सेक्स की इच्छा कंट्रोल करें लड़कियां; हाईकोर्ट की इस टिप्पणी पर अब सुप्रीम कोर्ट का पारा चढ़ा
नाबालिग लड़कियों को सेक्स की इच्छा पर कंट्रोल रखना चाहिए। कुछ दिनों पहले कलकत्ता हाईकोर्ट ने रेप के एक मामले में सुनवाई करते हुए यह बड़ी टिप्पणी की थी। जहां हाईकोर्ट की इस टिप्पणी को लेकर अब सुप्रीम कोर्ट का पारा चढ़ा हुआ है। सुप्रीम कोर्ट ने कलकत्ता हाईकोर्ट की टिप्पणी पर बेहद नाराजगी जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट की इस टिप्पणी को गैर-जरूरी और आपत्तिजनक बताया। वहीं टिप्पणी पर संज्ञान लेते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि, हाईकोर्ट को आदेश देते हुए ऐसे वाक्यों से बचना चाहिए। नाबालिग लड़कियों की सेक्स इच्छा पर यह कहना गलत है। उन्हें अपनी नैतिकता का पाठ नहीं पढ़ाना चाहिए। बल्कि संवैधानिक सिद्धांत के हिसाब से चलना चाहिए और विधान और कानून के तय दायरे में ही कोई टिप्पणी करनी चाहिए।
18 अक्टूबर 2023 को कोलकाता हाईकोर्ट ने की थी टिप्पणी
दरअसल, पूरा मामला पश्चिम बंगाल के साउथ 24 परगना जिले का था। यहां 18 साल से कम उम्र की एक नाबालिग लड़की और एक लड़के में प्यार का किस्सा चल रहा था। इस बीच दोनों ने कई बार सेक्स संबंध बनाए। नाबालिग लड़की इसके लिए हर बार राजी रही। लेकिन बाद में दोनों का मामला पुलिस तक पहुंच गया। जिसमें लड़की के साथ यौन उत्पीड़न होने की बात कही गई थी। इसके बाद पुलिस जब आरोपी लड़के को पकड़कर साउथ 24 परगना जिले की एक सत्र अदालत में पेश किया तो अदालत ने नाबालिग लड़की के साथ सेक्स करने वाले लड़के को पोक्सो एक्ट में दोषी पाया और उसे सजा सुनाते हुए जेल भेज दिया। इधर जिला अदालत से सजा मिलने के बाद लड़के की तरफ से कलकत्ता हाईकोर्ट में याचिका लगाई गई। जिसके बाद इस मामले को कलकत्ता हाईकोर्ट ने सुना। हाईकोर्ट ने जब इस मामले में 18 अक्टूबर 2023 को फाइनल सुनवाई की और पाया कि लड़की ने हर बार अपनी मनमर्जी से लड़के के साथ सेक्स किया है। इसके बाद मामले में फैसला देते हुए हाईकोर्ट ने उक्त टिप्पणी की और आरोपी लड़के को बरी कर दिया।
बरी करने का आदेश देते हुए लड़कियों को नसीहत दी
आरोपी लड़के को बरी करते हुए कोलकाता हाईकोर्ट ने नाबालिग लड़कियों को उक्त टिप्पणी के साथ नसीहत दी। कोलकाता हाईकोर्ट ने कहा कि, युवा नाबालिग लड़कियों को सेक्स की इच्छा को कंट्रोल करना चाहिए। युवा अवस्था की ओर बढ़ती उम्र के साथ लड़कियों को यह सोचना जरूरी है कि किसी भी तरह से उनके शरीर की अखंडता और पवित्रता भंग न होने पाये। युवा लड़कियों को अपने शरीर के आत्म-सम्मान के अधिकार की रक्षा करनी है। 2 मिनट के आनंद की बजाय हर हाल में अपनी सेक्स इच्छा को कंट्रोल में किया जाना चाहिए। इसके अलावा जो लड़के हैं वह यह जरूर सोचने का प्रयास करें कि किसी भी लड़की या महिला के शरीर का वह सम्मान करें। वह उसकी गरिमा को बनाए रखें। हाईकोर्ट ने लड़कों को भी यह सीख दी थी कि लड़कों को फायदा न उठाते हुए लड़कियों की गरिमा, गोपनीयता और उसके शरीर के स्वायतता का सम्मान करना चाहिए।
सेक्स को लेकर मां-बाप सीख दें
