बिहार में वोटर लिस्ट पुनरीक्षण बना सियासी विवाद : 71 लाख नाम हटने की आशंका,
संसद से विधानसभा तक हंगामा
पटना/दिल्ली | राजनीतिक डेस्क
बिहार में वोटर लिस्ट के विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया के तहत फॉर्म भरकर जमा करने की अंतिम तारीख 25 जुलाई यानी आज ही है, लेकिन अब ( खबर लिखे जाने ) तक लगभग 15 लाख फॉर्म जमा नहीं हुए हैं। इसके चलते करीब 71 लाख वोटरों के नाम सूची से हटने की आशंका जताई जा रही है। इस मुद्दे पर सत्तारूढ़ गठबंधन के नेताओं से लेकर विपक्ष तक में नाराज़गी है।
संसद और विधानसभा में लगातार हंगामा
SIR प्रक्रिया को लेकर दिल्ली से पटना तक विरोध के स्वर तेज़ हैं। संसद के मानसून सत्र में विपक्षी सांसद लगातार इस मुद्दे पर चर्चा की मांग कर रहे हैं। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने सोशल मीडिया पर लिखा कि वे लोकसभा में इस मसले को फिर उठाएंगे। उन्होंने आरोप लगाया कि “बिहार में 52 लाख लोगों को मताधिकार से वंचित कर दिया गया है।”
राज्यसभा में आप सांसद संजय सिंह ने नियम 267 के तहत कार्य स्थगन नोटिस देते हुए चुनाव आयोग की प्रक्रिया के संवैधानिक पक्षों पर चर्चा की मांग की है। संसद में इस मसले पर बीते तीन दिन से कार्यवाही बाधित हो रही है।
एनडीए सहयोगी भी नाराज़
चौंकाने वाली बात यह है कि विरोध केवल विपक्ष तक सीमित नहीं है, बल्कि सत्तारूढ़ गठबंधन के नेता भी इस प्रक्रिया की आलोचना कर रहे हैं। जेडीयू सांसद गिरिधारी यादव ने इसे “जल्दबाजी में किया गया और अव्यावहारिक” करार दिया है। उन्होंने कहा:
“यह प्रक्रिया हम पर जबरदस्ती थोपी गई है। चुनाव आयोग को न बिहार का इतिहास पता है, न भूगोल। खुद मुझे दस्तावेज़ जुटाने में 10 दिन लग गए। विदेश में रहने वाला मेरा बेटा एक महीने में दस्तखत कैसे करेगा?”
उन्होंने मांग की कि प्रक्रिया को पूरा करने के लिए कम से कम 6 महीने का समय दिया जाना चाहिए था।
विधानसभा में नीतीश-तेजस्वी आमने-सामने
बिहार विधानसभा के मानसून सत्र में भी यह मुद्दा छाया हुआ है। बुधवार को मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव के बीच इस मुद्दे पर तीखी बहस देखी गई। विपक्ष का आरोप है कि यह प्रक्रिया लाखों लोगों को मताधिकार से वंचित करने की साजिश है।
चुनाव आयोग का पक्ष
चुनाव आयोग के मुताबिक, SIR के तहत 98.01% वोटर्स की कवरेज हो चुकी है। फिर भी आंकड़े बताते हैं कि:
20 लाख वोटर्स की मृत्यु हो चुकी है
28 लाख स्थायी रूप से विस्थापित हैं
7 लाख के नाम दो जगह दर्ज हैं
1 लाख वोटर्स ‘लापता’ हैं
और 15 लाख लोगों ने अब तक फॉर्म नहीं लौटाया
इस तरह लगभग 71 लाख नामों के हटने की संभावना बन रही है।
चुनाव आयोग ने बताया कि 20 जुलाई को सभी प्रमुख दलों के बूथ लेवल एजेंटों के साथ यह लिस्ट साझा की जा चुकी है।
SIR प्रक्रिया के चलते बिहार में मतदाता सूची को लेकर अभूतपूर्व राजनीतिक तनाव पैदा हो गया है। यह मामला अब संवैधानिक, चुनावी और सामाजिक मुद्दा बनता जा रहा है। अंतिम निर्णय अगले कुछ दिनों की प्रक्रिया और आयोग की समीक्षा के बाद ही सामने आएगा, लेकिन इससे पहले ही यह मुद्दा राष्ट्रीय बहस का विषय बन चुका है।
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