दबदबा तो है ,दबदबा तो रहेगा ,यह तो भगवान ने दे रखा है :रेसलिंग चुनाव मे बृजभूषण के करीबी के जीतने के बाद बेटे ने जारी किया पोस्टर
बृजभूषण की “शरण” मे कुश्ती का दंगल
साक्षी मालिक के बाद पुनिया ने लौटाई पदम श्री
दबदबा तो है दबदबा तो रहेगा यह तो भगवान ने दे रखा है ।
बीते कल जैसे ही रेसलिंग कुश्ती खेल के नतीजे सामने आए ।उसके बाद तो पहलवानों में हंगामा ही मच गया । साक्षी मलिक ने जहां एक प्रेस कॉन्फ्रेंस कर रोते रोते कुश्ती को सदा के लिए अलविदा कह दिया , वही आज पदम श्री पुरुस्कार लौटने के लिए बजरंग पुनिया प्रधानमंत्री आवास पहुंच गए । मगर पुलिस कर्मियों ने उन्हें नहीं जाने दिया तो वह फुटपाथ पर ही पदम श्री रखकर वापस लौट गए । उपराष्ट्रपति धनखड़ द्वारा लोकसभा के बाहर बनाए गए वायरल वीडियो को अपने जाट समाज से जोड़े जाने के बाद सोशल मीडिया पर अब यह पूछा जाने लगा है कि क्या अब जाट समाज की इज्जत नहीं जा रही है । और वही बृजभूषण शरण सिंह के बेटे द्वारा रेसलिंग कुश्ती के चुनाव में उन्हीं के ” करीबी ” के जीत जाने के बाद जो पोस्टर जारी किया गया वह भी विवाद का कारण बना । इस पोस्टर में लिखा गया ,,
दबदबा तो है दबदबा तो रहेगा यह तो भगवान ने दे रखा है ।
यह पूरा मामला तब सुर्खियों में आया था जब पहलवानों के द्वारा भारतीय जनता पार्टी के दबंग सांसद और मंत्री पर पहलवानों ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था । हालांकि इस मामले में जांच चल रही है और फिलहाल मामला अदालत में विचाराधीन है । उसे समय पहलवानों ने जंतर मंतर पर धरना दिया था और जब
साक्षी मलिक अपने मेडल बहाने हरिद्वार पहुंचीं तो नरेश टिकैत कार दौड़ाते हुए हरिद्वार पहुंचे और चैंपियन बेटियों के पैरों में अपनी पगड़ी रखकर मेडल मांग लिए। लेकिन आज जब साक्षी प्रेस कांफ्रेंस से रोते हुए निकली तो किसी में इतना दम नहीं था कि उसे रोक ले। चौधरी मुंह दिखाने लायक नहीं बचे थे। न्याय नहीं हुआ। न्याय नहीं मिला। कितना बेबस हो गया है ये देश। कितने बेबस हैं इस देश के लोग। बेटियों की इज्जत के साथ ( अभी फिल्हाल आरोपी है ) खेलने वाला आरोपी के सुपुत्र आज अपने दबदबे का पर्चा लहरा रहा है। और बेबस जनता हाथ पर हाथ धरे बैठी है। जैसे अपनी जुबान, पुरुषार्थ, लड़ने का हौसला पांडवों की तरह सत्ता के हाथों जुए में हार गए हों। एकदम निरीह, लाचार और बेबस। एक बेटी, एक बहन प्रेस कांफ्रेंस से रोते हुए निकली और उसके करोड़ों भाई देखते रहे। उनके साथ बेबस खड़ा था वही देश, जिसके लिए उस बेटी ने मेडल जीते थे। तिरंगे की आन बान को अपने कंधों पर ढोया था और जब वह रो रही थी, देश इतना बेबस था कि उसके आंसू भी न पोंछ सका । ना तो पूरे घटनाक्रम के बाद में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के द्वारा एक शब्द भी इन जाट बेटियों के लिए कहा गया ना ही वह इन जाट बेटियों के आंसू पहुंचने के लिए पहुंचे । और ना ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के द्वारा तब भी कुछ कहा गया था जब यह बेटियां जंतर मंतर पर धरने पर बैठी हुई थी और ना ही आज कुछ कहा जा रहा है जब इन बेटियों ने कुश्ती को अलविदा कह दिया है और एक ने पद्म श्री प्रधानमंत्री के घर के आगे वापस कर दिया है ।
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