कलकत्ता हाईकोर्ट ने यह भी कहा था कि, सेक्स की इच्छा को कंट्रोल करने और इससे जुड़े अपराध को रोकने के लिए सही मार्गदर्शन की आवश्यकता है। युवा लड़कियों और लड़कों को अगर सही तरह से समझाया जाएगा तो वह इस ओर कदम रखने से बचेंगे। क्योंकि युवा लड़कियों और लड़कों में कामुकता और सेक्स की इच्छा का जाग्रत होना नेचुरल है। इसलिए इन्हें समझाने के लिए शुरुआत घर से होनी चाहिए। मां-पिता इस मामले में पहले शिक्षक हो सकते हैं। हाईकोर्ट ने टिप्पणी की कि सेक्स की इच्छा, लिखने, कामुक सामग्री पढ़ने या देखने-सुनने से पैदा होती है। अगर हम इन चीजों पर रोक लगाएं तो उत्तेजना पर काबू पाया जा सकता है।
दिसंबर की शुरुआत सुप्रीम कोर्ट ने संज्ञान लिया
सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल दिसंबर की शुरुआत में हाईकोर्ट की टिप्पणी पर संज्ञान लिया था। जिसके बाद लगातार इस मुद्दे पर सुनवाई चल रही है। सुप्रीम कोर्ट में इस मामले की अगली सुनवाई 12 जनवरी को होनी है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि जजों से यह अपेक्षा नहीं की जा सकती है कि वे इस प्रकार से उपदेश देंगे। टिप्पणी की आलोचना करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि यह संविधान के अनुच्छेद-21 यानी लाइफ एंड लिबर्टी के तहत मिले अधिकार का उल्लंघन करती है। जजों से उम्मीद की जाती है कि वे विधान और कानून के तय सिद्धांत के हिसाब से चलेंगे न कि सेक्सुअल ऑफेंस के मामले में अपना ओपिनियन देंगे और नैतिकता का पाठ पढ़ाएंगे।
संवेदना की कमी, उपदेश की आदत बनती जा रही
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, जजों के आदेश में हमेशा संवेदना और संवैधानिक सिद्धांत का दायरा दिखना चाहिए। लेकिन ऐसा देखने में आ रहा है कि जब भी कोई शख्स किसी पद पर आसीन होता है तो वह अपने काम तक सीमित नहीं रहता बल्कि अपने मंच का उपयोग उपदेश देने के लिए करने लगता है। गैर-जरूरी नैतिकता का पाठ पढ़ाने लग जाता है। सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि, जज अपनी नैतिकता की बजाय संवैधानिक नैतिकता के नजरिये से मामले को देखें और फिर ये तय करें कि उन्हें क्या टिप्पणी देनी है।
सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा है कि स्वायत्तता का अधिकार, व्यक्तिगत इच्छा का अधिकार और गरिमा का अधिकार संवैधानिक अधिकार हैं। इस दायरे में सेक्स इच्छा भी आती है और इसीलिए नाबालिग लड़कियों की सेक्स इच्छा पर कलकत्ता हाईकोर्ट की टिप्पणी कहीं न कहीं उनके व्यक्तिगत और मानवीय इच्छा का हनन करती है। क्योंकि सेक्स इच्छा हर व्यक्ति की गरिमा के मूल में है। सेक्सुअल पसंद व्यक्तिगत इच्छा है और इसे मानवीय व्यक्तित्व से अलग नहीं किया जा सकता। बशर्ते सेक्स इच्छा में शामिल लोगों की मंजूरी होनी चाहिए।
सेक्स की बात अब टैबू नहीं
आज के दौर में सेक्स के बारे में खुलकर बातचीत की जा रही है। भारत में भी सेक्स पर बातचीत के लिए मंच सजने लगे हैं और इसीलिए सेक्स अब टैबू नहीं रहा। अब शादी से पहले भी सेक्स संबंध बनाए जा रहे हैं। कहीं न कहीं सेक्स को समाज में सामान्य व्यवहार का हिस्सा समझा जा रहा है। हालांकि, नैतिकता के आधार पर अभी भी एक संस्कृति या समाज में सेक्स की बात अनैतिक ही मानी जाती है। क्योंकि यह धर्म व समाज के मूल्यों और व्यवहार पर आधारित है।
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