अक्षय तृतीया पर बना रहा है पांच दुर्लभ संयोग जाने महत्व, शुभ मुहूर्त व पूजा विधि
हिंदू धर्म में अक्षय तृतीया का बड़ा महत्व है। इस दिन को बेहद शुभ माना जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन किए गए कार्य का अक्षय फल प्राप्त होता है। पंचांग के अनुसार हर वर्ष वैशाख माह में शुक्ल पक्ष की तृतीया को अक्षय तृतीया मनाई जाती है। साल 2024 में अक्षय तृतीया का पावन त्योहार 10 मई को पड़ रहा है। ऐसे में आइए जानते हैं पूजा विधि, शुभ मुहूर्त और महत्व।
इन शुभ संयोगों में मनाई जाएगी अक्षय तृतीया
अक्षय तृतीया के दिन शुक्रवार है और साथ ही सुकर्मा योग भी इस दिन रहेगा। सुकर्मा योग का आरंभ दोपहर 12 बजकर 7 मिनट से होगा और अगले दिन लगभग 10 बजे तक यह योग बना रहेगा। इस योग में खरीदारी करना बेहद शुभ माना जाता है। इसके साथ ही इस दिन रोहिणी नक्षत्र सुबह 10 बजकर 48 मिनट तक रहेगा, इस नक्षत्र के स्वामी भौतिक सुखों के दाता शुक्र ग्रह हैं इसलिए रोहिणी नक्षत्र में किसी भी तरह का कार्य शुरू करना आपके लिए शुभ फलदायक रह सकता है। इसके बाद पूरे दिन भर मृगशिरा नक्षत्र रहेगा इस नक्षत्र को भी ज्योतिष में शुभ माना गया है। इसके साथ ही तैतिल और गर करण का निर्माण भी इस दिन होगा। इसलिए अक्षय तृतीया को बेहद खास माना जा रहा है। आइए अब जानते हैं कि इस दिन खरीदारी और पूजा के लिए शुभ मुहूर्त क्या रहेगा।
अक्षय तृतीया पूजा और खरीदारी के लिए शुभ मुहूर्त
अक्षय तृतीया के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा आराधना की जाती है। इस दिन पूजा के लिए सबसे सही समय सुबह 5 बजकर 33 मिनट से दोपहर 12 बजकर 17 मिनट तक रहेगा। वहीं खरीदारी करने के लिए पूरा दिन ही शुभ माना जाएगा लेकिन सोना-चांदी अगर आप दोपहर 12 बजकर 15 मिनट के बाद खरीदें तो आपके लिए ज्यादा शुभ साबित हो सकता है, क्योंकि दोपहर के बाद सुकर्मा योग शुरू हो जाएगा। इस दिन माता लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा से आपके घर में बरकत बनी रहती है और पूरे साल भर धन-धान्य की घर में कमी नहीं होती।
साल के 4 अबूझ मुहूर्तों में से एक
ज्योतिष शास्त्र में साल में 4 अबूझ मुहूर्तों के बारे में बताया गया है यानी इन 4 तिथियों पर बिना मुहूर्त के भी शादी विवाह आदि शुभ कार्य किए जा सकते हैं। ये 4 अबूझ मुहूर्त हैं- देवउठनी एकादशी, भड़ली नवमी, अक्षय तृतीया और वसंत पंचमी। अक्षय का अर्थ है संपूर्ण यानी इस दिन जो भी व्यक्ति दान, हवन-यज्ञ आदि करता है, उसे उसका संपूर्ण फल प्राप्त होता है।
परशुराम जयंती भी इसी दिन
धर्म ग्रंथों भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का जन्म भी अक्षय तृतीया तिथि पर ही हुआ था। हर साल इस तिथि पर भगवान परशुराम के भक्त ये पर्व बड़ी ही धूम-धाम से मनाते हैं। मान्यता है कि भगवान परशुराम अमर हैं यानी वे आज भी जीवित हैं और किसी गुप्त स्थान पर रहकर तपस्या कर रहे हैं। परशुराम जी का जन्म दिवस होने के कारण ही ये तिथि इतनी शुभ है।
