खरी-अखरी: बिहार में चुनाव बाद नये समीकरण बनने का मैसेज दे गया पहले फेज का वोटिंग पर्सेंटेज!
बिहार में विधानसभा चुनाव के पहले चरण की बम्पर वोटिंग ने सारे पुराने रिकार्ड को तोड़ते हुए तमाम समीकरणों को धराशायी करने का खुला ऐलान कर दिया है। अभी तक ये माना जाता था कि देश की राजनीति दो भागों में बंटी हुई है यानी मोदी के साथ या मोदी के खिलाफ है। लेकिन बिहार के इलेक्शन बिल्कुल दूसरी परिस्थितियों की ओर ईशारा कर रहे हैं। यहां पर लोग नये बिहार की खोज के साथ मतदान करने के लिए अग्रेसिव तरीके से उतर कर सामने आये हैं। बिहार में अभी भी जातीय समीकरण जस के तस हैं लेकिन जातीय समीकरण के आसरे सिर्फ एक मुसलमान ही इस रूप में एकजुट है कि जहां पर भी बीजेपी को हराया जा सकता है हरा दिया जाय अन्यथा वह आर्थिक रूप से पिछड़ा हो, यादव हो, अपर क्लास हो या पिछड़ा तबका हो सबके बीच एक बिखराव की स्थिति नजर आई है। जो इस बात का संदेश दे रही है कि दूसरे चरण के बाद बिहार में सत्ता के लिए एक नया समीकरण बनने जा रहा है क्योंकि 121 सीटों के लिए ईवीएम में कैद हो चुके वोटों का रुझान ये बता रहा है कि एनडीए और महागठबंधन में से कोई भी एलायंस अपने बूते सत्ता पर काबिज होने नहीं जा रहा है। एंटी इनकमबेंसी भले ही नितीश कुमार के खिलाफ न हो लेकिन सत्ता में भागीदार बीजेपी के खिलाफ जबरजस्त है जिसका खुला नजारा लखीसराय में खुलकर नजर आया जहां से बीजेपी कोटे से डिप्टी सीएम विजय सिन्हा चुनाव मैदान में हैं। कुछ ऐसे ही हालात महागठबंधन के भी हैं जहां भले ही आरजेडी अपर हैंड हो लेकिन कांग्रेस, लेफ्ट और वीआईपी की स्थिति उतनी मजबूत नजर नहीं आ रही है जितनी मजबूत स्थिति में तेजस्वी यादव अपनी पार्टी और अपने बोटरों के साथ अग्रेसिव तरीके से पहले चरण में ही सामने आ चुके हैं। सारे पिछले रिकार्डों को ध्वस्त करते हुए हुई बम्पर वोटिंग के दौरान जो भी और जैसे भी घटनाक्रम घटित हुए हैं और प्रशासन, पुलिस प्रशासन की जो भूमिका बीच का रास्ता अख्तियार करते हुए उभर कर सामने आई है उससे भी ऐसा लगता है कि सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है। पुलिस का एक चेहरा लखीसराय में नजर आया जहां नितीश सरकार के डिप्टी सीएम विजय सिन्हा अपने ही पुलिस अधिकारियों को नालायक, निकम्मा कहते हुए कोस रहे थे तो दूसरा चेहरा दानापुर में नदी किनारे नजर में आया जहां पुलिस कर्मी नदिया के उस पार बने पोलिंग बूथ पर जनता (तथाकथित आरजेडी के वोटर) को वोट डालने जाने के लिए नाव रोक कर बैठे हुए थे।
