चमोली ग्लेशियर हादसा : प्रशासन ने पुरानी गलतियों से नहीं लिया सबक
उत्तराखंड के चमोली जिले में एक बार फिर ग्लेशियर टूटने से भीषण तबाही मची है। 28 फरवरी 2025 को नंदा देवी चोटी से टूटा ग्लेशियर ऋषि गंगा में गिरा, जिससे धौली गंगा में बाढ़ आ गई। चार साल पहले, 7 फरवरी 2021 को इसी जिले में ऐसा ही हादसा हुआ था, लेकिन दुर्भाग्यवश, उस घटना से कोई सीख नहीं ली गई।
दिल्ली केशव माहेश्वरी
पुरानी त्रासदी से नहीं लिया कोई सबक
साल 2021 में चमोली के तपोवन क्षेत्र में ग्लेशियर टूटने से भयानक तबाही हुई थी। उस हादसे में विष्णुगाड हाइडिल प्रोजेक्ट की टनल में मलबा घुस गया था, जिससे कई मजदूर उसमें फंसकर दम तोड़ चुके थे। उस समय ITBP, NDRF और SDRF जैसी आपदा प्रबंधन टीमें चाहकर भी मजदूरों को नहीं बचा पाई थीं। पूरी हाइड्रोपावर परियोजना नष्ट हो गई थी।
अब 2025 में फिर से वही त्रासदी दोहराई गई। ग्लेशियर टूटने के कारण आई बाढ़ से जान-माल का भारी नुकसान हुआ। बावजूद इसके, प्रशासन की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए थे, जिससे इस हादसे को रोका जा सकता।
क्या यह पूरी तरह प्राकृतिक आपदा थी?
उत्तराखंड सरकार और प्रशासन इसे प्राकृतिक आपदा बताकर अपनी ज़िम्मेदारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन क्या यह पूरी तरह से प्राकृतिक आपदा है? विशेषज्ञों का मानना है कि मनुष्यों द्वारा की गई लापरवाहियाँ भी इस तरह की घटनाओं का बड़ा कारण हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण हिमालयी क्षेत्र में बर्फ तेजी से पिघल रही है। लेकिन इससे भी बड़ी समस्या इंसानों द्वारा किए जा रहे अनियंत्रित निर्माण कार्य हैं। हाईवे, हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट और सुरंगों के लिए लगातार पहाड़ों की खुदाई हो रही है। इससे पहाड़ कमजोर हो रहे हैं, और जरा-सी हलचल पर ग्लेशियर खिसकने लगते हैं।
चार धाम यात्रा के चलते काटे जा रहे पहाड़ का भी असर
हिमालय एक संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसे संतुलन में रखने के लिए वहां के जंगल, नदियाँ और ग्लेशियर अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन पिछले कुछ दशकों में वहाँ की जैव विविधता को बुरी तरह से नष्ट किया गया है।
चार धाम यात्रा को सुगम बनाने के लिए 900 किमी लंबी सड़क परियोजना बनाई जा रही है, जिसके तहत कई पहाड़ काटे जा रहे हैं।
सुरंगों और हाइड्रोपावर प्रोजेक्ट्स के लिए भारी खुदाई की जा रही है।
जलविद्युत परियोजनाओं के कारण नदियों का प्राकृतिक प्रवाह बाधित हो रहा है।
इन सभी कारणों से हिमालय के पहाड़ और ग्लेशियर कमजोर हो रहे हैं, जिससे इस तरह की आपदाएं लगातार बढ़ रही हैं।
सरकार की अनदेखी और लापरवाही
2021 की घटना के बाद वैज्ञानिकों और पर्यावरणविदों ने चेतावनी दी थी कि यदि हिमालयी क्षेत्र में अनियंत्रित निर्माण कार्य नहीं रोके गए, तो भविष्य में और भी भयानक हादसे हो सकते हैं। लेकिन सरकार और प्रशासन ने इन चेतावनियों को नजरअंदाज कर दिया।
अब 2025 में फिर से हादसा होने के बावजूद वही बातें दोहराई जा रही हैं—”यह प्राकृतिक आपदा है”, “हम राहत कार्य में जुटे हैं”, लेकिन असली समस्या का समाधान करने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनाई जा रही।
कब तक चलेगा यह सिलसिला?
हर कुछ वर्षों में एक नई आपदा आती है, जिसमें सैकड़ों लोग मारे जाते हैं और हजारों करोड़ की संपत्ति का नुकसान होता है। फिर भी, पुराने हादसों से कोई सबक नहीं लिया जाता। जब तक सरकार और प्रशासन ठोस कदम नहीं उठाते, तब तक ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी।
जरूरी कदम:
- अनियंत्रित निर्माण पर रोक – जलविद्युत परियोजनाओं और सड़कों के निर्माण को नियंत्रित किया जाए।
- विज्ञान आधारित योजनाएँ – किसी भी परियोजना को शुरू करने से पहले विशेषज्ञों की राय ली जाए।
- ग्लेशियरों की निगरानी – आधुनिक तकनीकों से हिमालय में ग्लेशियरों की निगरानी की जाए ताकि संभावित खतरों का पहले से पता चल सके।
- वन संरक्षण – हिमालयी क्षेत्र में वनों की कटाई रोकी जाए और अधिक से अधिक वृक्षारोपण किया जाए।
चमोली में बार-बार होने वाली आपदाएं सिर्फ प्राकृतिक नहीं, बल्कि मानव निर्मित भी हैं। पहाड़ों से छेड़छाड़ और अनियंत्रित विकास कार्य इस तरह की त्रासदियों को न्योता दे रहे हैं। सरकार को अब चेतना होगा और पर्यावरण संरक्षण की ओर ध्यान देना होगा, अन्यथा आने वाले वर्षों में और भी भयानक आपदाएं देखने को मिलेंगी।
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