अब हरियाणा सरकार पर टेढ़ी नज़र
लोकसभा चुनाव का मतदान हो गया हरियाणा में और अपने अपने अनुमानों में सभी दल जुटे हैं । भाजपा ने मुख्यमंत्री नायब सैनी की अध्यक्षता में समीक्षा बैठक भी कर ली है ।
कमलेश भारतीय
गांवों व शहरों का आंकलन किया जा रहा है । अपने अपने अनुमान हैं और अपने अपने दावे ! अलग तरह का सट्टा बाज़ार ! अलग अलग सर्वे भी सामने आयेंगे ! इस बीच हरियाणा सरकार अल्पमत में आ चुकी थी , तीन निर्दलीय विधायकों द्वारा हरियाणा सरकार से समर्थन वापस ले लेने से ! अब तो विधायक राकेश दौलताबाद के निधन से संकट और बढ़ गया है। ऐसी चर्चायें हैं हरियाणा में, राजनीतिक गलियारों में ! क्या होगा हरियाणा सरकार का ? कहा जा रहा है कि संकट तो है लेकिन सरकार गिरने का खतरा नहीं ! यह कैसा जादू है? यह कैसा गणित है? यह कैसी पहेली है? कैसा तिलिस्म है?
जब लोकसभा चुनाव के दौरान तीन विधायकों ने समर्थन वापस लिया तब पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने तुरंत हिसार में मीडिया के सामने आकर यह बात की कि कांग्रेस कोशिश करे तो हम बाहर से समर्थन देने को तैयार हैं लेकिन कांग्रेस के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने राष्ट्रपति शासन लगाये जाने की मांग को प्राथमिकता दी, हालांकि भारत भूषण बतरा और एक अन्य विधायक राज्यपाल से मिलने गये पर मुलाकात नहीं हुई । इनकी मांग थी कांग्रेस की ओर से कि हरियाणा सरकार को विश्वासमत के लिए राज्यपाल आदेश दें लेकिन यह भी नहीं हुआ और सभी दल हरियाणा सरकार को गिराने की कवायद में समय गंवाने की बजाय लोकसभा चुनाव पर ध्यान केंद्रित किये रहे ।
अब फुर्सत ही फुर्सत है सभी दलों के पास लेकिन सबसे बड़ी कमज़ोरी हैं जजपा के दस विधायक जो एकसाथ, एकजुट नहीं रहे और जजपा सुप्रीमो भी यह विश्वास से नहीं कह सकते कि सभी उनके कहने में हैं और सरकार के विरुद्ध मतदान करेंगे कि। देवेंद्र बबली, जोगीराम सिहाग और रामकुमार गौतम के सुर जजपा हाईकमान के सुर से नहीं मिलते ! फिर हरियाणा सरकार पर संकट है, खतरा नहीं, यह बात सच्ची सी लगने लगती है । शायद कांग्रेस भी जजपा का समर्थन लेकर सरकार बनाने के मूड में नहीं क्योंकि साढ़े चार साल जिसे जी भर कर कोसा भाजपा को समर्थन देने पर, अब उसी का समर्थन कैसे और क्यों ले लें? अब विधानसभा चुनाव आने ही वाले हैं। ऐसे में क्यों दो चार महीनों के लिए यह इल्जाम सिर पर लें कि जजपा के साथ सरकार क्यों बनाई?
फिर भी हरियाणा सरकार पर स़कट के बादल तो मंडरा ही रहे हैं। देखिये, कब तक खैर मनाती है!
कहीं से आवाज़ आ रही है हंसराज हंस के गीत की :
नित खैर मंगा़ं सोहणिया मैं तेरी
दुआ न कोई होर मंगदी!
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