसी प्रकार नशा मुक्त भारत अभियान के लिए भी प्रत्येक व्यक्ति को इस नशा मुक्त आंदोलन का भाग बनना होगा। इसमें बलिदान देने की आवश्यकता नहीं है। इसके त्याग करने की आवश्यकता नहीं है। इसमें अपने प्राणों की आहुति देने की आवश्यकता नहीं है। केवल एक कार्य करना है और वह है संकल्प लेकर आगे बढ़ना और अन्य लोगों को भी नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित करना। हमें यह समझना होगा कि ड्रग्स तस्करी से जो धन एकत्रित होता है वो किसके पास जा रहा है। सत्य यह है कि यह धन हमारे देश के विरुद्ध हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रयुक्त हो रहा है। आज हमें एक युद्ध लड़ना है और वह युद्ध किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं अपितु अपनी बुराइयों के विरुद्ध होगा। नशे जैसी बुरी लत को छोड़ने के विरुद्ध होगा। आज इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए प्रत्येक माता पिता और अभिभावक को चाहिए कि वह अपने बच्चों के साथ मित्र जैसा व्यवहार करें। आइये हम सब मिलकर नशे रुपी रक्षा का संहार करे में योगदान दें और सबसे पहले स्वयं नशे को न कहें।
नशे की लत से युवाओं को बचाने के लिए माता-पिता समाज और सरकारी एजेंसियों को प्रयास करने होंगे। जी हाँ, यह सत्य है कि आज समय आ गया है कि इस समस्या को एक अभियान की भांति स्वीकार करना होगा। जिस प्रकार देश को स्वतंत्र कराने के लिए एक स्वतंत्रता आंदोलन चलाया गया था उसी प्रकार नशा मुक्त भारत अभियान के लिए भी प्रत्येक व्यक्ति को इस नशा मुक्त आंदोलन का भाग बनना होगा। इसमें बलिदान देने की आवश्यकता नहीं है। इसके त्याग करने की आवश्यकता नहीं है। इसमें अपने प्राणों की आहुति देने की आवश्यकता नहीं है। केवल एक कार्य करना है और वह है संकल्प लेकर आगे बढ़ना और अन्य लोगों को भी नशे से दूर रहने के लिए प्रेरित करना। हमें यह समझना होगा कि ड्रग्स तस्करी से जो धन एकत्रित होता है वो किसके पास जा रहा है। सत्य यह है कि यह धन हमारे देश के विरुद्ध हिंसा और आतंकवाद को बढ़ावा देने के लिए प्रयुक्त हो रहा है। आज हमें एक युद्ध लड़ना है और वह युद्ध किसी व्यक्ति के विरुद्ध नहीं अपितु अपनी बुराइयों के विरुद्ध होगा। नशे जैसी बुरी लत को छोड़ने के विरुद्ध होगा। आज इस समस्या से छुटकारा पाने के लिए प्रत्येक माता पिता और अभिभावक को चाहिए कि वह अपने बच्चों के साथ मित्र जैसा व्यवहार करें। आइये हम सब मिलकर नशे रुपी रक्षा का संहार करे में योगदान दें और सबसे पहले स्वयं नशे को न कहें।
लेखक- डॉ. अशोक कुमार वर्मा
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!