खरी-अखरी : बिहार के दूसरे फेज की वोटिंग तय कर देगी मोदी-शाह का भविष्य !
बिहार का चुनाव केवल इतना भर तय करने नहीं जा रहा है कि सरकार कौन बनायेगा एनडीए या महागठबंधन या फिर कोई नया गठबंधन। मुख्यमंत्री कौन बनेगा नितीश कुमार या तेजस्वी यादव या फिर कोई तीसरा। बिहार का चुनाव यह भी तय करने जा रहा है कि नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बरकरार रहेंगे या नहीं। बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तय करेगा या मोदी-शाह की जोड़ी। वैसे इस दूसरी परिस्थिति का बिहार चुनाव से कोई लेना देना नहीं था मगर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह ने खुद ही व्यूह को रचकर बिहार चुनाव के केन्द्र में लाकर खड़ा कर लिया है। और इसीलिए अभी देश पटना से चल रहा है। पटना का गांधी मैदान और उससे सटा हुआ आलीशान होटल मौर्या और उसके शानदार सूट में देश के गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी, वहीं से देश पर पैनी नजर, वहां दिल्ली के नौकरशाही की आवाजाही तथा इन सबके बीच चुनाव परिणामों को लेकर की जा रही मशक्कत। इस वक्त देश की पाॅलिटिकल राजधानी बन चुका है पटना और उसका सचिवालय बना हुआ है गांधी मैदान से सटा हुआ मौर्या होटल। भले ही विपक्ष आरोप लगा रहा हो मौर्या होटल के सीसीटीवी कैमरों पर कागज चढ़ा दिए हैं या कपड़े ताकि भविष्य में भी कोई होटल में लगे सीसीटीवी कैमरों को खंगाले तो उसे निल बटे सन्नाटा ही मिले।
पहले चरण में हुए भारी मतदान ने बीजेपी की धड़कनें बढ़ा दी हैं। नितीश कुमार ने तो महिलाओं के खाते में 10 हजार रुपये जमा करके अपनी और अपनी पार्टी जेडीयू के पक्ष में माहौल बना लिया है। हर घर से एक सरकारी नौकरी के वादे के आसरे तेजस्वी यादव ने अपना और अपनी पार्टी आरजेडी को अपर हैंड में ला दिया है। लेकिन बीजेपी ने नितीश कुमार को फिर से मुख्यमंत्री बनाने की घोषणा नहीं करके अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली है। दूसरे चरण में जिन जगहों पर 122 सीटों के लिए वोटिंग हो रही है वह बीजेपी के लिए इस मायने में सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण है क्योंकि पिछली मर्तबा एनडीए को आधे से ज्यादा सीटें मिली थी उसमें भी लगभग 70 फीसदी सीट तो अकेले बीजेपी को मिली थी। लेकिन इस बार चाल लड़खड़ा रही है। फिर चाहे वो सीमांचल हो या चंपारण, भागलपुर हो या बांका सभी जगह संकट गहराया हुआ है। चंपारण (पूर्वी और पश्चिमी) के इलाके की 21 सीटों में एनडीए ने 17 सीटें जीती थी लेकिन इस बार 17 सीटों में कम से कम 6 सीटों पर संकट है। इसी तरह से सीतामढ़ी, सुपौल और अररिया को मिलाकर जो 19 सीटें हैं उनमें से एनडीए ने 15 सीटें जीती थी लेकिन यहां भी 15 सीटों में से 5 सीटों पर हालात नाजुक हैं। पूर्णिया और कटिहार की 14 सीटों में से 8 सीटें एनडीए के खाते में गई थी लेकिन 2 सीटों के समीकरण डगमगा गये हैं। भागलपुर, बांका और जमुई की कुल 16 सीटों में से एनडीए के पाले में 12 सीटें गिरी थी लेकिन आज की स्थिति में 6 सीटों का धम्मन फूल रहा है। तो सवाल है कि चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद बचे 36 घंटे में बीजेपी क्या करे, अमित शाह क्या करें ?