जिस तरह से बिहार का वोटर वोट करने के लिए घर से निकला है तो उसके क्या मायने हो सकते हैं ? इसे समझने के लिए इन तीन बातों को समझना होगा। सीटें किसकी बढ़ रही है ? पहली बार चुनाव मैदान में उतरी जन सुराज पार्टी कितनी सीटें जीत सकती है या फिर वो सिर्फ नुकसान पहुंचाएगी ? इतनी बड़ी संख्या में वोटर क्यों निकला है ? जिन 121 सीटों पर मतदान हुआ है उसमें पिछली बार लेफ्ट ने 11 सीटें जीती थी वो इस बार कम होने जा रही हैं। वीआईपी के पिछली बार 4 एमएलए थे उनमें भी कमी आयेगी। पिछली मर्तबा अपने बूते चुनाव लड़ कर एक सीट जीतने वाली एलजेपी उसकी सीटों पर इजाफा हो सकता है। 8 सीटें जीतने वाली कांग्रेस कमोवेश पुरानी स्थिति में रह सकती है सीटें कम हो सकती है लेकिन आगे बढ़ने की परिस्थितियां तो असंभव सी है। आरजेडी, जेडीयू और बीजेपी के बीच त्रिकोणी पेंच फंसा हुआ है। जेडीयू ने पिछली बार 23 सीटें जीती थी वो कम नहीं होंगी। बीजेपी ने 32 सीटें जीती थी उनमें कमी आयेगी। वोटिंग पैटर्न वाकई सत्ता परिवर्तन का संकेत है तो पहले चरण में ही मैक्सिमम 42 सीटें जीतने वाली आरजेडी की सीटों में बढोत्तरी होने के स्पष्ट संकेत है अन्यथा नई पार्टी के तौर पर उभरी जन सुराज पार्टी तकरीबन 10 से 15 सीटें जीत सकती है। यह बहुत बड़ा मैसेज है। क्या जन सुराज ने जेडीयू, आरजेडी, कांग्रेस, वीआईपी आदि में सेंध लगा ली है ? मगर एक बात तो साफ दिख रही है कि जन सुराज सबसे ज्यादा नुकसान बीजेपी को पहुंचाने जा रही है। क्योंकि जन सुराज यानी प्रशांत किशोर ने बिहार में बीजेपी के खिलाफ फैली हुई एंटी इनकमबेंसी को अपने पक्ष में करने के लिए बहुत मेहनत की है। उसने कांग्रेस के सामने भी वैचारिक चुनौती पेश की है। शायद इसीलिए फुल कांफिडेंस के साथ जय बिहार का नारा लगाते हुए प्रशांत किशोर यह कहने से चूकते नहीं हैं कि सरकार तो हम ही बनायेंगे, सत्ता में तो हम ही आयेंगे।
पुलिस प्रशासन द्वारा पार्टी विशेष के लोगों को मतदान करने में रुकावटें डालने के बावजूद भी वोटिंग की रफ्तार इतनी तेज थी कि वह सुबह 9 बजे 13 फीसदी, 11 बजे 27 फीसदी, 01 बजे 42 फीसदी, 3 बजे 54 फीसदी वोट पड़ चुके थे। 