हृदय स्वास्थ्य संकट: भारत में मृत्यु के पीछे छुपा खतरा !
भारत में हृदय रोग मृत्यु का प्रमुख कारण बने हुए हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, भारत में हृदय रोगों के मामलों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है, और यह वैश्विक औसत से भी अधिक है। इसका प्रमुख कारण उच्च एलडीएल (खराब) कोलेस्ट्रॉल स्तर है, जो समय पर जांच और उपचार से नियंत्रित किया जा सकता है। कहना ग़लत नहीं होगा कि आज की आधुनिक दुनिया में जीवनशैली में तेजी से बदलाव आया है। तकनीकी विकास, काम का तनाव, असंतुलित खानपान और शारीरिक गतिविधियों की कमी ने मानव स्वास्थ्य पर गहरा प्रभाव डाला है।
सच तो यह है कि आज की भागम भाग भरी इस जिंदगी में जंक फूड, प्रोसेस्ड फूड, अधिक तेल, नमक और शक्कर का सेवन बढ़ गया है। फल, सब्ज़ियाँ और फाइबर युक्त भोजन की कमी से शरीर में वसा जमा होती है और अधिक कैलोरी सेवन से मोटापा बढ़ता है, जो हृदय रोग का बड़ा कारण है।
यदि हम यहां पर भारत में मोटापे की राष्ट्रीय स्थिति की बात करें तो भारत में मोटापे की औसत दर लगभग 40.3% है, जिसमें महिलाओं में यह दर 41.88% और पुरुषों में 38.67% है। शहरी क्षेत्रों में यह दर ग्रामीण क्षेत्रों की तुलना में अधिक है। आंकड़े बताते हैं कि पुडुचेरी, चंडीगढ़, और दिल्ली जैसे राज्यों में मोटापे की दर उच्चतम है। उदाहरण के लिए, पुडुचेरी में महिलाओं में मोटापे की दर 47.6% और पुरुषों में 43.3% है।
वहीं दूसरी ओर यदि हम यहां पर महिलाओं और युवाओं में मोटापे की स्थिति की बात करें तो 35 से 49 वर्ष की आयु वर्ग में लगभग 50% महिलाएँ या तो अधिक वजन वाली हैं या मोटापे से ग्रस्त हैं। यह स्थिति विशेष रूप से दक्षिण एशियाई महिलाओं में अधिक देखी जाती है। हाल ही में किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि शहरी कॉलेज छात्रों में मोटापे की दर 38.4% है, जिसमें 19.4% छात्रों में क्लास I मोटापा, 9.6% में क्लास II मोटापा, और 0.6% में मोर्बिड मोटापा पाया गया।
एक हालिया अध्ययन के अनुसार, भारत के लगभग 20% परिवारों में सभी वयस्क सदस्य अधिक वजन वाले या मोटापे से ग्रस्त हैं। आंकड़े बताते हैं कि 5 से 19 वर्ष की आयु वर्ग में मोटापे की दर 8.4% और अधिक वजन की दर 12.4% है।

बहरहाल, आज पहले की तुलना में शारीरिक गतिविधियों में भी कमी आई है। ऑफिस में लंबे समय तक बैठकर काम करना, वाहन का अधिक उपयोग और व्यायाम की कमी से रक्त संचार धीमा होता है। शरीर में ऊर्जा का उपयोग न होने से अतिरिक्त वसा जमा होती है और धमनियों में रुकावट की संभावना बढ़ती है। धूम्रपान, तंबाकू व शराब सेवन, और नींद की कमी से हार्मोन असंतुलन, मोटापा और उच्च रक्तचाप जैसी समस्याएँ बढ़ती हैं।
इस क्रम में हाल ही में कॉजेज ऑफ डेथ इन इंडिया: 2021-23 शीर्षक से जारी रिपोर्ट बताती है कि भारत में सबसे अधिक करीब 31 फीसदी मौतें दिल की बीमारियों के कारण होती हैं। सर्वेक्षण में यह पता चला है कि 30 से अधिक उम्र वाले लोगों में मौत की सबसे बड़ी वजह यही है। देश के 28 राज्यों और आठ केंद्रशासित क्षेत्रों में करीब 88 लाख लोगों पर किए गए इस सर्वेक्षण से यह पता लगाने की कोशिश की गई थी कि भारत में मौत की वजह क्या है और किस बीमारी से कितनी जान जा रही है?
एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार 2021 में कोविड-19 महामारी के कारण मृत्यु दर में वृद्धि हुई। हालांकि, 2022 और 2023 में स्थिति में सुधार देखा गया, लेकिन महामारी के प्रभाव से उत्पन्न स्वास्थ्य संकटों का असर अभी भी महसूस किया जा रहा है।
आत्महत्या भी मृत्यु का एक बड़ा कारण बनकर उभर रही है। एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार साल 2022 में भारत में 171,000 आत्महत्याएँ दर्ज की गईं, जो 2021 की तुलना में 4.2% अधिक थीं। यह आंकड़ा 2018 की तुलना में 27% अधिक है। आत्महत्याओं में दैनिक वेतनभोगी श्रमिकों की संख्या अधिक है, जो मानसिक स्वास्थ्य और सामाजिक सुरक्षा की आवश्यकता को दर्शाता है।
इतना ही नहीं, 2021 में भारत में 155,622 सड़क दुर्घटनाएँ हुईं, जिनमें से 69,240 मौतें दोपहिया वाहनों से संबंधित थीं। राष्ट्रीय राजमार्गों पर दुर्घटनाओं की संख्या अधिक है, जो सड़क सुरक्षा उपायों की आवश्यकता को दर्शाता है।
भारत में हर साल लगभग 220,000 लोग ट्यूबरकुलोसिस (टीबी) के कारण मरते हैं। यह देश में संक्रामक रोगों में प्रमुख है और वैश्विक टीबी के मामलों का एक बड़ा हिस्सा भारत में है। इतना ही नहीं, जलजनित घटनाएँ, विशेषकर बच्चों के लिए, एक प्रमुख असंक्रामक मृत्यु कारण हैं। सर्वेक्षण बताते हैं कि भारतीयों में मौत की सबसे बड़ी वजह (56.7 फीसदी) गैर-संक्रामक रोग हैं, जिसके बाद सांस के संक्रमण से लोगों की जान (9.3 प्रतिशत) जा रही है। फिर, कैंसर और ट्यूमर, सांस संबंधी अन्य रोगों का स्थान आता है। वैसे, नवीनतम 2022 के वैश्विक आंकड़े भी यही बताते हैं कि दुनिया में सबसे अधिक मौतें (लगभग 32 प्रतिशत) हृदय संबंधी बीमारियों से ही होती हैं।
वास्तव में, आज की भागम-भाग भरी जिंदगी में हमें यह चाहिए कि हम नमक, चीनी और वसा आदि पर नियंत्रण करें तथा हमें यह चाहिए कि हम संतुलित और पौष्टिक भोजन लें। इतना ही नहीं, कम से कम 30 मिनट रोज नियमित व्यायाम करें। तनाव कम करने के लिए योग, ध्यान और गहरी साँस लेने की तकनीक अपनाएँ। धूम्रपान और शराब से बचें। पर्याप्त नींद लें तथा नियमित स्वास्थ्य जांच कराएँ और ब्लड प्रेशर व शुगर पर नज़र रखें। वास्तव में, सच तो यह है कि यदि शारीरिक निष्क्रियता से बचा जाए, तो हृदय रोगों से काफी हद तक बचाव हो सकता है।
एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार भारत मोटापे और अधिक वजन से ग्रस्त वयस्कों वाले देशों में चीन के बाद दूसरे स्थान पर आता है। आंकड़े बताते हैं कि 2021 में यहां की 18 करोड़ आबादी मोटापे की शिकार थी। कहना ग़लत नहीं होगा कि अत्यधिक वजन सीधे तौर पर दिल की बीमारियों से जुड़ा है। मोटापे से रक्तचाप (बीपी) बढ़ने के साथ-साथ दिल की धड़कन अनियमित हो सकती है और शरीर में कोलेस्ट्रॉल का स्तर भी बढ़ सकता है, जो हृदयाघात की बड़ी वजहों में एक है।
