हम शर्मिंदा हैं कि पहलगाम के हत्यारे अभी तक ज़िन्दा हैं !
22 अप्रैल 2025 को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी हमले में पहलगाम के बैसरन घाटी में 26 निर्दोष पर्यटकों और एक स्थानीय युवक की हत्या की नृशंस घटना ने देश के हर नागरिक को झकझोर कर रख दिया था। बैसरन घाटी में अपने मृत पतियों के सामने विलाप करती पत्नियों की तस्वीरें आज भी हमें उद्वेलित कर देती हैं।
राजीव शर्मा प्रवक्ता चंडीगढ़ कांग्रेस
वास्तव में यह बात इस देश की अंतरात्मा को हैरान और परेशान करने वाली है कि कैसे हथियारों से लैस चार आतंकवादी काफ़ी रास्ता पैदल तय करके आसानी से बैसरन घाटी पहुंच जाते हैं और वहां दर्जनों हंसते खेलते हुए पर्यटकों को उनके परिवारों के सामने मौत के घाट उतार देते हैं और उसके बाद फिर आराम से पैदल चलते हुए ही निकल जाते हैं। यहां तक कि आतंकवादियों ने वहां लगे कैमरों से अपना चेहरा छिपाने की कोई कोशिश तक नहीं की। यह सब उस केन्द्र शासित प्रदेश में होता है, जहां चप्पे चप्पे पर केन्द्रीय सुरक्षा बल तैनात हैं। दुनिया के किसी भी अन्य सभ्य देश में सरकार की ऐसी भयावह गलती के लिए कई मन्त्रियों और अफ़सरों के इस्तीफ़े हो जाते।
यह समझने के लिए कि घाटी में आतंक का ऐसा जघन्य कृत्य इतनी आसानी से कैसे हो सकता है, घटना के समय मौजूद तथ्यों के आलोक में कुछ पूवर्वती घटनाओं का वस्तुनिष्ठ विश्लेषण करना आवश्यक है।
पहला, पहलगाम एक लोकप्रिय पर्यटन स्थल है, जो साल भर खुला रहता है। हालांकि बैसरन घाटी में आने वाले लोगों की संख्या का कोई प्रत्यक्ष विवरण उपलब्ध नहीं है। लेकिन पवित्र अमरनाथ यात्रा पर जाने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या पहलगाम में आने वाले लोगों के रुझान का सही संकेत देती है।
हममें से बहुत कम लोग जानते हैं कि यूपीए सरकार के दस वर्षों के दौरान अमरनाथ जाने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। वर्ष 2011 में रिकॉर्ड 6,34,000 तीर्थयात्रियों ने अमरनाथ गुफ़ा का दर्शन किया। वर्ष 2012 में भी ऐसे तीर्थयात्रियों की संख्या 6.2 लाख से अधिक थी। इनमें से अधिकांश तीर्थयात्री पहलगाम से होकर गुज़रे। इसके बाद सरकार बदलने के कारण वर्ष 2015 के बाद से इन यात्रियों की संख्या में उल्लेखनीय गिरावट दर्ज की गई। इस दौरान 2016 में अमरनाथ मंदिर में जाने वाले तीर्थयात्रियों की संख्या सबसे कम 2.2 लाख रही जब कि 2023 में सबसे अधिक 3.70 लाख के उच्च स्तर तक रही। हालांकि साल 2020 और 2021 में यह यात्रा कोविड के कारण रद्द करनी पड़ी। मोदी सरकार के यह आंकड़े डॉ. मनमोहन सिंह के शासन काल में हासिल की गई 6.34 लाख की रिकॉर्ड संख्या के आसपास भी नहीं है। यदि इन दोनों सरकारों के कार्यकाल के दौरान तीर्थयात्रियों की संख्या की एक साधारण सी तुलना कर ली जाए तो कश्मीर की स्थिति पर वर्तमान सरकार के झूठे दावे पूरी तरह से ध्वस्त हो जाते हैं।