5 बजे 60 फीसदी पार करते हुए 6 बजे 65 फीसदी के आसपास आकर खड़ा हो गया था। ये आंकड़ा पिछले तमाम चुनाव से हटकर इसलिए है कि बिहार के भीतर अक्सर वोटिंग प्रतिशत कम रहता है। पटना जैसी जगह में पर भी 50 – 55 फीसदी के भीतर ही वोटिंग होती थी वहां का भी रिकार्ड टूट गया है। कई विधानसभा क्षेत्रों में मसलन गोपालगंज, लखीसराय, मुंगेर में पिछले चुनाव की वोटिंग का रिकॉर्ड तो तीन बजे ही टूट गया था। नितीश कुमार का वोटर बेहद साइलेंट नजर आया। यह भी नजर आया कि एंटी इनकमबेंसी नीतीश के खिलाफ नहीं है बल्कि सत्ताधारी पार्टी के तौर पर बीजेपी के खिलाफ है। कांग्रेस के सामने सहयोगी पार्टियों के वोट ट्रांसफर होने का संकट दिखाई दिया। लेफ्ट पार्टियों को अपने पारंपरिक वोट बैंक (मजदूर, किसान, दिहाड़ी मजदूर) पर भरोसा तो दिखा। मुकेश साहनी मल्लाह को एकजुट रख पाये या नहीं यह एक सवाल है लेकिन हर जगह पर अतिपिछड़ा वोटर बटा हुआ दिखा। चिराग पासवान के साथ पासवान तो एकजुट है लेकिन चिराग के भरोसे बीजेपी उलझी हुई दिखी इसीलिए दोनों एक-दूसरे के वोट ट्रांसफर को लेकर फंस सी गई हैं। जहां पर भी लोजपा और बीजेपी चुनाव लड़ रही है या जहां पर तीर नहीं है वहां पर जेडीयू का वोटर यानी तीर लालटेन यानी आरजेडी की तरफ ट्रांसफर होता हुआ दिखाई दिया। जो साफ तौर पर मैसेज दे रहा है कि चुनाव बाद नये समीकरण बनाने की दिशा में बिहार आगे बढ़ेगा। अगर तीर और लालटेन में गलबहियाँ हो रही है तो फिर यह भी मैसेज साफ है कि पिछली बार की तुलना में जेडीयू की सीटें बढ़ रही हैं और बीजेपी की सीटें घट रही है। मगर इसका ये मतलब कतई नहीं है कि आरजेडी लाभालाभ की स्थिति में है।
क्योंकि एक सोची समझी रणनीति और आंकडों की तैयारी के साथ पहली बार चुनाव मैदान में उतरी जन सुराज पार्टी यानी प्रशांत किशोर ने सबसे ज्यादा बीजेपी को नुकसान पहुंचाने का काम किया है। प्रशांत किशोर ने विधानसभा का पूरा डाटा एकत्रित किया। उन्होंने विधानसभा वार जातियों को साधने के हिसाब से जातिगत उम्मीदवार तय करने और उनके साथ शिक्षा को जोड़ने का काम किया। यानी कह सकते हैं कि जन सुराज एक सरप्राइजिंग एलीमेंट नजर आती है। वैसे तो सरप्राइज जेडीयू भी दे सकती है। जन सुराज के पास वोट किसके आयेंगे इसको लेकर सबसे ज्यादा घबराहट बीजेपी के भीतर है। क्या ओवैसी की पार्टी का कुछ हद तक मुस्लिम वोटर जन सुराज को वोट करेगा। प्रशांत किशोर की नजर तो महागठबंधन के MY समीकरण में सेंध लगाने की भी है। जिस तरह से वोट देने के लिए महिला वोटर सामने आई हैं क्या वो नितीश की सत्ता को बचाना चाहती हैं या फिर उनके निशाने पर बीजेपी है निपटाने के लिए। तो फिर महिलाओं का वोट क्या नितीश से हटकर जन सुराज की तरफ शिफ्ट होगा.? कल तक जो युवा तबका अधिकतम 15 फीसदी वोट करने निकलता था इस बार वो भी बड़ी संख्या में वोट करने निकला है। इसलिए इस बार 5 से 10 परसेंट वोट ज्यादा गिरा है। तो क्या युवा, प्रवासी मजदूर, मिडिल क्लास के भीतर बीजेपी को लेकर सवालों का पुलिंदा और उनके लिए प्रशांत किशोर बतौर एक नायक आकर खड़े हो गए हैं।
