हक की बात : महिला संतो के अखाड़े ‘हाशिये’ पर क्यों ?
सवाल : क्या नासिक कुंभ में साध्वी भी ‘अमृत स्नान’ कर पाएंगी?
यदि नहीं , तो क्या है समाधान !
शर्मा-विनायक फीचर्स) सनातन परंपरा में नारी को शक्ति, ज्ञान और तप का प्रतीक माना गया है- सरस्वती, दुर्गा, सीता, गार्गी, मैत्रेयी इसके प्रमाण हैं। फिर आज के युग में जब महिलाएं हर क्षेत्र में आगे बढ़ रही हैं, तब अखाड़ों जैसे धार्मिक-सांस्कृतिक संस्थानों में उन्हें क्यों वंचित किया जाता है? भारत में 13 प्रमुख अखाड़े हैं जो सभी पुरुष प्रधान हैं – जूना, निर्मल, निरंजनी, अग्नि, महानिर्वाणी आदि। महिलाएं अधिकांशतः ‘साध्वी मंडली’ के नाम से पुरुष अखाड़ों की उपशाखा में गिनी जाती हैं, स्वतंत्र निर्णय शक्ति नहीं होती। महिला अखाड़ा परिषद की स्थापना 2013 में हुई, लेकिन उसे न तो अखाड़ा परिषद की मान्यता मिली, न ही व्यापक सहयोग। *अधिकार और सम्मान*
क्या नासिक कुंभ में साध्वी भी ‘अमृत स्नान’ कर पाएंगी? नासिक कुंभ जैसे विराट आयोजन में प्रमुख अखाड़ों को विशेष अधिकार मिलते हैं – पहला स्नान, ध्वजारोहण, शोभायात्रा, चक्र स्थापना आदि परंतु महिला अखाड़ों के लिए अब भी यह अधिकार अधूरा है। 2016 के उज्जैन सिंहस्थ में महिला अखाड़ा पहली बार सार्वजनिक रूप से उतरा था, लेकिन उसे शाही स्नान का स्थान "बहुत पीछे" मिला था। 2021 हरिद्वार कुंभ में कुछ सुधार हुआ, लेकिन इसे ‘पारंपरिक अखाड़ा अधिकार’ नहीं माना गया। नासिक कुंभ 2027 में यह मुद्दा फिर जोर पकड़ सकता है। अगर महिला साध्वियों को शाही स्नान का समान दर्जा नहीं दिया गया, तो यह न केवल धार्मिक असमानता का प्रमाण होगा, बल्कि सनातन परंपरा की “शक्ति–पूजा” की अवधारणा का भी विरोधाभास होगा।

समाधान क्या है?
धर्म में समानता की पुनर्व्याख्या आवश्यक धर्मगुरुओं, अखाड़ा परिषद, राज्य सरकार और जनता को मिलकर यह विचार करना होगा कि- *"क्या शक्ति के बिना शिव पूर्ण हैं?"* यदि साध्वियां वैराग्य, त्याग, तपस्या और विद्या में समान रूप से समर्पित हैं, तो उन्हें भी अखाड़ों में समान अधिकार मिलना चाहिए। महिला अखाड़ा परिषद को मान्यता, स्वतंत्र ध्वज, स्नान-क्रम में उचित स्थान, और निर्णय लेने की स्वतन्त्रता दी जानी चाहिए। सनातन धर्म का सार ही है – *‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:’।* इसी आधार पर यदि साध्वी महिलाओं के अखाड़ों को यह सम्मान प्राप्त होता है तो यह किसी के अधिकार का हनन नहीं, बल्कि उस धर्म की आत्मा का सम्मान होगा जो शक्ति और ज्ञान दोनों को पूजता है। *(विनायक फीचर्स)*
खबरी प्रशाद के लिए विनायक फीचर से विजय कुमार शर्मा
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