डाबर और कोलगेट आमने-सामने , हाईकोर्ट ने मांगे वैज्ञानिक प्रमाण
टूथपेस्ट विज्ञापन को लेकर एफएमसीजी सेगमेंट की दो बड़ी कंपनियां पहुंच गई कोर्ट
नई दिल्ली
फ्लोराइड-बेस्ड टूथपेस्ट को लेकर देश की दो प्रमुख FMCG कंपनियों — डाबर और कोलगेट — के बीच विवाद अब अदालत की दहलीज पर चल रहा है। दिल्ली हाईकोर्ट ने शुक्रवार को डाबर इंडिया लिमिटेड को अपने विज्ञापन में किए गए दावों के समर्थन में वैज्ञानिक प्रमाण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है।
डाबर ने अपने एक विज्ञापन अभियान में यह दावा किया था कि फ्लोराइड युक्त टूथपेस्ट के उपयोग से बच्चों की बौद्धिक क्षमता (IQ) पर नकारात्मक असर पड़ सकता है, हड्डियां कमजोर हो सकती हैं और दांतों पर स्थायी धब्बे जैसी स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न हो सकती हैं। कोलगेट-पामोलिव ने इसे चुनौती देते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी।
कोलगेट का आरोप: फ्लोराइड को बदनाम कर रही है डाबर
कोर्ट में कोलगेट ने तर्क दिया कि डाबर के विज्ञापन भ्रामक हैं और वे पूरे फ्लोराइड-आधारित टूथपेस्ट वर्ग को संदेहास्पद बनाने की कोशिश कर रहे हैं। कंपनी ने कहा कि डाबर का यह अभियान न केवल प्रतिस्पर्धा की मर्यादाओं का उल्लंघन करता है, बल्कि उपभोक्ताओं को गलत जानकारी भी देता है। कोलगेट का यह भी कहना है कि स्वास्थ्य संगठनों द्वारा निर्धारित 1000 ppm तक फ्लोराइड की मात्रा को सुरक्षित माना गया है और उसका प्रयोग दुनियाभर में मान्य है।
डाबर की सफाई : उपभोक्ताओं को जागरूक करना मकसद
वहीं डाबर ने अपने रुख का बचाव करते हुए कहा कि उनके विज्ञापन में केवल संभावित जोखिमों को उजागर किया गया है, जो विभिन्न स्टडीज़ के निष्कर्षों पर आधारित हैं। हालांकि कंपनी ने यह भी कहा कि वह ‘फेवरेट’ जैसे शब्दों को अपने विज्ञापन से हटाने के लिए तैयार है, ताकि विवाद और न बढ़े।
अगली सुनवाई पर दोनों पक्ष अपना जवाब करें दाखिल : कोर्ट
हाईकोर्ट ने दोनों पक्षों को अपना जवाब दाखिल करने के लिए दो सप्ताह का समय दिया है। मामले की अगली सुनवाई 27 मई को तय की गई है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि डाबर अपने दावों को साबित करने में असमर्थ रहता है, तो उसके विज्ञापन पर रोक लगाई जा सकती है।
यह मामला न केवल उपभोक्ता हितों से जुड़ा है, बल्कि विज्ञापन की नैतिकता और कॉर्पोरेट प्रतिस्पर्धा की सीमाओं पर भी सवाल खड़े करता है।
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