पेड़ो के लिए अभिशाप या वरदान, अमरबेल : आखिर क्यों उठी अमर बेल को हटाने की मांग ?
प्रिया ओझा
“अमरबेल” जिसके नाम से ही उसकी गुणवत्ता छलकती है। जो की एक्जिमा, अवसाद, कैंसर, ब्लैडर की समस्या, आंखों के समस्याएं, लिवर संबंधी समस्या, प्रजनन क्षमता बढ़ाने के लिए जैसे कई बीमारियों के लिए रामबाण है। साथ ही इसका उपयोग शरीर के दर्द को दूर करने में, प्लीहा की समस्या को दूर करने में, इम्युनिटी बढ़ाने में, मानसिक रोगों में,ब्लड शुगर और ब्लड प्रेशर दूर करने में, पेट के लिए और खून को साफ़ करने में भी होता है। लेकिन साथ ही अगर आप इसका सही उपयोग नहीं कर रहें या अधिक मात्रा में, या गलत तरीके से उपयोग कर रहे हैं तो ये आपके लिए घातक भी हो सकता है। हर्ब के नियम दवाई से कम सख्त होते हैं। लेकिन, इसकी सुरक्षा के बारे में अधिक अध्ययन करना आवश्यक है। हर्ब के सेवन के फायदे उनके जोखिमों से अधिक होते हैं इसलिए इसके सेवन से पहले अपने औषधि विशेषज्ञ या डॉक्टर की सलाह लेना न भूलें ।
जितने हैं फायदे उससे अधिक नुकसानदेह है “अमरबेल”
वैसे तो हमारे वेदों में जड़ी बूटियों के हजारों फायदों का वर्णन है पर जड़ी बूटियां अगर सही तरीके से इस्तेमाल न की जाए तो प्राणघाती भी हो सकतीं हैं। ठीक वैसे ही यूं तो अमरबेल के बहुत से फायदे हैं पर उससे जादा इसके नुकसान हैं। अमरबेल सिर्फ इंसानों के लिए ही नहीं बल्कि पेड़ पौधों के लिए भी आत्मघाती है। अमरबेल तना परजीवी पौधा है जो फसलों या वृक्षों पर अवांछित रूप से उगकर हानि पहुँचाता है। इस खरपतवार को रामतिल, सोयाबीन, प्याज, अरहर, तिल, झाड़ियों, शोभाकार पौधों एवं वृक्षों पर भी देखा जा सकता है। अमरबेल परजीवी पौधे में उगने के 25-30 दिन बाद सफेद अथवा हल्के पीले रंग के पुष्प गुच्छे में निकलते हैं। प्रत्येक पुष्प गुच्छ में 15-20 फल तथा प्रत्येक फल में 2-3 बीज बनते है । अमरबेल के बीज अत्यंत छोटे होते है जिनके 1000 बीजों का वजन लगभग 0.70-0.80 ग्राम होता है। बीजों का रंग भूरा अथवा हल्का पीला होता है। अमर बेल के एक पौधे से लगभग 50,000 से 1,00,000 तक बीज पैदा होते है। पकने के बाद बीज मिट्टी में गिरकर काफी सालों तक (10-20 साल तक) सुरक्षित पड़े रहते है तथा उचित वातावरण एवं नमी मिलने पर पुनः अंकुरित होकर फसल को नुकसान पहुँचाते है।
अमरबेल से इस तरह से बचाव करे पौधों का
घास कुल की फसलें जैसे गेहूँ, धान, मक्का, ज्चार, बाजरा आदि में अमरबेल का प्रकोप नहीं होता है। अतः प्रभावित क्षेत्रों में फसल चक्र में इन फसलों को लेने से अमरबेल का बीज अंकुरित तो होगा परन्तु एक सप्ताह के अंदर ही सुखकर मर जाता है फलस्वरूप जमीन में अमरबेल के बीजों की संख्या में काफी कमी आ जाती है। लेकिन अगर आप रामतिल, सोयाबीन, प्याज, अरहर, तिल, झाड़ियों, शोभाकार पौधों एवं वृक्षों की बुआई कर रहे हैं तो सुनिश्चित करें कि बुआई से पहले की प्रक्रिया सही ढंग से पूरी हो। इसके लिए आप अमरबेल नष्ट करने के लिए बाजार में बिक रहे छिड़काव का उपयोग कर सकते हैं।
पंचकुला में इन जगहों पर फैली है अमरबेल
पंचकुला नगर निगम के कई सेक्टर्स के इलाकों में अमरबेल फैलने से काफी पेड़ पौधे प्रभावित हैं जिनको अगर समय रहते हटाया न गया तो और भी फैलने की संभावना है जिससे की और पेड़ पौधे प्रभावित हो सकते हैं। जननायक जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं पंचकूला के पूर्व शहरी प्रधान ओ पी सिहाग ने पेड़ों पर से अमर बेल हटाने को लेकर पीएमडीए के मुख्य अभियंता को ज्ञापन सोपा है । सिहाग का कहना है कि पंचकूला के मुख्य सड़कों एवं अन्य सड़कों पर वर्षों पहले प्रशासन के अधिकारियों ने सैकड़ो पेड़ लगाए थे । यह पेड़ समय के साथ बड़े होते गए राहगीरों को छाया देने लगे व शहर को सुंदर एवं हरा भरा बनाने में मदद करने तथा जीवन के लिए उपयोगी सैकड़ो टन ऑक्सीजन भी देने लगे । मगर पिछले कुछ सालों से एक बहुत ही खतरनाक हत्यारन इन पेड़ों को जकड़ कर हर रोज तिल तिल मार रही है । इसने सैकड़ो पेड़ों को मौत के शिकंजे में ले रखा है अगर समय रहते इस और ध्यान नहीं दिया गया तो इन पेड़ों की मृत्यु निश्चित है । और सिहाग ने पेड़ो की हत्यारण का नाम अमर बेल बताया । जो होता तो एक पौधा है और उसकी कोई जड़ नहीं होती वह दूसरे पेड़ पौधों से लिपटकर उनका रस पीती है तथा आगे फैलती जाती है और धीरे-धीरे उसे पेड़ को सुख देती है इस प्रकार उसे पेड़ की मौत का कारण बनती जाती है ।
सुहाग ने प्रशासन के अधिकारों के साथ-साथ आमजन से भी इस बात की अपील की है कि पंचकूला के किसी भी एरिया में अगर पेड़ पर अमर बेल लिपटी हुई नजर आती है तो उसकी शिकायत तुरंत प्रभाव से प्रशासनिक अधिकारियों तक करें । ताकि पेड़ों को जीवन देने से बचाया जा सके ।
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