कविता : गिलहरी और तोता
वट-वृक्ष की शीतल छाया में,बैठे थे दो प्राणी चुपचाप—एक चंचला चपल गिलहरी,दूजा हरा-पीला तोता आप। थाली में कुछ दाने गिरे थे,ना पूछी जात, ना वंश, ना गोत्र।नहीं कोई मंत्र, न यज्ञ, न विधि,बस भूख थी, और सहज भोग पात्र। न वहाँ कोई ‘ऊँच’ का झंडा लहराया,न ‘नीच’ के नाम पर थूक गिरा।न रोटी को छूने […]