आखिर बिल्ली के गले में घंटी बांधने का वक्त आ ही गया शुरुआत हो गई जम्मू से !
फर्जी पत्रकारिता पर लगेगी लगाम: जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा का बड़ा फैसला, अब सिर्फ मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही सरकारी दफ्तरों में एंट्री
सत्ताधारी दल के नेता सब कुछ जानते हुए भी क्यों रहते हैं चुप ?
अब वक्त आ गया है कि फर्जी पत्रकारों को दिखाया जाए बहार का रास्ता
रीतेश माहेश्वरी
भारत की पत्रकारिता आज एक ऐसे मोड़ पर खड़ी है, जहाँ असली और नकली के बीच की रेखा धुंधली होती जा रही है। कभी यह पेशा ईमानदारी, सच्चाई और जनसेवा का प्रतीक माना जाता था—आज वही पत्रकारिता “माइक पत्रकारों” और “सोशल मीडिया चैनलों” के जाल में उलझती जा रही है। हालात ऐसे हो गए हैं कि किसी भी संस्थान द्वारा आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस का ऐलान होते ही दर्जनों लोग माइक लेकर पहुंच जाते हैं, और आयोजक यह समझ ही नहीं पाते कि असली पत्रकार कौन है और कौन सिर्फ दिखावा।
दो दशक पहले तक पत्रकारिता सम्मान का पेशा था—जहाँ पैसे से ज्यादा साख की कीमत थी। पत्रकार जब किसी कार्यक्रम में जाता था तो उसके लिए अलग से कुर्सी लगाई जाती थी। लेकिन अब हालात उलट चुके हैं। अब पत्रकारिता भी कारोबार बन चुकी है—जहाँ बड़ी गाड़ी और महंगे उपकरण देखकर ही किसी को “सीनियर जर्नलिस्ट” मान लिया जाता है। मीडिया की इस दिखावटी चमक के पीछे सच्चाई यह है कि ईमानदार पत्रकारों की आवाज भी इन “माइकधारी व्यवसायियों” में कहीं दबकर रह गई है।
राजनीतिक दलों को भी इस स्थिति की जानकारी है, लेकिन कोई भी “बिल्ली के गले में घंटी बांधने” की हिम्मत नहीं जुटा पाया। सभी जानते हैं कि फर्जी पत्रकारिता समाज और लोकतंत्र को कितना नुकसान पहुँचा रही है, लेकिन कदम उठाने से कतराते रहे हैं।
इसी बीच, जम्मू-कश्मीर के राज्यपाल मनोज सिन्हा ने वह कर दिखाया जो अब तक कोई सरकार नहीं कर सकी। उन्होंने आदेश जारी कर कहा है कि अब केवल मान्यता प्राप्त पत्रकारों को ही सरकारी दफ्तरों में प्रवेश और रिपोर्टिंग की अनुमति होगी। सूचना विभाग ही यह मान्यता देगा—और इसी से तय होगा कि कौन पत्रकार है और कौन नहीं। यह फैसला मीडिया जगत के लिए ऐतिहासिक माना जा रहा है, क्योंकि पहली बार किसी राज्य ने “फर्जी पत्रकारिता” पर आधिकारिक तौर पर लगाम लगाने की शुरुआत की है।
हालांकि, इस व्यवस्था के साथ एक नई चुनौती भी खड़ी हो सकती है—क्योंकि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर सक्रिय सैकड़ों “सेल्फ-डिक्लेयर” पत्रकार भी खुद को मान्यता के योग्य मानेंगे। ऐसे में यह जरूरी है कि राज्य सूचना विभाग स्पष्ट मानक तय करे। कई विशेषज्ञों का सुझाव है कि केवल RNI (Registrar of Newspapers of India) या PIB (Press Information Bureau) से रजिस्टर्ड संस्थान और पत्रकार ही मान्यता पाने के पात्र हों—चाहे वे डिजिटल, प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से जुड़े हों।
इस निर्णय ने देशभर में चर्चा छेड़ दी है। कुछ लोगों ने इसे “पत्रकारिता की सफाई अभियान” की शुरुआत बताया है, तो कुछ ने इसे “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता” पर अंकुश कहकर आलोचना की है। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर फर्जी पत्रकारों की बढ़ती भीड़ पर अब लगाम नहीं लगी, तो आने वाले वर्षों में असली पत्रकारों की साख और लोकतंत्र की रीढ़—मीडिया—दोनों कमजोर हो जाएंगे।
इसी के साथ भारतीय मीडिया में एक नया चलन और देखने को मिल रहा है शहर कोई भी हो राज्य कोई भी हो लगभग सभी जगह पर एक नया चलन बढ़ रहा है और यह है कि कुछ ऐसे पत्रकार हो पनप गए हैं जिनके पास दहाई की संख्या से भी ज्यादा चैनलों के लिए वह खबर को कवर करते हैं । जब किसी प्रेस कॉन्फ्रेंस में ऐसे पत्रकार पहुंचते हैं तो कई बार तो आयोजक प्रेस कॉन्फ्रेंस शुरू होने के पहले खुश हो जाते हैं कि अनेकों जगहों पर उनकी खबर लगेगी पर अगले दिन सुबह से लेकर शाम तक वह उन सभी चैनलों पर अपनी खबर ढूंढते हैं पर ज्यादातर बार उन्हें निराशा हाथ नजर आती है । ऐसे में सवाल इस बात का भी उठना है कि क्यों नहीं ऐसे लोगों पर भी लगाम लगाई जानी चाहिए ।
इस नए चैनल को लेकर ज्यादातर वरिष्ठ पत्रकार कहते हैं कि हर प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह नियम होना चाहिए कि एक चैनल की आईडी तो एक माइक आईडी हाथ में होनी चाहिए । जिस दिन यह नियम पूरी तरीके से लागू हो गया , समझिए उस दिन से पत्रकारिता सही मायने में होने लगेगी । पर यहां भी सवाल वही है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन ?
पर यहां भी सवाल वही रह जाता है कि बिल्ली के गले में घंटी बांधेगा कौन ? क्योंकि ऐसा काम करने के लिए छाती 56 इंच की चाहिए होती है । और सरकार को तो ऐसे लोगों पर लगाम लगाने पर यह भी ध्यान रखना पड़ेगा कि कहीं ऐसे फर्जी लोग ZEN -Z की तरह न खड़े हो जाए । यानी कि सरकार को इन पर लगाम भी लगानी है और व्यवस्था का भी ध्यान रखना है की व्यवस्था ना खराब होने पाए ।
अब वक्त आ गया है कि देश के अन्य राज्य भी जम्मू-कश्मीर की तर्ज पर ठोस कदम उठाएँ। असली पत्रकारिता का अर्थ है—जनता की आवाज़, सत्ता से सवाल, और सच की खोज। और जब तक फर्जी पत्रकारों की पहचान कर उन्हें बाहर नहीं किया जाएगा, तब तक यह पेशा अपना खोया हुआ सम्मान वापस नहीं पा सकेगा।
यह फैसला सिर्फ जम्मू-कश्मीर की नहीं, बल्कि भारतीय पत्रकारिता की साख बचाने की दिशा में उठाया गया ऐतिहासिक कदम है।




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