पटना, बक्सर, नालंदा, दरभंगा, मुज़फ़्फ़रपुर, सारण, वैशाली, समस्तीपुर, बेगूसराय में जन सुराज पार्टी की एंट्री चिराग और मोदी की धड़कने बढ़ा रही है। लखीसराय में विजय सिन्हा (बीजेपी) के सामने अमरेश कुमार (आरजेडी) है लेकिन यहां जन सुराज ने भूमिहार शिक्षाविद सूरज कुमार को उतारा है। साफ है कि जन सुराज की नजर बीजेपी के कोर वोटर पर है। यानी जो पैटर्न जन सुराज ने चुना है वो है कि उम्मीदवारों की जाति और उनके प्रोफेशन को लेकर कैसे बीजेपी को निशाने पर लिया जाय या लिया गया। ये एक खुली किताब है शायद इसीलिए लखीसराय की वोटिंग ने यह जतलाना शुरू कर दिया कि विजय सिन्हा के सामने मुश्किल तो है। ऐसी ही मुश्किल तारापुर में सम्राट चौधरी के सामने भी है। यहां से आरजेडी के अरुण शाह हैं तो जन सुराज ने राजपूत और पेशे से चिकित्सक संतोष सिंह को मैदान में उतारा है। यहां पर भी निशाने पर बीजेपी का कोर वोटर ही है। मतलब जाति और प्रोफेशन का काकटेल बीजेपी को कितना नुकसान पहुंचायेगा अनुमान लगाया जा सकता है। सिवान में मंगल पांडे (बीजेपी), अवध बिहारी (आरजेडी), के सामने जन सुराज ने मुस्लिम समुदाय से बिजनेसमैन इंतखाब अहमद को खड़ा कर मंगल पांडे को बख्श कर आरजेडी के एम वाई समीकरण को निशाने पर ले लिया। साहिबगंज में राम कुमार सिंह (बीजेपी), पृथ्वीनाथ राज (आरजेडी) राजपूत ठाकुर हरिकिशोर सिंह। निशाने पर बीजेपी का कोर वोटर। कुडनी में केशव प्रसाद गुप्ता (बीजेपी), सुनील कुमार सुमन (आरजेडी) के सामने मुस्लिम कैंडीडेट मोहम्मद अली इरफान। निशाने पर आरजेडी का एम वाई समीकरण। जाले में ऋषि कुमार (कांग्रेस), जिवेश कुमार (बीजेपी) लोहार जाति के रंजीत कुमार शर्मा (जन सुराज), मशकूर अहमद रहमानी (कांग्रेस एमएलए बागी निर्दलीय प्रत्याशी)। यानी कांग्रेस को झटका और बीजेपी की लाइन क्लियर। ये मैसेज शायद बिहार चुनाव में जन सुराज के जरिए काउंटेंसी दर काउंटेंसी उस राजनीति को साधने का है कि हम ही सरकार बनायेंगे, हम ही सरकार में आयेंगे। तो क्या बिहार की परिस्थितियां इन समीकरणों से आगे निकल चुकी है जहां पर कोई भी एक ग्रुप यानी एनडीए हो या महागठबंधन अपने बूते सत्ता में नहीं आ पायेगा ?
