संविधान की दुहाई और अराजकता का खेल
देश का दुर्भाग्य है, कि सामूहिक रूप से राष्ट्र को समृद्ध बनाने के प्रयास की जगह जनमानस को जाति, धर्म, पंथ, भाषा, क्षेत्र के नाम पर लड़ाकर राजनीतिक दल देश में अराजकता का वातावरण बनाने पर तुले हैं। उन्हें देश में कुछ भी सकारात्मक दिखाई नहीं देता। जन साधारण के लिए रोटी, कपड़ा और मकान जैसी मूलभूत सुविधाओं की व्यवस्था में जुटे सरकारी प्रयास दिखाई नहीं देते। आम आदमी के जीवन यापन का स्तर पूर्व की अपेक्षा उन्नत होता हुआ दिखाई नहीं देता। यदि विघटन के बीज बोने वाले चंद लोग सच को स्वीकार करना सीख जाते, तो कदाचित देश के प्रति उनका दृष्टिकोण सकारात्मक होता, किन्तु ऐसा नहीं है। जिनके मुँह का स्वाद बरसों पहले छूट चुका है, वे सत्ता के बिना जल बिन मछली, नृत्य बिन बिजली सरीखे छटपटा रहे हैं तथा देश विदेश में जाकर भारत को बदनाम करने के साथ साथ देश की जनता को बरगलाकर सड़कों पर अराजकता फ़ैलाने के लिए उकसा रहे हैं।
बहरहाल लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के नाम पर अराजकता का जो नंगा नाच आजकल किया जा रहा है, वह किसी से छिपा नहीं है। सब कुछ व्यवस्थित ढंग से चलते हुए यकायक ऐसे घटनाक्रम सामने आ जाते हैं, जिनसे नकारात्मक और राष्ट्र विरोधी तत्वों को देश में अराजकता फ़ैलाने का अवसर मिल जाता है। ये अवसर किसी षड्यंत्र के तहत प्राप्त किए जाते हैं या हर घटना को अराजकता फ़ैलाने का अवसर बनाया जाता है, यह जांच का विषय हो सकता है।
देश में नकारात्मक शक्तियों के लिए हर घटना में जातीय विद्वेष तलाशना भी फैशन बन गया है। घटना कोई भी हो, किसी भी गरिमामय पद की जाति खंगालकर व्यक्ति के मान अपमान को जातीय मान अपमान से जोड़कर सड़कों पर उतरने में नकारात्मक शक्तियों को देर नहीं लगती।
सियासी तत्व जैसे ऐसे अवसरों की ताक में अपनी पूरी टीम के साथ तैयार बैठे रहते हैं, कि कब कोई किसी के लिए अपशब्द कहे या अभद्र और आपत्तिजनक आचरण करे और कब वे घटना के तिल को ताड़ बनाकर सड़क पर अराजकता फैलाकर व्यवस्था को बदनाम करें और समाज को विघटित करने के मंसूबों को पूरा करने के लिए तत्पर रहें।
रोजी रोटी की तलाश में जुटे अधिकांश लोगों को चाहे वे किसी भी धर्म, सम्प्रदाय, जाति व क्षेत्र से जुड़े हों, विघटनकारी तत्वों से कोई सरोकार नहीं होता, फिर भी चंद लोगों द्वारा फैलाई जाने वाली अराजकता समाज में वैमनस्य को बढ़ावा देने आधार बनती है।
विडंबना यही है, कि संविधान की दुहाई देने वाले लोग स्वयं संविधान का आदर नहीं करते। संविधान को अपनी जेब में लेकर घूमने वाले लोग सड़कों पर अराजकता कौन से संविधान के अनुरूप फैलाते हैं, यह स्वयं में बड़ा सवाल है। कौन नहीं जानता कि लोकतंत्र में संविधान सर्वोपरि होता है, संविधान सभी के समानाधिकार की बात करता है, वह शाब्दिक आचरण से किसी को भी किसी की भावना आहत करने की आजादी प्रदान नहीं करता। वह तर्क आधारित व्यवस्था का सम्मान करता है। विचारों की लड़ाई विचारों से लड़ने को मान्यता प्रदान करता है, न कि समाज में जातीय विद्वेष को बढ़ावा देकर समाज में नफरत के बीज बोकर। समय आ गया है कि जाति के नाम पर विद्वेष उत्पन्न करने वाले तत्वों को राष्ट्र द्रोह का दोषी मानते हुए कठोर दंड का प्रावधान सुनिश्चित किया जाए। साथ ही संविधान की दुहाई देकर संविधान का मखौल उड़ाने वाले तत्वों को कड़ी से कड़ी सजा दी जाए, ताकि कोई संविधान के नाम पर देश में अराजकता फ़ैलाने का दुस्साहस न कर सके।
डॉ. सुधाकर आशावादी -विनायक फीचर्स
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