किसानों के खिलाफ क्रूरता बर्बरता दमन के रहे मोदी सरकार के 10 साल : रणदीप सुरजेवाला
रणदीप सिंह सुरजेवाला, सांसद, महासचिव, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का बयान
जब भी इतिहास लिखा जाएगा, तब मोदी सरकार के दस साल के कार्यकाल को किसानों के खिलाफ क्रूरता, बर्बरता, दमन और दंशकाल के रूप में जाना जाएगा।
आज, भाजपा की केंद्र सरकार तथा हरियाणा-राजस्थान-उत्तर प्रदेश की भाजपा सरकारों ने देश की राजधानी दिल्ली को एक ‘पुलिस छावनी’ में तब्दील कर रखा है, जैसे कि किसी दुश्मन ने दिल्ली की सत्ता पर हमला बोल दिया हो। दिल्ली के चौतरफा, खासतौर हरियाणा और दिल्ली बॉर्डर पर मंजर क्या हैः-
- सोनिपत में कुंडली और बहादुरगढ़ में टीकरी बॉर्डर पर सीमेंट के बैरिकेड, बड़े-बड़े बोल्डर, रोड-रोलर व कंटेनर्स लगा उन्हें सील कर दिया गया है। यही हाल यूपी और राजस्थान बॉर्डर का भी है।
- जहाँ दिल्ली की चौतरफा ‘किलेबंदी’ की गई है, वहाँ सड़कों पर ‘‘कीलें-बंदी’’ कर दी गई है। दूर तक सड़कों पर बड़ी-बड़ी नश्तर और कीलें बिछा दी गई हैं।
- यही नहीं, हरियाणा की भाजपा सरकार ने ही रतिया और बुडलाडा रोड के बीच दस फीट गहरी और पंद्रह फीट चौड़ी खाई खोद दी है। हाँसी, हरियाणा के निकट मैय्यड़ टोल पर बड़े-बड़े गढ़े खोद दिए गए हैं, तथा सीमेंट बैरियर लगा सीमेंट भर पक्की दीवार लगा दी गई है। यही हाल कैथल, हरियाणा में है, जहाँ खाई खोद कर सीमेंट बैरिकेड्स व कंटेनर लगा दिए गए हैं।
- पंजाब व हरियाणा के बीच घग्घर नदी के पुल पर लोहे की बड़ी-बड़ी कीलें और नश्तर, कंटीली तारबंदी, बड़े-बड़े सीमेंट के पिलर्स और पुराने वाहनों की चेसियाँ लगा सारी सड़क बंद कर दी गई है।
- लगभग पूरे हरियाणा-पंजाब में सभी इंटरनेट सेवाएं बंद कर दी गई हैं, वह भी तब जब बोर्ड एग्ज़ाम बिल्कुल सर पर हैं। दिल्ली के चारों तरफ के जिलों में मौखिक हिदायत दी गई है कि किसी किसान के ट्रैक्टर में दस लीटर से ज्यादा डीज़ल न डालें। मध्य प्रदेश सरकार ने कनार्टक व दूसरे प्रांतों से आ रहे किसानों को ट्रेन से उतारकर गिरफ्तार कर लिया है।
- चौतरफा ज़ुल्म का आलम है। अन्नदाता किसान की न्याय की हुंकार से डरी मोदी सरकार एक बार फिर सौ साल बाद अंग्रेज द्वारा दमनकारी 1917 के बिहार के चंपारण किसान आंदोलन, 1918 के गुजरात के खेड़ा किसान आंदोलन, 1920-21 के अवध के किसान आंदोलन के दमन की कहानी दोहरा रही है।
दिल्ली की सत्ता में बैठे क्रूर और अहंकारी सत्ताधारियों से सिर्फ इतना सवाल हैः - क्या देश का अन्नदाता किसान न्याय मांगने देश की राजधानी दिल्ली में नहीं आ सकता? क्या किसान को दिल्ली की परिधि के सौ किलोमीटर तक भी आने की आजादी नहीं है?