बहरहाल, यहां पाठकों को बताता चलूं कि हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कुछ समय पहले लाल किले से देशवासियों को अपने संबोधन में मोटापा कम करने का आह्वान करते हुए स्वस्थ जीवनशैली अपनाने पर ज़ोर दिया था। उस समय उन्होंने यह कहा था कि— ‘बढ़ता मोटापा न केवल व्यक्तिगत स्वास्थ्य पर बल्कि समाज और देश की उत्पादकता पर भी नकारात्मक असर डालता है।’ दरअसल, उस समय हमारे देश के प्रधानमंत्री ने लोगों से जागरूक होकर संतुलित आहार, नियमित व्यायाम, योग, और सक्रिय जीवनशैली अपनाने की अपील की थी। उन्होंने यह बताया था कि आधुनिक जीवनशैली में जंक फूड, शारीरिक गतिविधि की कमी और मानसिक तनाव मोटापे की बड़ी वजह बनते जा रहे हैं।
इसके समाधान के रूप में उन्होंने सरकार द्वारा चलाई जा रही विभिन्न योजनाओं जैसे कि स्वास्थ्य जागरूकता अभियान, फिट इंडिया मूवमेंट, और योग दिवस जैसे कार्यक्रमों का भी उल्लेख अपने संबोधन में किया था। इन कार्यक्रमों के माध्यम से समाज में स्वास्थ्य के प्रति सकारात्मक सोच को बढ़ावा देने की बात उन्होंने कही थी। वास्तव में, आज के समय में स्वस्थ जीवनशैली के लिए लोगों को जागरूक करना निहायत ही जरूरी है।
आज तकनीक और नवाचार का युग है और इस युग में हृदय रोगों से बचाव में तकनीक का योगदान आज बहुत महत्वपूर्ण हो गया है। आधुनिक चिकित्सा, डिजिटल उपकरणों और स्वास्थ्य निगरानी प्रणालियों की मदद से हृदय संबंधी समस्याओं को समय पर पहचानना और उनका इलाज करना आसान हुआ है। फिटनेस ट्रैकर्स और स्मार्टवॉच इसमें बहुत ही उपयोगी साबित हो सकते हैं। आज के समय में डॉक्टर से ऑनलाइन परामर्श संभव है। टेलीमेडिसिन सुविधा के कारण विशेषकर दूरस्थ क्षेत्रों के लिए आज नियमित जांच और उपचार योजना बनाना आसान हो गया है।
इमेजिंग तकनीकें जैसे कि इकोकार्डियोग्राफी और सीटी एंजियोग्राफी हृदय की स्थिति की स्पष्ट जानकारी देती हैं। एआई आधारित निदान भी उपयोगी साबित हो सकता है। इतना ही नहीं, हार्ट मॉनिटरिंग डिवाइसेज़ घर बैठे उपयोग कर सकते हैं और डॉक्टर से नियमित डेटा साझा कर सकते हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि तकनीक ने हृदय रोगों की पहचान, उपचार और रोकथाम को अधिक प्रभावी, सुरक्षित और सहज बना दिया है। स्मार्ट उपकरण, एआई आधारित निदान और टेलीमेडिसिन जैसे उपकरण समय पर सहायता प्रदान करते हैं, जिससे जीवन की गुणवत्ता बेहतर होती है और गंभीर समस्याओं से बचाव संभव होता है।
अंत में यही कहूंगा कि अच्छी जीवनशैली अपनाना केवल शरीर को स्वस्थ रखने के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक संतुलन, ऊर्जा, आत्मविश्वास और दीर्घायु के लिए भी आवश्यक है। संतुलित जीवनशैली शरीर और मन दोनों को मजबूत बनाती है, रोगों से बचाती है और जीवन की गुणवत्ता में सुधार करती है।
सुनील कुमार महला
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
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