भाजपा-भाजपा में फर्क : वो अटल-आडवाणी की भाजपा थी, ये मोदी-शाह की भाजपा है
उन्होंने सत्ता के लिए खरीददारी नही की , इनको सत्ता के लिए कुछ भी करेगा नारे पर सत्ता चाहिए ,,
अनिल मसीह की कलम से कई भाजपाई अंतरमन से परेशान ,
आखिर भारतीय जनता पार्टी तो वही है जो 1980 के दशक में थी। इस भारतीय जनता पार्टी की डोर पहले अटल और आडवाणी के हाथ में हुआ करती थी तब भाजपा को अटल आडवाणी की भाजपा कहा जाता था। आज की भाजपा की डोर मोदी और शाह के हाथों में है इसलिए आज की भाजपा को मोदी और शाह की भाजपा कहा जाता है। मगर अटल आडवाणी की भाजपा से मोदी शाह की भाजपा पहुंचने तक जमीन आसमान का अंतर आ चुका है। अटल आडवाणी की भाजपा अगर संस्कारों वाली भाजपा थी तो मोदी और शाह की भाजपा सुसंस्कारों वाली भाजपा है।
अब जब बात अटल आडवाणी की चल ही पड़ी है तो आज आपको इतिहास की बात भी लगे हाथ याद दिला देते हैं। एक भाजपा 1996 के दशक की हुआ करती थी। वह अटल और आडवाणी की भाजपा थी जहां सत्ता पाने के लिए अटल बिहारी बाजपाई ने किसी प्रकार का कोई समझौता कभी भी नहीं किया। अगर सत्ता एक वोट के लिए भी जा रही है तो भी उस वोट को खरीदने की कभी अटल और आडवाणी ने कोशिश नहीं की। इसका उदहारण भी है जब 1996 में अटल बिहारी बाजपेई की सरकार मात्र एक वोट से गिर गई थी। तब अटल बिहारी वाजपेई ने कहा था, “आज हमें अकारण कटघरे में खड़ा किया जा रहा है क्योंकि हम थोड़ी ज्यादा सीटें नहीं ले सके। हम मानते हैं, हमारी कमजोरी हैं, हमें बहुमत मिलना चाहिए था। राष्ट्रपति ने हमें अवसर दिया हमने उसका लाभ उठाने की कोसिस की है, हमें सफलता नहीं मिली वो अलग बात है। लेकिन हम फिर भी सदन में सबसे बड़े विरोधी दल के रूप में बैठेंगे और आपको हमारा सहयोग लेकर सदन चलाना पड़ेगा। सत्ता का खेल तो रहेगा सरकारें आएंगे जाएगी, पार्टियां बनेगी बिगड़ेगी, मगर यह देश रहना चाहिए। इस देश का लोकतंत्र रहना चाहिए।
यह 2024 की मोदी और शाह की भाजपा है जिन्होंने संभवतह या यूं कहे शायद या और भी एक शब्द आगे कि आज की भाजपा के किसी भी शब्दकोश में हारना शब्द तो है ही नहीं। वरना चंडीगढ़ के छोटे से मेयर के चुनाव में प्रीसाइडिंग ऑफीसर अनिल मसीह, जोकि भाजपा नॉमिनेटेड काउंसलर है और भाजपा के ही माइनोरिटी सेल के सदस्य भी है, की कलम की इतनी हिमाकत कैसे हो गई कि वह 8 वोट इनवेलिड करार दे दे और भाजपा का मेयर उस स्थिति में बन जाए। जबकि उनके पास बहुमत किसी भी हालत में नहीं था। जिसको लेकर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश तक ने तल्ख टिप्पणियां की है। मगर नैतिकता का पाठ पढ़ने और पढ़ाने वाली भारतीय जनता पार्टी को इन तल्ख टिप्पणियों से कोई फर्क नहीं पड़ता। सत्ता आनी चाहिए इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की कौन क्या कहता है। सत्ता चाहे बिहार की हो, महाराष्ट्र की हो, मध्य प्रदेश की हो या फिर कोई और राज्य की हो, आज की भाजपा का मंत्र सिर्फ एक ही है चाहे बहुमत हो या ना हो मगर सत्ता हमारी हो। और यही बीजेपी तो आजकल नैतिकता की भी बातें करने लगी है।