दूसरा, हालांकि कश्मीर के कई हिस्सों ने काफ़ी हिंसा देखी है और अब भी ऐसा जारी है, लेकिन बैसरन घाटी मार्च 2025 तक आमतौर पर हिंसा से मुक्त रही थी। मीडिया की रिपोर्टों से यह भी ज़ाहिर होता है कि पहलगाम और बैसरन घाटी में कम से कम जुलाई और अगस्त 2024 तक सुरक्षा प्रबन्ध चाक-चौबंद थे। लेकिन 22 अप्रैल को आतंकी हमले के दिन वहां एक भी सुरक्षाकर्मी का तैनात होना नहीं पाया गया। यह कोई नहीं जानता कि जुलाई-अगस्त 2024 में वहां लागू सुरक्षा उपाय कब और क्यों हटा दिए गए, जबकि इस दौरान वहां पर्यटकों का आना-जाना लगातार जारी रहा।
उपर्युक्त दोनों तथ्य नीचे लिखे दो प्रासंगिक प्रश्नों को जन्म देते हैं, जो देश की जनता को लगातार चिन्ता में डाल रहे हैं।
- मोदी सरकार कश्मीर के हालात पर देश को लगातार गुमराह क्यों कर रही है, जबकि डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल के दौरान वर्ष 2011 और 2012 में अमरनाथ मंदिर में दर्शन करने वाले हिंदू तीर्थयात्रियों की संख्या में वर्ष 2014 के बाद 40 से 60% की कमी आई है?
- व्यस्त बैसरन घाटी में सुरक्षा घेरा कब और क्यों हटाया गया, जिससे खूंखार आतंकवादियों को वहां आने-जाने वाले पर्यटकों को निशाना बनाने की खुली और बेरोकटोक छूट मिल गई? यदि इस प्रश्न का सही जवाब मिल जाता है तो बहुत सी छुपी हुई गुत्थियां सुलझ सकती हैं।
पर कठोर वास्तविकता यह है कि इन सवालों के जवाब अभी तक नहीं मिल पाए हैं और न ही ऐसा लगता है कि निकट भविष्य में मिल पाएंगे। आतंकी हमले के बाद केन्द्र सरकार द्वारा की गई विभिन्न कार्रवाइयां भी सरकार की नीयत और मंशा को और गहरे सन्देहों के घेरे में डाल देती हैं। नीचे दिए गए छह तथ्य, अन्य बातों के साथ-साथ, यह स्थापित करने में सक्षम हैं कि केन्द्र सरकार ने पहलगाम के खूंखार हत्यारों को पकड़ने के लिए ठोस प्रयास नहीं किए । बल्कि इसके विपरीत जब पाकिस्तान में कुछ खास ठिकानों पर हमला करने की बारी आई तो इस आशय की गुप्त योजना भी समय से पहले लीक कर दी गई, जिसके कारण हमारे बहादुर सुरक्षा बलों को नुकसान उठाना पड़ा।
सबसे पहले, आतंकी हमले के समय बच गए पीड़ितों ने बताया कि सुरक्षा बल लगभग डेढ़ घंटे बाद घटनास्थल पर पहुंचे। लेकिन, इस देरी के बावजूद यदि मानक सुरक्षा प्रोटोकोल का पालन किया जाता और आतंकियों को पकड़ने के लिए एक मिला जुला तलाशी अभियान तुरन्त शुरू कर दिया जाता, तो उन्हें आसानी से पकड़ा जा सकता था। लेकिन सरकार द्वारा इस दिशा में कोई कारगर कदम न उठाया जाना आम नागरिक को चिन्ता में डालने वाला है। यह बात और भी परेशान करने वाली है कि भाजपा नेताओं द्वारा इस घटना का राजनीतिक लाभ लेने की कोशिश पहले दिन से ही शूरू कर दी गई। घटना के बाद भाजपाई और मीडिया के सैकड़ों चैनल देश में साम्प्रदायिक तनाव को हवा देने में जुट गए। प्रधानमंत्री और उनकी पार्टी भाजपा के लिए चुनावी लाभ हासिल करने के उद्देश्य से किए गए अनवरत प्रौपेगंडे के भारी भरकम शोर में पहलगाम के आतंकी हत्यारे बच निकले।
