राम मंदिर के बाद अबकी बार 370 पार का भरोसा फिर भी बीजेपी को जरूरत सहयोगियों की
जबकि खुद मोदी कह रहे अबकी बार अपने दम पर 370 पार
खबरी प्रशाद दिल्ली : रीतेश माहेश्वरी
जैसे-जैसे लोकसभा चुनाव 2024 की तारीख नजदीक आ रही है । भारतीय जनता पार्टी देश के हर राज्य में अपना कुनबा बढ़ाने में लगी हुई है । कुनबा बढ़ाने की वंदे भारत ट्रेन महाराष्ट्र से शुरू होकर अब वाया बिहार उत्तर प्रदेश होते हुए अब पंजाब के आउटर सिग्नल पर खड़ी होकर हॉर्न बजा रही है और यहां से उसे सीधे दक्षिण भारत की यात्रा तय करनी है । राम मंदिर उद्घाटन समारोह खत्म होने के बाद भी बीजेपी ने पांच विभूतियों को भारत रत्न देकर भी लोकसभा चुनाव में कहीं ना कहीं वोटरों को साधने की कोशिश की है । सवाल इसी बात का उठ रहा है कि आखिर जब प्रधानमंत्री मोदी बीजेपी को अकेले 370 सीट जीत कर आने की बात कर रहे हैं तो फिर बीजेपी को इतनी घबराहट किस बात की है । क्या बीजेपी राम मंदिर के बावजूद भी मोदी की तीसरी हैट्रिक को लेकर संदेह में है या फिर यहां पर भी बीजेपी को कोई खेल होने की संभावना नजर आ रही है ।
आज की बात को भाजपा के इतिहास से ही शुरू करते हैं 1984 के लोकसभा के चुनाव में भाजपा को दो सीटों पर पहली बार विजय प्राप्त हुई जबकि इंदिरा गांधी की हत्या के बाद उपजी लहर पर कांग्रेस 400 से भी ज्यादा सीट जीतकर राजीव गांधी पहली बार पीएम बने थे । अगर देखा जाए तो यही से बीजेपी का राजनीतिक सफर सही मायने में शुरू हुआ और 1989 के आम चुनाव में राम मंदिर को पहली बार राजनीतिक एजेंडा में शामिल किया गया । इसी बार भारत रत्न प्राप्त करने वाले और तब के भाजपा अध्यक्ष लालकृष्ण आडवाणी ने 1990 में भगवान राम का मंदिर बनाने को लेकर यात्रा प्रारंभ की जिसका फायदा भाजपा को हुआ । और दो सीटों से सफर शुरू करने वाली भाजपा इस बार 85 सीटों पर लोकसभा में विराजमान हुई । जबकि 400 सीटों से भी ज्यादा पानी वाली कांग्रेस इस बार 200 सीटों से भी कम पर आकर सिमट गई । जनता दल की मिली जुली सरकार बनी । मगर यह सरकार ज्यादा दिन चल नहीं पाई और 1991 में दोबारा से माध्यविधि चुनाव हुए । और इस बार बीजेपी ने लोकसभा में राम मंदिर के मुद्दे पर ही चुनाव लड़ा और नारा दिया मंदिर वहीं बनाएंगे । राम मंदिर को अपने मेनिफेस्टो में शामिल करने का फायदा भाजपा को मिला और चुनाव में 120 सीट तो जीती ही वोटो का मत प्रतिशत भी लगभग दोगुना हो गया । यानी की राम मंदिर का मुद्दा भाजपा आम जनमानस में बैठने में कामयाब हो गई ।
1991 के बाद से हुए हर चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के मेनिफेस्टो में राम मंदिर का मुद्दा शामिल रहा और 1991 से लेकर 2019 के चुनाव तक जहां विपक्ष आम जनमानस को कहता रहा की मंदिर वहीं बनाएंगे पर तारीख नहीं बताएंगे , यही बीजेपी का चाल चरित्र और चेहरा है । तो भाजपा ने 22 जनवरी 2024 को राम मंदिर में भगवान राम की प्राण प्रतिष्ठा करके विपक्ष का मुंह तो बंद कर दिया । मगर सवाल इस बात का बना हुआ है कि जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद इस बात का दावा कर रहे हैं कि इस बार भारतीय जनता पार्टी अपने दम पर 370 सीट लेकर आ रही है तो भाजपा को हर राज्य में सहयोगियों की जरूरत क्यों पड़ रही है ?