सीमांचल का इलाका मुस्लिम बाहुल्य है। यहां की बहादुरगंज, ठाकुरगंज, किसनगंज, कोचा धामन, बाईसी, बलरामपुर, अररिया, जोकी हाट, आमोर सीटों पर पिछली बार ओवैसी की पार्टी ने 5 सीटें जीती थी। इस बार भी ओवैसी ने अपने उम्मीदवार खड़े किये हैं लेकिन इस बार ओवैसी को संभवतः एक भी सीट मिलने नहीं जा रही है क्योंकि ओवैसी का जो भाषण है वोटर को हिन्दू और मुस्लिम के बीच लाकर खड़ा कर देता है और यह स्थिति बीजेपी के अनुकूल हो जाती है। तो यहां से महागठबंधन 11 की 11 सीटों को जीतने की स्थिति में दिख रहा है। लेकिन पिछली बार जहां ओवैसी थे इस बार प्रशांत किशोर की जन सुराज है जिसने सभी 11 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं। कुछ ऐसी ही परिस्थिति बिहार के भीतर की उन 53 सीटों की है जहां पर मुस्लिम वोटर चुनाव को प्रभावित करते हैं । जबकि पिछली बार इन 53 सीटों में से 36 सीटें एनडीए के खाते में गई थी लेकिन इस बार तकरीबन 18 सीटों पर संकट दिखाई दे रहा है। जन सुराज ने सबसे ज्यादा 29 मुस्लिमों को टिकिट दी है। जबकि आरजेडी ने 19, कांग्रेस ने 10, सीपीआई एमएल ने 2 यानी महागठबंधन ने 31 मुस्लिमों को टिकिट दी है। एनडीए की तरफ से जेडीयू ने 4, एलजेपी ने 1 यानी कुल जमा 5 मुसलमानों को टिकिट दी है। बीजेपी ने हमेशा की तरह मुसलमानों से दूरी बनाए रखकर एक को भी टिकिट नहीं दी है क्योंकि उसका मानना है कि मुसलमान बीजेपी को वोट नहीं देते हैं। जबकि ऐसा मानना सरासर मुस्लिमों के साथ अन्याय है।
दूसरे चरण में जिन जगहों पर वोटिंग होनी है उसमें किसनगंज, अररिया, सीतामढ़ी, कटिहार, पूर्णिया और पूर्वी चम्पारण की 43 सीटों पर पिछली बार बीजेपी को ज्यादा बड़ी जीत इसलिए मिली थी क्योंकि हिन्दू-मुस्लिम वोटों का ध्रुवीकरण हुआ था। किसनगंज में 68 फीसदी मुस्लिम मतदाता हैं फिर भी आरजेडी 1, कांग्रेस 1, एआईएमआईएम 2 सीटें ही जीत पाई। अररिया में 40 फीसदी मुस्लिम हैं वहां की 6 सीटों में से बीजेपी और जेडीयू को 2 – 2 सीटें मिली। सीतामढ़ी जहां पर 20 फीसदी मुसलमान हैं वहां की 8 सीटों में से बीजेपी ने 4 तथा जेडीयू ने 2 सीटें जीती थी। इसी तर्ज पर कटिहार में 63 फीसदी मुस्लिम होने के बाद भी बीजेपी 3 सीटें जीत गई थी। कमोबेश यही हाल पूर्णिया और पूर्वी चम्पारण की थी। पूर्णिया की 7 में से 4 सीट महागठबंधन हार गया था। पूर्वी चम्पारण की 12 में से 8 सीट बीजेपी जीत गई थी। अमित शाह के द्वारा अपने भाषणों में बार – बार घुसपैठ, आतंकवाद खास तौर पर मुस्लिम आतंकवाद और पाकिस्तान का जिक्र करने के बाद भी इस बार वैसी परिस्थितियां नहीं बनने से बीजेपी की नींद हराम हो रही है। जबकि अभी तक बीजेपी की पूरी की पूरी राजनीति धर्म के आधार पर वोटों का ध्रुवीकरण, हिन्दू – मुस्लिम साम्प्रदायिकता के आसरे परिस्थितियों को अपने अनुकूल करने की रही