त्रेता युग का आरंभ भी इसी दिन
धर्म ग्रंथों के अनुसार, अक्षय तृतीया से ही त्रेता युग का आरंभ हुआ था। त्रेतायुग का महत्व अनेक पुराणों में बताया गया है। त्रेता युग में ही भगवान श्रीराम का जन्म भी हुआ था। एक अन्य मान्यता के अनुसार, भगवान विष्णु के नर और नारायण का अवतार भी अक्षय तृतीया पर ही हुआ था। इसी तिथि से भगवान श्रीगणेश ने महाभारत का लेखन शुरू किया था।
इस दिन लक्ष्मी पूजन का विशेष महत्व
ज्योतिषियों के अनुसार, अक्षय तृतीया पर देवी लक्ष्मी की विशेष पूजा की जाती है। आदि गुरु शंकराचार्य ने इसी तिथि पर कनकधारा स्त्रोत की रचना की थी, जिससे देवी लक्ष्मी प्रसन्न हुई थीं। कनक का अर्थ है सोना। इसलिए इस दिन सोने की खरीदी भी विशेष रूप से की जाती है। मान्यता है कि अक्षय तृतीया पर खरीदा गया सोना घर में सुख-समृद्धि लेकर आता है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीयापर किया जाने वाले दान-पुण्य, पूजा-पाठ, जाप-तप और शुभ कर्म करने पर मिलने वाला फलों में कमी नहीं होती है। इस दिन सोने के गहने खरीदने और मां लक्ष्मी की पूजा करने का विशेष महत्व होता है।
अक्षय तृतीया पूजा शुभ मुहूर्त
वैदिक पंचांग के अनुसार वैशाख माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि की शुरुआत 10 मई को सुबह 4 बजकर 17 मिनट पर होगी। वहीं इस तृतीया तिथि का समापन 11 मई 2024 को सुबह 02 बजकर 50 मिनट पर होगी। इस दिन मां लक्ष्मी और भगवान विष्णु की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 5 बजकर 48 मिनट से लेकर दोपहर 12 बजकर 23 मिनट तक रहेगा।
महत्व
अक्षय तृतीया के पर्व को आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है। यह पर्व हिंदू और जैन दोनों ही धर्म के भक्तों के लिए विशेष होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार अक्षय तृतीया तिथि पर ही त्रेता और सतयुग का आरंभ भी हुआ था, इसलिए इसे कृतयुगादि तृतीया भी कहा जाता हैं। अक्षय तृतीया तिथि की अधिष्ठात्री देवी पार्वती हैं। इस पर्व पर स्नान, दान, जप, यज्ञ, स्वाध्याय और तर्पण आदि जो भी कर्म किए जाते हैं वे सब अक्षय हो जाते हैं। शुभ कार्यों को संपन्न करने के लिए अक्षय तृतीया की तिथि बहुत ही शुभ मानी गई है।
व्रत और पूजा विधि
इस दिन भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की आराधना का विशेष महत्व होता है। अपने और परिवार की सुख- समृद्धि के लिए व्रत रखने का महत्व होता है।| अक्षय तृतीया पर सुबह जल्दी उठकर गंगा स्नान या घर में ही गंगाजल मिलाकर स्नान करके भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी की प्रतिमा पर अक्षत चढ़ाना चाहिए। फिर इसके बाद श्वेत कमल के पुष्प या श्वेत गुलाब, धूप-अगरबत्ती और चन्दन इत्यादि से पूजा अर्चना करनी चाहिए। नैवेद्य के रूप में जौ, गेंहू, या सत्तू, ककड़ी, चने की दाल आदि अर्पित करें। इस दिन ब्राह्मणों को भोजन करवाएं और उन्हें दान-पुण्य करके उनका आशीर्वाद लें।
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