खरी – अखरी : मोदी की गारंटियों को पहले ही चुनावी जुमला बता चुके हैं अमित शाह
इन दिनों चल रहे चुनाव प्रचार के दौरान भाजपाई खेमे से यही स्लोगन सुनाई दे रहा है “मोदी की गारंटी। मोदी है तो मुमकिन है। मोदी का मतलब है हर चीज की गारंटी”। इस स्लोगन का जाप भाजपाईयों से ज्यादा खुद नरेन्द्र दामोदर दास मोदी करते हुए मिंया मिठ्ठू हो रहे हैं। भाजपा का घोषणापत्र भी पार्टी के घोषणापत्र की जगह नरेन्द्र मोदी की गारंटी का घोषणापत्र बनकर रह गया है। जबकि संसदीय प्रणाली में पार्टी की जनघोषणा ही घोषणापत्र या वचनपत्र होता है। देश पार्टी से बड़ा है और पार्टी व्यक्ति से बड़ी है। व्यक्ति आते-जाते रहते हैं मगर पार्टी जनघोषणा पत्र से भाग नहीं सकती। पार्टी का घोषणापत्र या वचनपत्र किसी व्यक्ति के नाम की गारंटी नहीं हो सकता है । कभी खुद को सबसे अलग चाल-चरित्र-चेहरा बताने वाली पार्टी का चाल-चरित्र-चेहरा आज एक व्यक्ति (नरेन्द्र दामोदर दास मोदी) के आगे सिमट कर बौना हो चुका है। जबकि मोदी से लाख दर्जे ऊंचा व्यक्तित्व अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी और मुरलीधर मनोहर जोशी जैसों का था मगर उन्होंने भी पार्टी को अपने से आगे रखा है।
जहां तक गारंटियों का सवाल है तो मोदी ने कांग्रेस से सत्ता हथियाने के लिए 2014 में भी गारंटी दी थी – बेलगाम हो रही मंहगाई को रोकने की, विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाकर हर किसी के खाते में 15 लाख रुपये जमा करने की, डिफेंस डील में हो रही दलाली को रोकने की, डालर के मुकाबले कमजोर होते रुपये को मजबूत करने की, सीमा पर शहीद हो रहे जवानों का बदला लेने की। मगर हुआ क्या – 2014 के मुकाबले मंहगाई के साथ ही बेरोजगारी भी बढकर अपने रिकार्ड स्तर पर पहुंच गई है । विदेशी बैंकों में जमा काला धन वापस लाना तो दूर देश के भीतर का ही काला धन अलग – अलग तरीके से सफेद कर दिया गया। डिफेंस डील में हो रही दलाली रोकना तो दूर खुद “आज रपट जायें तो हमें न उठईयो” कहते हुए राफेल की कालिख पोत ली है । इसके पहले भी भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष बंगारू लक्ष्मण रक्षा सौदे में दलाली लेते रंगे हाथों पकड़ाए गए थे। डालर के मुकाबले गिरते रुपैया पर की गई टिप्पणी कि “रुपैया उसी देश का गिरता है जिस देश का प्रधानमंत्री गिरा हुआ होता है” खुद का थूका खुद के मुंह पर आ गिरा है, रुपैया गिरने का रोज एतिहासिक रिकार्ड बना रहा है। सीमा पर सैनिकों की शहादत पर राजनीति करने के लिए “एक के बदले दस सिर” काटकर लाने की डींगें हवा-हवाई हो गई। चीनी सैनिकों द्वारा भारत की सीमा में घुसकर भारतीय सैनिकों की हत्या करने पर भी चीन को गीदड़ भभकी तक देने का साहस नहीं दिखाया गया बल्कि उल्टा यह कहा गया कि भारत की सीमा में न कोई आया न कोई मरा है । गृह मंत्रालय की रिपोर्ट बताती है कि मनमोहन सिंह सरकार से डेढ़ गुना ज्यादा सैनिकों की शहादत नरेन्द्र मोदी सरकार के समय हुई है।
2019 में जनवरी तक वोट मांगने लायक 5 साल की कोई करनी – करतूत नहीं थी। चुनाव के पहले ऐसा कुछ चाहिए था जो जनता में छद्म राष्ट्रवाद भर सके और इसके लिए हुआ पुलवामा में अर्धसैनिकों का हत्याकाण्ड। जैसे मोदी और उसकी भाजपा को मुंह मांगी मुराद मिल गई। सैनिकों की शहादत के नाम पर वोट मांगे गये। मोदी की सत्ता में वापसी तो हुई मगर इन पांच सालों में इस बात का पता लगाने का कोई काम नहीं किया गया कि वहां 300 किलो आरडीएक्स पहुंचा कैसे ? जम्मू-कश्मीर के तत्कालीन गवर्नर सत्यपाल मलिक ने तो पुलवामा कांड को लेकर मोदी सरकार पर गंभीरतम आरोप लगाये। मगर मोदी सरकार ने न तो मलिक के आरोपों पर कोई सफाई दी, न ही मलिक के खिलाफ कोई कार्रवाई की। हाल ही में 13 दिसम्बर 2023 को संसद की सुरक्षा में गंभीर चूक हुई। उस पर भी मोदी सरकार ने चुप्पी की चादर तान ली। उल्टा कार्रवाई करने की मांग करने वाले डेढ़ सैकड़ा विपक्षी सांसदों को सदन गमन सुना दिया गया।