दूसरा, इस आतंकी घटना ने कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे और विपक्ष के नेता राहुल गांधी सहित कांग्रेस नेताओं को झकझोर के रख दिया और वह तुरंत सरकार के पूर्ण समर्थन में खड़े हो गए। उन्होंने सरकार से आतंकवादियों और उनके आकाओं को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए कदम उठाने का आग्रह किया। एक सर्वदलीय बैठक बुलाई गई। प्रधानमंत्री मोदी, जो आतंकी घटना के समय विदेश में थे, भारत वापस आए, लेकिन उन्हें सर्वदलीय बैठक में भाग लेने के बजाय, आगामी चुनावों के मद्देनजर बिहार में एक सार्वजनिक रैली को संबोधित करना अधिक महत्त्वपूर्ण लगा। रैली में प्रधानमंत्री ने एक योजना के तहत जनता के मन में डर की भावना पैदा करने के लिए पहलगाम की घटना के बारे में विस्तार से बात की ताकि उन्हें सांप्रदायिक आधार पर और अधिक विभाजित किया जा सके।
तीसरा, प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में आयोजित सर्वदलीय बैठक में, सरकार ने यह कहकर देश को गुमराह करने का प्रयास किया कि बैसरन मैदान में प्रवेश करने से पहले पर्यटकों से कोई अनुमति नहीं ली जाती है। बाद में, यह पता चला कि बैसरन घाटी पूरे साल खुली रहती है। घाटी में प्रवेश सरकार द्वारा ही नियंत्रित किया जाता था।
चौथा, भारत के केंद्रीय विदेश मंत्री ने पाकिस्तान को हमले के समय और स्थान के बारे में पहले से ही सूचित कर उन्हें चौकस और सावधान कर दिया था।
पांचवां, 10 मई को अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने अप्रत्याशित रूप से भारत और पाकिस्तान दोनों देशों की ओर से युद्ध विराम की घोषणा कर दी और भारत सरकार ने बिना किसी कारण बताए कुछ ही देर बाद अपनी सहमति जता दी।
छठा, युद्ध विराम के बाद, पीएम मोदी ने भारत के छह अलग-अलग राज्यों में एक के बाद एक ताबड़तोड़ चुनावी रैलियों को संबोधित करना शुरू कर दिया। प्रधानमंत्री ने 22 मई से 31 मई तक कुल नौ रैलियों को संबोधित किया, जिनमें उन्होंने बार-बार अपने मुंह से अपनी ही तारीफ़ों के पुल बांधते हुए अपने आप को ही पाकिस्तान के खिलाफ सैन्य सफलता के केंद्र में पेश किया। उन्होंने सेना की गोली को मोदी की गोली बताते हुए एक नई बात कही कि पाकिस्तान की आम जनता अब मोदी की गोली खाने के लिए तैयार रहे। इन सभी रैलियों के दौरान, प्रधानमंत्री को हर जगह उनकी तस्वीरों और पुतलों में उन्हें सेना की वर्दी पहने हुए दिखाया गया था। लेकिन उनके भाषणों में कहीं भी पहलगाम के मुख्य हत्यारों को पकड़ने में पूरी तरह विफल रहने के लिए पश्चाताप या शर्म की भावना नहीं दिखाई दी।
उपरोक्त छह तथ्यों से छह अतिरिक्त प्रश्न पैदा होते हैं, जिनका तत्काल राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में ईमानदारी से उत्तर दिया जाना चाहिए।
- उस संवेदनशील क्षेत्र में, जहां भारी सैन्य-बल तैनात हैं, वहां आतंकी हमले वाली जगह पर पहुंचने में सुरक्षा एजेंसियों को करीब डेढ़ घंटे क्यों लगे?