है। अगर देश का गृहमंत्री अपने भाषणों में बिना नागा इन बातों का जिक्र कर रहा है तो क्या बिहार के भीतर का संकट बीजेपी के लिए गहरा होता जा रहा है। एक साम्प्रदायिकता के आसरे वोटों का ध्रुवीकरण कर रहा है तो दूसरा जातीय समीकरण के आसरे अपनी नैया पार लगाने में लगा है। मगर सवाल यह है कि क्या जातीय समीकरण की डोर भी एनडीए के हाथ से छूट गई है ? क्योंकि नितीश जिस राजनीति को साधते हैं और जिस राजनीति के आसरे तेजस्वी अपनी पहचान और पकड़ चुनाव में बना रहे हैं, दोनों में व्यापक अंतर है।
दूसरे चरण की 122 सीटों में 32 सीटें ऐसी हैं जहां पर एनडीए और महागठबंधन के उम्मीदवार एक ही जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं। मसलन नरपतगंज, बेल्हर, बेलागंज, नवादा में यादव – नरकटियागंज, बेलीपट्टी में ब्राह्मण – फुलपराय, सपौली, सिपटी में धनुक – कोडा, तिरपैती बोधगया में पासवान – रामगढ़, औरंगाबाद, बजीरगंज से राजपूत – बाराचट्टी, सिकंदरा, रानीगंज से मुसहर – मोतिहारी, कटिहार में वैश्य आमने सामने हैं। इन जगहों पर जातियां बटेंगी या एक जगह जुटेंगी ये सवाल एनडीए के भीतर हड़कंप मचाये हुए है। इन 32 सीटों में एनडीए ने पिछली बार 18 सीटें जीती थी। अगर इन 32 सीटों पर जाति के हिसाब से वोट नहीं बटे और जाति समीकरण नौकरी के आसरे टूट गये तब क्या होगा ? जातीय समीकरण का टूटना, मुस्लिम – यादव समीकरण का बरकरार रहना, हिन्दू – मुस्लिम के आधार पर वोटों का विभाजन न हो पाना, इन तीन परिस्थितियों के बीच एनडीए की 30 से ज्यादा सीटें फंसी हुई है या कहें पलट रही है तो इन्हें दूसरे चरण की वोटिंग से पहले अपने पाले कैसे लाया जाए यही वो यक्ष प्रश्न है जो खड़ा हो गया है एनडीए या कहें बीजेपी, अमित शाह के सामने।
बिहार की जो आर्थिक, सामाजिक परिस्थितियां हैं उनमें बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है। बिहार में प्रति व्यक्ति आय 5700 रुपये मासिक है जो देश के दूसरे राज्यों की तुलना में सबसे कम है। बिहार से ज्यादा उत्तर प्रदेश 8700 रूपये, झारखंड 9700 रूपये मासिक है। इसके बाद तो राज्य दर राज्य अपने तौर पर 10000 से 30000 रूपये मासिक तक है। तो वहां पर अगर नितीश कुमार ने महिलाओं को 10000 रुपये बांट दिये और उस दस हज़ार ने कमाल कर दिखाया बिहार के भीतर पहले चरण की वोटिंग में। नितीश की झोली तो भरी लेकिन बीजेपी की झोली दोतरफा खाली रह गई। एक तो महिलाओं ने वोट नहीं दिया दूसरे जेडीयू का वोट ट्रांसफर नहीं हुआ बीजेपी में। इसके पहले भी नितीश कुमार ने 2007 में स्कूल में पढ़ने वाली बच्चियों को मुफ्त साईकिल बांटी थी और 2016 में शराबबंदी लागू कर महिलाओं को खुश किया था।
