ये महाशय चुनाव हारने के लिए लड़ते है ,ना की जीतने के लिए , अब तक लाखो रुपए फूंक चुके !
ऐसा कोई चुनाव नहीं जो हमने लड़ा नहीं , और लड़कर हारा नहीं
अजब उम्मीदवार ,गजब किस्से
प्रेरणा ढींगरा
हार कर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं, शाहरुख खान की फिल्म बाजीगर का यह डायलॉग काफी मशहूर हुआ था पर अब इस डायलॉग का सही मतलब हमें समझ में आया है। 2024 के लोकसभा चुनाव शुरू होने में कुछ ही दिन बचे हैं ऐसे में हर एक उम्मीदवार अपनी जीत की उम्मीद लगाए बैठा है पर आपने क्या ऐसा कोई उम्मीदवार देखा है जो चुनाव सिर्फ हारने के लिए लड़ता हो। अपनी हार में भी कोई जीत का जशन बनाएं तो है न यह कुछ बात तो चौकाने वाली ।
जानिए कौन है वह उम्मीदवार जो हार कर भी अपने आप को बाजीगर समझता है
उम्मीदवारों कि लिस्ट में एक अजीबो गरीब किस्सा सामने आया है। इलेक्शन किंग के नाम से मशहूर पद्मराजन गिनीज बुक में अपना नाम दर्ज करवाना चाहते हैं जिसके लिए वह लगातार चुनाव हार रहे हैं। 238 बार अब तक चुनाव हारने का रिकॉर्ड बनाने वाले पद्मराजन ने एक बार फिर चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया है। तमिलनाडु के रहने वाले निवासी इलेक्शंस किंग ने 239 वी बार सियासी मैदान मैं उतरने की ठानी है।
उन्होंने नामांकन के दौरान बताया कि वह हर वर्ष ₹100000 की आमदनी करते हैं। टायर मरम्मत दुकान के मालिक यानी इलेक्शन किंग ने यह भी बताया कि वह अब तक चुनाव और जमानत राशि में 80 लाख रुपए तक गवा चुके हैं। आपको बता दे कि पद्मराजन राष्ट्रपति पद, सांसद और कई चुनावों में उम्मीदवार रह चुके हैं। उनकी असली चाहत हारने की है क्योंकि गिनीज वर्ल्ड ऑफ बुक रिकॉर्ड में अपना नाम जो दर्ज करवाना है। इस बार वह धर्मपुरी सीट से चुनाव लड़ेंगे।
अजब उम्मीदवार गजब किस्से में एक और उम्मीदवार की कहानी जो चुनाव हारने के लिए ही चुनाव लड़ते थे
उनके जैसे ही एक और व्यक्ति भी चुनाव हारने के लिए मशहूर थे , जिनका नाम था धरती पकड़ लेकिन अब उनकी मृत्यु हो चुकी है। धरती पकड़ जनपद बरेली के निवासी थे, जिन्होंने 1993 में जनपद बिजनौर की सात विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा और सातों सीटों पर उनकी हार हुई। काका जोगिंदर सिंह का जन्म 1918 मे गुजरानवाला पाकिस्तान में हुआ था और मृत्यु 23 दिसंबर 1988 बरेली में हुई थी। आजादी के बाद वह अपने परिवार के साथ उत्तर प्रदेश के बरेली में जाकर बस गए और खास बात तो यह है कि हारने के बाद यह उम्मीदवार लोगों का मिश्री से मुंह भी मीठा करवाता था।
राजनीति में अपनी शुरुआत करने के बाद 1991 में काका जोगिंद्र सिंह यानि ‘धरती पकड़’ ने हरियाणा कि रोहतक व भिवानी सीट से लोकसभा चुनाव नामांकन दाखिल कर दिया। उन्होंने ठाना था कि वह हमेशा आजाद प्रत्याशी की तौर पर चुनाव लड़ेंगे बिना किसी पार्टी का समर्थन करें। एक वक्त था जब उनकी लहर की वजह से पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने उत्तरप्रदेश के विधानसभा चुनाव में बतौर सिख चेहरा जोगिंदर सिंह को मैदान में उतारने का तय किया था, पर इस प्रस्ताव को धरती पकड ने अस्वीकार करा। उन्होंने 1962 में राजनीति के अंदर अपने कदम रखे कई राज्यों की सीटों से 300 बार नामांकन भरा। लेकिन उनकी विचारधारा इलेक्शन किंग से थोड़ी अलग थी। वह चुनाव हारते तो थे पर रिकॉर्ड बनाने के लिए नहीं बल्कि अपने जमानत राशि जब्त करवाने के लिए। उनका माना था कि उनकी जमानत राशि राष्ट्रीय कोष में जाकर देश का भला करेगी।
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