- जब पूरे देश और सभी राजनीतिक दलों ने सरकार से कारगर कदम उठाने का आग्रह किया था, तो सरकार ने चंगुल से निकल रहे आतंकवादियों को पकड़ने के लिए तुरंत विशेष कदम क्यों नहीं उठाए?
- आतंकी हमले के मद्देनजर आयोजित महत्वपूर्ण सर्वदलीय बैठक के दौरान सरकार ने देश को गुमराह क्यों किया?
- मोदी सरकार द्वारा हमले के समय और स्थान के बारे में पाकिस्तान को दी गई पूर्व सूचना को देशद्रोह क्यों नहीं घोषित किया जाना चाहिए, क्योंकि इस सूचना के कारण दुश्मन पहले से ही तैयार हो गया और सुरक्षा बलों को भारी नुकसान उठाना पड़ा?
- मोदी सरकार बार-बार अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के दबाव में क्यों आ रही है?
- क्या प्रधानमंत्री मोदी केवल वोटों की खातिर अपनी राजनीतिक रैलियों में सेना की वर्दी में अपने पुतले दिखाकर और हमारे सशस्त्र बलों के साहस, वीरता और बलिदान का श्रेय स्वयं को देकर हमारी राष्ट्रीय सुरक्षा से समझौता नहीं कर रहे हैं और हमारे सशस्त्र बलों को कमजोर नहीं कर रहे हैं?
देश का दुर्भाग्य यह है कि इन देशहितैषी प्रश्नों का जवाब देने की सरकार की कोई मंशा नज़र नहीं आती है। वह तो बस अपने चुनावी नफ़ा नुकसान पर नज़रे गढ़ाए हुए है। इसके अलावा उसे कुछ नज़र नहीं आता।
ऐसा पहली बार नहीं है कि प्रधानमंत्री सुरक्षा बलों को अपनी चुनावी राजनीति में घसीट रहे हैं। वह ऐसा पहले भी कई बार कर चुके हैं। साल 2019 के चुनावों में उन्होंने खुले तौर पर पुलवामा आतंकी हमले में शहीद हुए सैनिकों के नाम पर उन्हें और भाजपा को वोट देने की बार बार अपील की, लेकिन सच्चाई सामने लाने के लिए कभी भी पुलवामा आतंकी हमले की सही जांच करवाने के आदेश नहीं दिए।
आज तो हमारी सबकी सरकार से यही मांग है कि वह पहलगाम आतंकी हमले के असली हत्यारों को पकड़ने पर ध्यान केंद्रित करे, जिससे पीड़ितों के परिवारों को न्याय मिल सके और साथ ही देश को थोड़ी राहत। लेकिन मौजूदा सरकार अपने चुनावी गणित से परे देखना ही नहीं चाहती है। सरकार का ऐसा दृष्टिकोण पहलगाम के पीड़ित परिवारों के प्रति बेहद अन्यायपूर्ण है और उनके परिवारों के साथ विश्वासघात के बराबर है।
लेकिन सरकार के ऐसे कृत्यों के बावजूद हम भारत के लोग और कांग्रेस पार्टी तो अभी भी सरकार से यह उम्मीद लगाए बैठे हैं कि वह राष्ट्रहित में काम करेगी और चुनावी लाभ के लिए भयानक मानवीय त्रासदियों और आतंकी हमलों का राजनीतिक लाभ लेना करना बंद करेगी।
लेखक राजीव शर्मा, मुख्य प्रवक्ता चंडीगढ़ प्रदेश कांग्रेस
लिखे गए विचार लेखक के अपने विचार हैं खबरी प्रशाद अखबार या उसका कोई कर्मचारी इन विचारों से सहमत हो ऐसा कोई जरूरी नहीं है ।
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