भाजपा के लिए चुनाव जीतने से अधिक मुश्किल हुआ मुख्यमंत्री का नाम तय करना
भाजपा के लिए राजस्थान और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्री का नाम तय करना चुनाव जीतने से अधिक मुश्किल हो रहा है। दोनों राज्यों में पार्टी द्वारा चुनाव में किया गया प्रयोग अब गले पड़ते दिख रहा है।
पिछले एक दशक में भाजपा चुनावी राजनीति में खासी मजबूत हुई है। बड़े संगठन के बूते पार्टी गांव स्तर से लेकर राष्ट्रीय स्तर तक के अधिकांश चुनाव जीत रही है। लगातार जीत अब पार्टी के लिए कई परेशानियों का सबब भी बनने लगा है। कहा जा सकता है कि बीजेपी के लिए चारो तरफ बम बम हो रहा है ।
ताजा मामला मध्य प्रदेश और राजस्थान का है। मध्य प्रदेश में सत्ता विरोधी लहर के बीच भाजपा अच्छे अंतर से चुनाव जीतने में सफल रही। राजस्थान में परंपरागत तरीके से राज्य के लोगों ने भाजपा को सत्ता सौंप दी। भाजपा इसे 2024 के लिए शुभ मान रही है।
तीन दिसंबर को उक्त दो राज्यों में चुनाव जीतने वाली भाजपा अभी तक मुख्यमंत्री का नाम तय नहीं कर सकी। परिणाम राजनीतिक गलियारों में सवाल उठ रहे हैं। कांग्रेस से तेलंगाना में 48 घंटे के भीतर ही सीएम तय कर दिया है। वहां कांग्रेस सरकार ने काम करना भी शुरू कर दिया।
बहरहाल, राजस्थान और मध्य प्रदेश में भाजपा के लिए मुख्यमंत्री का नाम तय करना चुनाव जीतने से अधिक मुश्किल साबित हो रहा है। भाजपा के नेता कुछ भी तर्क दें सच ये है कि यहां पार्टी खासी मुश्किल में है। पार्टी हाईकमान ने चुनाव में सीएम चेहरा घोषित न करके जो राजनीतिक चतुराई दिखाई थी वो अब गले पड़ गई है।
इसके अलावा संासदों को विधायकी का चुनाव लड़ाने का प्रयोग भले ही सफल रहा हो। मगर, इसके साइड इफेक्ट दिखने लगे हैं। हालात ये है कि पार्टी दोनों राज्यों में सीएम तय करने के मामले में फूंक फूंक कर कदम रख रही है। पार्टी के निर्णय पर अमल करने की बात करने वाले नेता मुख्यमंत्री बनने के लिए परदे की पीछे तमाम उपक्रम कर रहे हैं ।
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