इस चुनाव में प्रशांत किशोर अपनी पार्टी की मौजूदगी को पहले चरण में विकल्प के तौर पर देख रहे हैं। जिस तरह से महिलाओं की भागीदारी को नितीश कुमार के करीब देखा जा रहा है ठीक उसी तरह से छात्रों, युवाओं, जेन-जी, मजदूरों, प्रवासी मजदूरों का हुजूम जिस तरह से उभर कर सामने आ रहा है उसे प्रशांत किशोर अपने साथ खड़ा होना मानकर चल रहे हैं। लेकिन हकीकत यह है कि जहां एक ओर महिलाओं की भागीदारी नितीश को जिताती है वहीं युवा, जेन-जी, बेरोजगार युवा, मजदूर, प्रवासी मजदूर की मौजूदगी अगर एक मुश्त एक वोट बैंक में तब्दील हो चुकी है तो फिर यह लड़ाई दो लोगों के बीच में है। जिसमें एक तरफ तेजस्वी यादव हैं तो दूसरी तरफ प्रशांत किशोर हैं। तेजस्वी यादव के पक्ष में होने की संभावना इसलिए बलवती है क्योंकि वे सत्ता में आने का मैसेज दे रहे हैं जबकि प्रशांत किशोर उन परिस्थितियों को पैदा करना चाह रहे हैं कि उन्हें इतनी सीटें मिल जाय कि हर गठबंधन को सरकार बनाने के लिए उनके सामने घुटनाटेक होना पड़े। जिस तरह से पहले चरण की वोटिंग में 5 से लेकर 10 परसेंट के बीच वोट शिप्ट हुआ है अगर दूसरे चरण में मात्र 3 परसेंट भी वोट शिप्ट हुआ तो कम से कम 34 सीटें महागठबंधन के पास चली जायेंगी या कहें जा रही है। एनडीए की 34 सीटों का कम हो जाने का सीधा मतलब है नितीश कुमार एनडीए का सत्ता से बाहर हो जाना। सवाल तो यह भी है कि पूरे चुनाव के बीच चिराग पासवान, जीतनराम मांझी और उपेन्द्र कुशवाहा कहां पर खड़े हैं क्योंकि इसी दूसरे चरण की वोटिंग में ही उनके भाग्य का फैसला होना है।
बिहार के भीतर की लड़ाई कुल चार खिलाड़ियों के बीच हो रही है जिसमें दो स्थानीय खिलाड़ी हैं नितीश (जेडीयू) और तेजस्वी (आरजेडी) तथा दो राष्ट्रीय खिलाड़ी हैं बीजेपी (मोदी) और कांग्रेस (राहुल ) । इसमें आरजेडी (तेजस्वी) और कांग्रेस (राहुल) तो एक साथ खड़े नजर आ रहे हैं लेकिन जेडीयू (नितीश) और बीजेपी (मोदी) के बीच का तालमेल बिखरा हुआ है। बीजेपी की मुश्किल ये है कि एक तो उसके पास बिहार के भीतर एक भी साखदार लोकप्रिय चेहरा नहीं है दूसरा उसने नितीश कुमार को मुख्यमंत्री बनाने नहीं बनाने की दुविधा भरी स्थिति पैदा करके कुल्हाड़ी के ऊपर पैर रख दिया है। यानी अब बीजेपी की सारी रणनीति चुनाव बाद प्लान बी पर जाकर टिकती हुई दिखाई दे रही है जहां वह किस तरह से सरकारों को गिराने, दोपायों की खरीद-फरोख्त करके पार्टियों को तोड़ने वाला काम करती है ! आरजेडी के लोग तो यहां तक कहने लगे हैं कि वे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की भावनाओं की कद्र करते हुए तेजस्वी यादव के शपथग्रहण में न्यौता देंगे क्योंकि वे खुद कहकर गये हैं कि अब वो शपथग्रहण के मौके पर ही बिहार आयेंगे। उन्होंने इस बात का जिक्र नहीं किया है कि वे किसी खास गठबंधन की सरकार के शपथग्रहण में ही आयेंगे।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार




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