भाजपा ने अपना घोषणा पत्र मतदान शुरू होने के महज 5 दिन पहले जारी किया। वह भी मतदाताओं को भरमाने के लिए थाली में पानी भरकर चांद उतारने की कोशिश बतौर। भाजपा का घोषणा पत्र जिसे वह संकल्प पत्र कहती है उस पर नजर डाली जाय तो 2014 में “एक भारत – श्रेष्ठ भारत” 64 पन्ना नरेन्द्र मोदी की मध्य में एक फोटो। 2019 में “संकल्पित भारत – सशक्त भारत” 54 पन्ना नरेन्द्र मोदी की 6 फोटो। 2024 में भारत गदहे के सींग की माफिक गायब कर दिया गया है । भारत सिमट कर रह गया “मोदी की गारंटी” में। “लाली देखूं लाल की जित देखूं तित लाल” की तर्ज पर अलग – अलग मुद्राओं भाव – भंगिमाओं तथा अलग – अलग परिधानों में नरेन्द्र मोदी की 52 फोटोज। जो यह बताने के लिए पर्याप्त है कि भाजपा “हाशिये के भी हाशिये” पर आ गई है। भारत के स्थान पर नरेन्द्र मोदी प्रतिस्थापित हो गये हैं। संसदीय लोकतांत्रिक में राजनीतिक दल चुनाव लड़ते हैं जनता दल को चुनती है वचन बाध्यता दल की होती है। दुर्भाग्य यह है कि भारतीय जनता पार्टी अपनी साख पर नहीं नरेन्द्र मोदी की साख पर चुनाव लड़ रही है। गारंटी भाजपा नहीं नरेन्द्र मोदी दे रहे हैं।
25 नवम्बर 1949 (भारत में संविधान मंजूर करने वाला दिन) को डाॅ भीमराव अम्बेडकर ने कहा था कि “किसी व्यक्ति को, चाहे वह कितना भी महान क्यों न हो, इतनी शक्तियां दे देना (चरणों में रख देना) कि वह संविधान को ही पलट दे संविधान और लोकतंत्र के लिए खतरनाक है। राजनीति में भक्ति या व्यक्ति पूजा संविधान पतन और नतीजे में तानाशाही के रास्ते को सुनिश्चित करता है। अम्बेडकर ने यह बात तब कही थी जब राजनीति में महाकाय व्यक्तित्व धनी लोग थे न कि आज के क्षुद्र और बौने लोग। विडंबना यह है कि नरेन्द्र मोदी की गारंटी का यह प्रहसन डाॅ अम्बेडकर के जन्मदिन 14 अप्रैल 2024 को ही मंचित किया गया।
मोदी के दो टर्म में न तो अच्छे दिन आये न ही पुलवामा की सच्चाई सामने आई। अब तीसरे टर्म के लिए एक राष्ट्र – एक नेता का ढिंढोरा पीटते हुए पार्टी के आकार को छोटा कर मोदी की गारंटी का राग अलापा जा रहा है। इस बार तो बेरोजगारी, मंहगाई, आर्थिक विषमता की चर्चा का दिखावा तक नहीं किया जा रहा है। विकसित भारत का नैरेटिव गढ़ कर हर कीमत पर जीत चाहिए चाहे उसके लिए पार्टी की अस्मिता ही दांव पर क्यों न लगानी पड़े। सांसद प्रत्याशियों का चेहरा कहीं नजर नहीं आ रहा है। केंद्रीय मंत्रियों तक को हाशिये पर धकेल दिया गया है। 543 निर्वाचन क्षेत्रों में केवल एक नाम नरेन्द्र मोदी ही चुनाव लड़ रहे हैं। 1999 और 2004 के चुनाव में अटल बिहारी वाजपेयी के कटआउटों पर आंखें तरेरने वाला पितृ संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ 2024 के चुनाव में तो अंध-मूक-बधिर की भूमिका में दिख रहा है। मीडिया चीयर लीडर्स की भूमिका निभाने में लगा हुआ है।
मोदी के भाषणों में मंहगाई और बेरोजगारी शब्द तो भूले से भी सुनाई नहीं देते हैं उन पर हिन्दुत्व भारी पड़ रहा है । मोदी के भाषण से यदि हिन्दू – मुस्लिम, राम मंदिर, नेहरू गांधी शब्द हटा दिए जाएं तो कहने को कुछ नहीं बचता है। 10 साल सरकार चलाने के बाद भी कांग्रेस और नेहरू गांधी परिवार के प्रति जहर उगलते हुए वोट मांगे जा रहे हैं जिसका सीधा मतलब है कि नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में 10 साल से चल रही सरकार के पास खुद की कोई उपलब्धि नहीं है जिस पर सीना ठोंककर जनता से वोट मांगे जा सकें। मोदी जब भृष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने बात करते हैं तो वह भूल जाते हैं कि 80 फीसदी से अधिक भृष्टाचारी भाजपाई पट्टा पहन चुके हैं। कहां मोदी ने गंगा की गंदगी साफ करने की गारंटी दी थी और वह कांग्रेस को ही गंगा मानकर उसकी गंदगी साफ करने में जुटे हुए हैं । कांग्रेस मुक्त भारत तो नहीं हुआ कांग्रेस की गंदगी युक्त भाजपा जरूर हो गयी है।
विडंबना यह है कि आज वही चेहरे देश में सरकार चला रहे हैं जिन्हें 2002 में सुप्रीम कोर्ट ने नफरत के चेहरे और मानवता के लिए खतरा बताते हुए सभ्य समाज में खुला छोड़ने को हानिकारक माना था। इनके द्वारा तो अपने राजनीतिक फायदे के लिए हिन्दू धर्म, राम नाम को ऐसे फेंटा जा रहा है जैसे जुआरी ताश के पत्ते फेंटता है।
समसामयिक है सरदार बल्लभ भाई पटेल का यह कथन कि सरकार किसी की भी हो निडर होकर उसकी कमियों को उजागर करना सच्ची देशभक्ति है, तलवे चाटने वाले देशभक्त नहीं दलाल होते हैं।
खबरी प्रशाद अखबार के लिए
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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