जब भरोसा 370 सीट जीतने का तो सहयोगियों की जरूरत क्यों ?
दरअसल 2019 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी ने उत्तर भारत में तो बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था और ज्यादातर राज्यों में 100% या 90% के आसपास लोकसभा सीटों पर अपना कब्जा बरकरार रखा था । मगर दक्षिण भारत में बीजेपी के पैर कमजोर हैं और भाजपा की निगाह अब उत्तर भारत से आगे दक्षिण भारत पर भी लगी हुई है कि दक्षिण भारत में भाजपा के पैर किस तरीके से मजबूत हो सकते हैं । क्योंकि उत्तर भारत के ज्यादातर राज्यों में लोकसभा सीट पहले से ही भाजपा के पास है यहां से सीट बढ़ने की गुंजाइश न के बराबर है । सीट बढ़ाने की गुंजाइश तो छोड़ दे भाजपा को यहां अपनी सीटे बचानी भी हैं । चाहे वह गुजरात हो हरियाणा मध्य प्रदेश राजस्थान हिमाचल जहां पर की 2019 के चुनाव में भाजपा ने 100% लोकसभा सीट हासिल की थी इन राज्यों में भाजपा को अपना 2019 वाला प्रदर्शन दोहराने की भी चुनौती है । अगर 2019 के लोकसभा चुनाव के प्रदर्शन को आधार माने तो दक्षिण भारत के तीन राज्यों आंध्र प्रदेश केरल और तमिलनाडु में भाजपा को एक भी सीट पर विजय प्राप्त नहीं हुई थी । जबकि दूसरे अन्य लगभग 10 राज्यों में भी भाजपा के पास सीट बढ़ाने का स्कोप है । जिसमें उत्तर भारत का एक राज्य पंजाब भी शामिल है क्योंकि पिछली बार पंजाब से भारतीय जनता पार्टी को 2 ( पंजाब में शिरोमणि अकाली दल के साथ तब गठबंधन था अकाली दल को भी 2 सीट मिली थी , मगर अब फिलहाल अकाली दल भाजपा के सहयोगी नहीं है ) सीट पर विजय हासिल हुई थी । ज्यादातर पॉलिटिकल एक्सपर्ट का मानना है कि बीजेपी लोकसभा चुनाव में तीसरी बार मोदी सरकार को लेकर तो पूरी तरीके से भरोसे में है मगर इस बार भाजपा की इच्छा एक बड़ी जीत की है जिसको लेकर दिल्ली में हर दिन लगातार मैराथन बैठक की जा रही हैं ।
सीट बढ़ाने के लिए भाजपा का फोकस उत्तर भारत की बजाय दक्षिण भारत पर ज्यादा
303 सीट से 370 सीट पर पहुंचने के लिए भाजपा का फोकस इस बार दक्षिण भारत की तरफ ज्यादा नजर आ रहा है । यही वजह है आंध्र प्रदेश हो या तमिलनाडु या दक्षिण का कोई और राज्य बीजेपी सहयोगियों को लगातार तलाश रही है ताकि सहयोगियों के साथ में कुछ सीटों पर विजय प्राप्त की जा सके । और राज्य मे बीजेपी का झंडा लगाया जा सके ।
2024 चुनाव के पहले ही भारत रत्न पर विवाद
हाल ही में केंद्र सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह पीवी नरसिम्हा राव हरित क्रांति के जनक स स्वामीनाथन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर और भाजपा की वरिष्ठ नेता लास्ट आडवाणी को भारत रत्न देने का ऐलान किया है । इस अलार्म के साथ ही विपक्ष ने सवाल उठाए हैं कि केंद्र सरकार भारत रत्न सम्मान को चुनावी फायदा लेने की इच्छुक है । और भारत रत्न सम्मान को चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल कर रही है । वही पॉलिटिकल एक्सपर्ट के मुताबिक भाजपा ने डिजर्विंग लोगों को भारत रत्न तो दिया ही दिया साथ ही साथ ऐसे समय पर भारत दिया गया जिसका वोट की राजनीति पर लोकसभा चुनाव 2024 में असर पडना तय है ।
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