नैतिकता की बात की चर्चा इसलिए , क्योंकि बीते कल यानी 6 फरवरी को हरियाणा के मुख्यमंत्री ने पंचकूला में अधिकारियों को नैतिकता का पाठ पढ़ाया और उनसे अपेक्षा की गई कि वह शासन के अंदर आम जनता के साथ नैतिकता की बात करेंगे। मगर इन अधिकारियों में नैतिकता आएगी कैसे क्योंकि वह सीखेंगे तो वही जो देखेंगे। मुख्यमंत्री जी नैतिकता की जरूरत तो आज के वक्त में भारतीय जनता पार्टी के नेताओं को ज्यादा है क्योंकि शासन कर रहे अधिकारियों के ऊपर नेता भी तो नैतिक ही होने चाहिए। आज जिस वक्त आप अधिकारियों को नैतिकता का पाठ पढ़ा रहे थे उसी से दो दिन पहले ही आप ही के राज्य में एक निजी दैनिक अखबार दैनिक भास्कर ने 100 करोड रुपए के घोटाले की खबर छाप रखी है जिसके तार आपके मंत्री के दामन तक पहुंच रहे हैं। जिसमें आपके ही भ्रष्टाचार निरोधक इकाई दें 6 गैजेटेड ऑफीसर्स को गिरफ्तार किया है। तो नैतिकता की सीख की तो आपके मंत्रियों को भी जरूरत है सिर्फ अधिकारियों को ही नहीं ।
अनिल मसीह की हरकत से कई भाजपाई अंतरमन से परेशान
चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में मुख्य न्यायाधीश की सख्त टिप्पणी के बाद सोशल मीडिया पर प्रीसाइडिंग ऑफीसर अनिल मसीह के नगर निगम के सातों कैमरों के वीडियो वायरल होने लगे, तो कई कट्टर से कट्टर भाजपाइयों का भी मन विचलित हो गया। भाजपाइयों के अपने ही ( कुछ लोगों के निजी ) ग्रुप के अंदर अनिल मसीह को लानत मनालत दे दी गई। बल्कि ग्रुप में तो यहां तक लिख दिया गया की नकल करने के लिए भी अकल की जरूरत होती है और मसीह साहब को इतना सिखाया पढ़ाया गया था, मगर फिर भी जब अकल लगाने की जरूरत थी तब अकल नहीं आई और शक्ल ही कैमरे को दिखाते रह गए और सारी पोल पट्टी खोल गए। चंडीगढ़ दिन भर के अनुसार भाजपा के 20 साल पुराने एक कट्टर भाजपाई संजीव वर्मा ने तो भाजपा छोड़ ही दी है। खबरी प्रशाद के बीजेपी से जुड़े सूत्रों ने बताया कि अभी तो यह शुरुआत है ,, वर्मा के साथ-साथ कई और कट्टर भाजपा नेता भी अब भाजपा छोड़ने का अपना मन बना चुके हैं। बस अब सभी को सुप्रीम कोर्ट की अगली सुनवाई का इंतजार है। जहा पर कि अगली सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट मे खुद प्रीसाइडिंग ऑफिसर अनिल मसीह को मुख्य न्यायाधीश के सामने खड़े होकर अपनी हरकतों का जवाब देना है। उसके बाद मुख्य न्यायाधीश मेयर चुनाव पर अपना क्या फैसला सुनाते हैं, भाजपा खेमे के सभी नेताओं की निगाहें वही लगी हुई है। हालांकि एक भाजपा नेता ने दावा किया कि कुछ भी नहीं होगा और 1 साल तक यह मामला ऐसे ही चलता रहेगा , जैसे कि उनको सुप्रीम कोर्ट के फैसले की सारी जानकारी है।
आप एवं कांग्रेस लोकसभा चुनाव में इस मुद्दे को गरमाने की फिराक में
आम आदमी पार्टी एवं कांग्रेस सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश की तल्ख टिप्पणियों के साथ-साथ वायरल हो रहे वीडियो को अब पूरे देश में भुनाने की फिराक में लग चुकी है। जिस तरह से आज आम आदमी पार्टी ने एलईडी स्क्रीन लगाकर चंडीगढ़ नगर निगम के बाहर ही मीडिया कर्मियों को उस दिन के पूरे वीडियो दिखाएं, ऐसा लगता है कि कांग्रेस और आम आदमी पार्टी इस मुद्दे को हल्के में नहीं छोड़ना चाहेगी और भारतीय जनता पार्टी ने बैठे बिठाये अपना पर ऐसी कुल्हाड़ी पर रख दिया है जो कि उसी को काटने को तैयार बैठी है।
तो फर्क साफ है , एक भाजपा अटल आडवाणी की थी और एक भाजपा मोदी शाह की है । वीडियो 1996 के भी सोशल मीडिया पर उपलब्ध है और वीडियो 2024 के भी सोशल मीडिया पर उपलब्ध रहेंगे । अगर कभी नैतिकता की बात होगी तो अटल आडवाणी को जरूर याद किया जाएगा मगर जब बात तीसरी नजर की आएगी तो 2024 के नगर निगम के वीडियो इतिहास के किसी न किसी आईने में जरूर याद रखे जाएंगे । क्योंकि इन्हीं वीडियो पर सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने सख्त टिप्पणियां भी की है इतिहास इनको भी याद रखेगा ।
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