शनिदेव की साढ़े साती , क्या है उपाय !!!!!
शनि की साढ़े साती…
ज्योतिष के अनुसार शनि की साढे साती की मान्यतायें तीन प्रकार से होती हैं, पहली लगन से दूसरी चन्द्र लगन या राशि से और तीसरी सूर्य लगन से, उत्तर भारत में चन्द्र लगन से शनि की साढे साती की गणना का विधान प्राचीन काल से चला आ रहा है। इस मान्यता के अनुसार जब शनिदेव चन्द्र राशि पर गोचर से अपना भ्रमण करते हैं तो साढेसाती मानी जाती है, इसका प्रभाव राशि में आने के तीस माह पहले से और तीस माह बाद तक अनुभव होता है। साढेसाती के दौरान शनि जातक के पहले किये गये कर्मों का हिसाब उसी प्रकार से लेता है, जैसे एक घर के नौकर को पूरी जिम्मेदारी देने के बाद मालिक कुछ समय बाद हिसाब मांगता है, और हिसाब में भूल होने पर या गल्ती करने पर जिस प्रकार से सजा नौकर को दी जाती है उसी प्रकार से सजा शनि देव भी हर प्राणी को देते हैं।
और यही नही जिन लोगों ने अच्छे कर्म किये होते हैं तो उनको साढेशाती पुरस्कार भी प्रदान करती है, जैसे नगर या ग्राम का या शहर का मुखिया बना दिया जाना आदि.शनि की साढेसाती के आख्यान अनेक लोगों के प्राप्त होते हैं, जैसे राजा विक्रमादित्य, राजा नल, राजा हरिश्चन्द्र, शनि की साढेसाती संत महात्माओं को भी प्रताडित करती है, जो जोग के साथ भोग को अपनाने लगते हैं। हर मनुष्य को तीस साल मे एक बार साढेसाती अवश्य आती है, यदि यह साढे साती धनु, मीन, मकर, कुम्भ राशि मे होती है, तो कम पीडा जनक होती है, यदि यह साढेसाती चौथे, छठे, आठवें, और बारहवें भाव में होगी, तो जातक को अवश्य दुखी करेगी, और तीनो सुख शारीरिक, मानसिक, और आर्थिक को हरण करेगी.इन साढेसातियों में कभी भूलकर भी “नीलम” नही धारण करना चाहिये, यदि किया गया तो वजाय लाभ के हानि होने की पूरी सम्भावना होती है। कोई नया काम, नया उद्योग, भूल कर भी साढेसाती में नही करना चाहिये, किसी भी काम को करने से पहले किसी जानकार ज्योतिषी से जानकारी अवश्य कर लेनी चाहिये.यहां तक कि वाहन को भी भूलकर इस समय में नही खरीदना चाहिये, अन्यथा वह वाहन सुख का वाहन न होकर दुखों का वाहन हो जायेगा. अत: प्रत्येक मनुष्य को इस समय का शनि आरम्भ होने के पहले ही जप तप और जो विधान बातायें उनको कर लेना चाहिये..शनि देव के प्रकोप से बचने के लिए रावण ने उन्हें अपनी कैद में पैरों से बांध कर सर नीचे की तरफ किये हुए रखा था ताकि शनि की वक्र दृष्टि रावण पे न पड़े। आज भी कई हिन्दू जाने अनजाने रावण की भांति प्रतीकात्मक तौर पे शनि प्रतिरूप को दुकानों या वाहनों में पैरों से बांध कर उल्टा लटकाते हैं। हालांकि पौराणिक सुझाव श्री हनुमान की भक्ति करने का है, क्योकि शनि देव ने हनुमान जी को वरदान दिया था कि हनुमान भक्तों पर शनि की वक्र दृष्टि नहीं पड़ेगी।
अगर बचना है शनि के साढ़ेसाती से, तो पढ़िए ये व्रत कथा –
शनि की साढ़ेसाती के दौरान शनिवार को व्रत रखना लाभदायक होता है. व्रत रखने के साथ-साथ शनिवार की व्रत कथा पढ़ना और सुनना भी शुभ होता है. शरीर से रोग और भाग्य से कष्ट दूर करने के लिए शनिवार के दिन व्रत अवश्य रखें, इससे शनि की दशा, साढ़ेसाती और ढैय्या में लाभ मिलता है. कहते हैं कि शनिवार व्रत के साथ शनिदेव की कथा भी पढ़नी चाहिए ऐसा करने से शनिदेव की विशेष कृपा बनी रहती है. आइए आपको बताते हैं कि कौन सी है शनिवार व्रत की कथा जिसे पढ़ना शुभफलदायी होता है.
शनिवार व्रत कथा
एक बार की बात है सभी नवग्रहों यथा सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, बृहस्पति,शुक्र, शनि, राहु और केतु में विवाद छिड़ गया कि इनमें सबसे बड़ा कौन है? सभी आपस में लड़ने लगे और कोई निर्णय न होने पर देवराज इंद्र के पास निर्णय कराने पहुंचे. इंद्रदेव घबरा गए और उन्होंने निर्णय करने में अपनी असमर्थता जताई परंतु उन्होंने कहा, कि इस समय पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य हैं, जो कि अति न्यायप्रिय हैं, वे ही इसका निर्णय कर सकते हैं…सभी ग्रह एक साथ राजा विक्रमादित्य के पास पहुंचे, और अपना विवाद बताया. साथ ही निर्णय के लिए कहा. राजा विक्रमादित्य इस समस्या से चिंतित थे क्योंकि वे जानते थे कि जिस किसी को भी छोटा बताया, वही क्रोधित हो उठेगा. तब राजा को एक उपाय सूझा. उन्होंने स्वर्ण, रजत, कांस्य, पीतल, सीसा, रांगा, जस्ता, अभ्रक और लौह से 9 सिंहासन बनवाए, और उन्हें इसी क्रम से रख दिया. फिर उन सबसे निवेदन किया कि आप सभी अपने-अपने सिंहासन पर स्थान ग्रहण करें. जो भी अंतिम सिंहासन पर बैठेगा, वही सबसे छोटा होगा…
शनिदेव हुए गुस्सा –
इसके अनुसार लौह सिंहासन सबसे बाद में होने के कारण, शनिदेव सबसे बाद में बैठे, तो वही सबसे छोटे कहलाए. शनिदेव को लगा कि राजा ने ऐसा जानकर किया है और वह गुस्से में राजा से बोले- राजा! तू मुझे नहीं जानता.
सूर्य एक राशि में एक महीना, चंद्रमा सवा दो महीना दो दिन, मंगल डेड़ महीना,
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