इसीलिए दरभंगा सदर में बीजेपी को निशाने पर लेते हुए जन सुराज ने रिटायर्ड पुलिस महानिरीक्षक (आईजी) आर के मिश्रा को टिकिट दी है जहां पर उनका मुकाबला संजय सरोगी (बीजेपी), उमेश साहनी (वीआईपी) और पुष्पमा प्रिया चौधरी से है। आरक्षित सीट सोनवर्षा में जन सुराज के सेवानिवृत्त शिक्षक सतेन्द्र कुमार की टक्कर रत्नेश सदा (जेडीयू) और कांग्रेस की सरिता देवी से है। आमनोर (सारण) में बीजेपी के कृष्ण कुमार मंटू और आरजेडी के सुनील राय के सामने भूमिहार राहुल सिंह को टिकिट दी है। बिहार शरीफ में दिनेश कुमार कुशवाहा जन सुराज से, डॉ सुनील कुमार बीजेपी और शिव कुमार यादव सीपीआई आमने सामने हैं। कल्याणपुर (समस्तीपुर) में जन सुराज ने डिप्टी मेयर रहे रामबालक पासवान को उतार कर जेडीयू के महेश्वर हजारी के वोट बैंक में सेंध लगाई है वैसे यहां पर सीपीआई के जीतराम भी मैदान में हैं। नितीश कुमार का इलाका नालंदा यहां पर जन सुराज ने कुर्मी जाति से आने वाली जिला परिषद सदस्य कुमारी पूनम सिन्हा को टिकिट दी है जिनके सामने हैं आरजेडी के कौशलेंद्र कुमार उर्फ छोटे मुखिया तथा बीजेपी के श्रवण कुमार। पटना के भीतर बांकीपुर में नितिन नवीन बीजेपी और रेखा गुप्ता आरजेडी के सामने जन सुराज ने खड़ा कर दिया भूमिहार वंदना कुमारी को।
माना जाता है कि वोटिंग पैटर्न में अगर 5 फीसदी का स्विंग होता है तो सत्ता बदलती है और 10 फीसदी का स्विंग तो सत्ता के खिलाफ एक सुनामी की तरह होता है लेकिन अगर एंटी इनकमबेंसी नितीश कुमार को लेकर नहीं है तो क्या 10 फीसदी बढ़े हुए वोट जन सुराज के खाते में जा रहे हैं। बड़ी तादाद में तो महिलायें भी वोट करने निकली मगर जिस तरह से उन्हें वोट करने से रोका गया उसको लेकर वो बीजेपी को निशाने पर लेकर कोसती नजर आईं। दो डिप्टी सीएम सहित डेढ़ दर्जन मंत्रियों के भाग्य का फैसला होना है। अब तो महागठबंधन की तरफ से सीएम फेस होने के कारण तेजस्वी यादव भी वीवीआईपी की कतार में खड़े हो गए हैं। जो राघवपुर में बीजेपी के सतीष कुमार यादव के खिलाफ अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। छपरा की सीट जहां से बीजेपी लगातार जीतती आ रही है इस बार हालत नाजुक है क्योंकि यहां से लोकप्रिय खेसारी लाल यादव का पलड़ा भारी इसलिए दिखाई दे रहा कि बीजेपी ने लोकप्रिय महापौर रही वीणा की जगह छोटी कुमारी को टिकिट दिया है और वीणा इंडिपेंडेंट खड़ी हो गई है जिससे महिलाओं का वोट बंटता हुआ दिखाई दे रहा है। मधेपुरा में जेडीयू की कैंडीडेट कविता कुमारी सिन्हा के लिए आरजेडी के चन्द्रशेखर को हराना आसान नहीं है क्योंकि यहां पर यादव 32 फीसदी, मुस्लिम 11 फीसदी, दलित 17 फीसदी, अति दलित 14 फीसदी हैं। मोकामा में जेडीयू नेता केन्द्रीय मंत्री ललन सिंह ने अपनी साख को दांव पर लगा दिया है क्योंकि यहां जेडीयू प्रत्याशी बाहुबली अनंत सिंह को चुनाव दौरान हुई हत्या के कारण जेल भेज दिया गया है और कमान ललन सिंह ने अपने हाथ में ले ली है। यहां से आरजेडी प्रत्याशी वीणा देवी हैं जो कि बाहुबली सूरजभान की पत्नी हैं। यानी सही मायने में मुकाबला दो बाहुबलियों के बीच में है। सहरसा में जहां बीजेपी का पलड़ा भारी नजर आ रहा है वहीं अलीनगर में मैथली ठाकुर की हालत अच्छी नहीं है। वोटर का अग्रेसिव होना, वोट आफ पर्सेंटेज हाई होना और तेजस्वी यादव का मुख्यमंत्री चेहरा होना क्या वाकई यही कारण है कि पुलिस प्रशासन की वाॅडी लेंग्वेज बताने लगी है कि बिहार में सत्ता परिवर्तन होने जा रहा है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार




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