- क्या सरकार यह मानती और सोचती है कि किसान दिल्ली की सत्ता पर आक्रमण करने आ रहा है या फिर जबरन सत्ता पर कब्जा करना चाहता है? यदि हाँ, तो सरकार सामने आकर सबूत दे कि यह दिल्ली की सत्ता के तख्तापलट की कोशिश है। यदि नहीं, तो फिर देश की राजधानी को पुलिस और पैरामिलिटरी की छावनी में बदलने का क्या कारण है?
- देश का अन्नदाता प्रधानमंत्री और देश की सरकार से न्याय न मांगे, तो कहाँ जाए? तो क्या अब न्याय मांगने का कोई और रास्ता या तरीका है? यदि हाँ, तो सरकार बताए ताकि किसान वो दरवाजा खटखटा सके।
- जब किसान आंदोलन पूरी तरह शांतिप्रिय है, तथा जब सालों तक चला पिछला किसान आंदोलन भी शांतिप्रिय था, तो फिर किसान की राह में ‘‘कीलें-बंदी’’क्यों, कंटीले तार क्यों, सीमेंट के बोल्डर और कंटेनर क्यों, सड़कों में खुदी खाईयाँ क्यों, किसानों के पुलिस और पैरामिलिटरी में भर्ती सिपाहियों की संगीनों और बंदूकों के मुँह किसानों की छातियों की ओर क्यों?
- क्या भारत के हुक्मरान को देश की मिट्टी का दर्द, आत्महत्या करते अन्नदाता की वेदना और कराहते हुए हिंदुस्तान की आवाज सुनाई नहीं देती?
o याद करें कि 18 जुलाई, 2022 को तीन काले कानून वापस लेने के बाद केंद्र की भाजपा सरकार ने ही किसानों के समर्थन मूल्य के लिए एक प्रभावी और पारदर्शी कानून बनाने का वादा किया था। किसान और खेत मजदूर को कर्जराहत से मुक्ति देने का मार्ग प्रशस्त करने बारे कहा था। तो फिर किसान इस वादे की गारंटी क्यों न मांगे?
o जब किसान बंजर जमीन का सीना फोड़कर उसमें से जल की निर्मल धारा निकाल सकते हैं, जब हमारे अन्नदाता पथरीली जमीन का गुरूर तोड़कर उसमें जीवन की बीज बो सकते हैं तो फिर ये सत्ता के अहंकार और अन्याय के खर पतवार का समूल नाश भी कर सकते हैं। यह सरकार को जानना होगा।
o इस बार सत्य और असत्य के संघर्ष में छल से सत्ता पर आसीन दुर्याेधन-दुरूशासन चाहें जो दुष्चक्र रच लें, शकुनी मामा चाहे जो चाल चल ले, धर्म भ्रष्ट धृतराष्ट्र चाहें तो अपनी आँखों के साथ साथ जुबां को भी सिल लें लेकिन इस बार हमारे अन्नदाता पिछली बार की तरह सरकार के खोखले वादे और नफरती इरादों के झांसे में नहीं आने वाले हैं। इस बार वो अपना वाजिब हक लिए बिना हस्तिनापुर से नहीं हटनेवाले हैं।
o सरकार ये भी समझ ले कि किसानों की लड़ाई का अभी ये बस आगाज है। अभी तो बस हरियाणा-पंजाब के किसान विजय पताका के साथ कूच किए हैं। देश के बाकी हिस्सों से किसानो की कुमूक जब दिल्ली पहुंचेगी तो सरकार सोच ले इस किसान आंदोलन का आखिरी अंजाम क्या होगा?
o किसान खेत-मजदूर की परवरिश का सबसे बड़ा हिस्सा शांति और सदाचार होता है। हमारी रगों में है कि हमें किसी का हिस्सा नहीं लेना, और अपना हक हर हाल में हासिल करना है। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की ओर से मैं कहूँगा कि हम किसानों की न्याय की मांग का समर्थन करते हैं।
o हमारी मांग है कि आदरणीय प्रधानमंत्री स्वयं किसानों से बात करें और उन्हें न्याय दें।
o सत्ताधारी सरकार यह भी जान लेः-
यूं ही हमेशा जुल्म से उलझती रही है खल्क
न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई
यूं ही हमने हमेशा खिलाए हैं आग में फूल
न उनकी हार नई है, न अपनी जीत नई
जय जवान, जय किसान!
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!