रूस से तेल खरीदने वालों पर ट्रंप की आंखे लाल ,बोले रूस से तेल खरीदा तो 100% लगेगा और टैरिफ !!!!!
तेल संकट की चुनौती: रूस से तेल न खरीदने पर भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या होगा असर?
नई दिल्ली गौरव कोठारी
अंतरराष्ट्रीय कूटनीतिक दबाव और आर्थिक रणनीतियों के बीच भारत एक जटिल ऊर्जा संकट की आशंका से जूझ रहा है। अमेरिका और NATO की ओर से रूस पर प्रतिबंधों की चेतावनी के बाद अब भारत, चीन और ब्राजील जैसे देशों को भी सख्त सेकेंडरी टैरिफ लगाने की धमकी दी गई है। भारत के लिए सवाल सिर्फ तेल खरीदने या न खरीदने का नहीं, बल्कि इससे जुड़ी पूरी अर्थव्यवस्था को संतुलन में रखने का है।
रूस से सस्ते तेल की रणनीति
2022 में यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद पश्चिमी देशों ने रूस से तेल खरीदना बंद कर दिया था। इसी दौरान भारत ने रूस से बड़ी मात्रा में भारी छूट पर तेल खरीदना शुरू किया। इससे भारत को न केवल महंगाई नियंत्रण में रखने में मदद मिली, बल्कि वैश्विक मंदी के दौर में अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने का अवसर भी मिला।
भारत अपनी जरूरत का 85% से अधिक कच्चा तेल आयात करता है, और मौजूदा समय में रूस उसका सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन चुका है, जिसकी हिस्सेदारी 35% से ज्यादा हो चुकी है। ऐसे में अगर रूस से आयात बंद होता है, तो न केवल ऊर्जा संकट गहराएगा, बल्कि आयात लागत और महंगाई दोनों में तेज़ उछाल देखने को मिल सकता है।
अमेरिका की चेतावनी पर भारत की प्रतिक्रिया !
हाल ही में अमेरिकी पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने संकेत दिए कि अगर रूस शांति वार्ता के लिए तैयार नहीं होता, तो रूस से तेल खरीदने वाले देशों पर 100% टैरिफ लगाया जा सकता है। NATO महासचिव मार्क रूटे ने भी भारत, चीन और ब्राजील को चेताया कि व्यापार जारी रखने पर कड़े प्रतिबंध झेलने पड़ सकते हैं।
हालांकि, भारत ने अब तक इस दबाव के आगे झुकने के संकेत नहीं दिए हैं। पेट्रोलियम मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने स्पष्ट किया है कि भारत केवल धमकियों के आधार पर अपनी ऊर्जा रणनीति नहीं बदलेगा। उन्होंने कहा, “हम डरते नहीं हैं। दुनिया को चाहिए कि तेल की मांग 10% कम करे – जो असंभव है – या फिर 90% सप्लायर्स से ज्यादा तेल खरीदे, जिससे कीमतें आसमान छू सकती हैं।”
पुरी ने यह भी चेताया कि अगर भारत रूस से तेल खरीदना बंद करता है तो अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतें 120 से 130 डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच सकती हैं।
क्या यह ट्रंप की कूटनीतिक चाल है ?
विशेषज्ञ मानते हैं कि यह पूरी रणनीति ट्रंप की एक राजनीतिक चाल भी हो सकती है। ET की एक रिपोर्ट के अनुसार, ट्रंप रूस पर दबाव बढ़ाकर शांति वार्ता को मजबूती देना चाहते हैं। वहीं रूस के राष्ट्रपति पुतिन भी दोहरी नीति अपनाए हुए हैं — एक तरफ बातचीत का प्रस्ताव, दूसरी तरफ युद्ध जारी।
अगर भारत और चीन जैसे बड़े ग्राहक रूस से तेल खरीदना बंद कर दें, तो अमेरिका के लिए ये कदम उल्टा भी पड़ सकता है। ऐसे में भारत से उत्पाद आयात महंगा हो जाएगा, और उसका असर अमेरिकी उपभोक्ताओं पर महंगाई के रूप में दिख सकता है — जो खुद ट्रंप के लिए घरेलू राजनीति में चुनौती बन सकता है।
आगे की राह में भारत के पास क्या है विकल्प और चुनौतियाँ ?
अगर भारत को रूस से तेल की आपूर्ति बंद करनी पड़ी, तो उसे सऊदी अरब, इराक, UAE और अमेरिका जैसे वैकल्पिक स्रोतों से महंगे दरों पर तेल खरीदना पड़ेगा। इससे चालू खाता घाटा बढ़ेगा और रुपया दबाव में आ सकता है। साथ ही, पेट्रोल-डीज़ल की कीमतों में उछाल आम जनता की जेब पर सीधा असर डालेगा।
साफ है कि भारत के सामने चुनौती बड़ी है — उसे कूटनीति और ऊर्जा सुरक्षा के बीच संतुलन साधते हुए ऐसी रणनीति बनानी होगी जिससे न तो अंतरराष्ट्रीय संबंध बिगड़ें और न ही घरेलू अर्थव्यवस्था डगमगाए।
रूस से तेल खरीद भारत की ऊर्जा नीति का एक अहम हिस्सा बन चुका है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय दबाव के बावजूद भारत को दीर्घकालिक रणनीति के साथ आगे बढ़ना होगा — जिसमें वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर निवेश, वैश्विक कूटनीति में संतुलन और घरेलू उत्पादन क्षमता का विस्तार शामिल है।
रिपोर्ट: ख़बरी प्रसाद डेस्क
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