हो जाओ सावधान : आने वाली है फेफड़ों की बीमारी की सुनामी !
अमेरिकी रिपोर्ट के अनुसार भारत में प्रदूषण से आ रही बीमारियों की सुनामी
नई दिल्ली
कोविड-19 के बाद भारत जिस सबसे बड़े सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट की ओर बढ़ रहा है, वह वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियां हैं। अंतरराष्ट्रीय विशेषज्ञों और अमेरिका सहित पश्चिमी देशों के ताज़ा अध्ययनों के संकेत भारत के लिए गंभीर चेतावनी माने जा रहे हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि यदि अभी ठोस और व्यापक कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले वर्षों में श्वसन, हृदय और तंत्रिका संबंधी रोगों की “मूक महामारी” देश की स्वास्थ्य व्यवस्था पर भारी दबाव डाल सकती है।
अमेरिकी डेटा ने क्या दिखाया?
अमेरिका के पर्यावरण और स्वास्थ्य संस्थानों के आंकड़ों के अनुसार, पिछले एक दशक में महीन कणों (PM2.5) और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड जैसे प्रदूषकों के संपर्क में रहने वाली आबादी में अस्थमा, क्रॉनिक ब्रॉन्काइटिस, हार्ट अटैक और स्ट्रोक के मामलों में उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। अमेरिकी शोध यह भी बताते हैं कि लंबे समय तक प्रदूषित हवा में सांस लेने से न केवल बुजुर्ग बल्कि युवा और कामकाजी उम्र के लोग भी गंभीर बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं। विशेषज्ञ मानते हैं कि भारत के कई शहरी इलाकों में प्रदूषण का स्तर अमेरिका के उच्च-जोखिम वाले क्षेत्रों से कहीं अधिक है, जिससे खतरा कई गुना बढ़ जाता है।
भारत में ‘धीरे-धीरे उभरता संकट’
ब्रिटेन और अमेरिका में कार्यरत भारतीय मूल के वरिष्ठ चिकित्सकों का कहना है कि भारत में श्वसन रोगों का संकट अभी पूरी तरह पहचाना नहीं गया है। उत्तर भारत के बड़े हिस्सों में वर्षों से प्रदूषण झेल रही आबादी के फेफड़ों पर इसका दीर्घकालिक असर दिखने लगा है। अस्पतालों के आंकड़े संकेत देते हैं कि सर्दियों के महीनों में सांस संबंधी शिकायतों के साथ आने वाले मरीजों की संख्या में तेज़ उछाल आ रहा है । जिनमें बड़ी संख्या पहली बार प्रभावित हुए युवाओं की भी है।
परिवहन और शहरी जीवनशैली बड़ी वजह
विशेषज्ञों के अनुसार, अमेरिका और यूरोप में हुए अध्ययनों से यह स्पष्ट हुआ है कि केवल मोटापा या जीवनशैली ही नहीं, बल्कि वाहनों, विमानों और औद्योगिक गतिविधियों से निकलने वाला जहरीला उत्सर्जन भी हृदय रोगों की बढ़ती दर का प्रमुख कारण है। यही पैटर्न अब भारतीय शहरों में भी दिखने लगा है। दिल्ली जैसे महानगरों में परिवहन क्षेत्र से होने वाला प्रदूषण कुल प्रदूषण का बड़ा हिस्सा माना जा रहा है, जिससे स्थिति और जटिल हो जाती है।
शुरुआती लक्षणों को न करें नजरअंदाज
डॉक्टरों का कहना है कि सिरदर्द, लगातार थकान, हल्की खांसी, गले में खराश, आंखों में जलन, त्वचा पर चकत्ते या बार-बार संक्रमण जैसे लक्षण अक्सर मामूली समझकर छोड़ दिए जाते हैं। अमेरिकी चिकित्सा अध्ययनों के मुताबिक, यही लक्षण आगे चलकर गंभीर हृदय या फेफड़ों की बीमारी की नींव बन सकते हैं।
अब केवल नियंत्रण नहीं, इलाज पर भी जोर जरूरी
विशेषज्ञ मानते हैं कि प्रदूषण रोकने की नीतियां बेहद जरूरी हैं, लेकिन मौजूदा हालात में केवल इन्हीं पर निर्भर रहना पर्याप्त नहीं होगा। अमेरिका और ब्रिटेन के अनुभव बताते हैं कि बड़े पैमाने पर स्क्रीनिंग, समय रहते बीमारी की पहचान और संगठित उपचार कार्यक्रम ही दीर्घकालिक नुकसान को कम कर सकते हैं। भारत ने तपेदिक जैसी बीमारियों के खिलाफ व्यापक स्वास्थ्य अभियानों में सफलता पाई है, उसी तरह श्वसन और प्रदूषण-जनित रोगों के लिए भी राष्ट्रीय स्तर की रणनीति की जरूरत बताई जा रही है।
बढ़ता स्वास्थ्य और आर्थिक बोझ
अमेरिकी आकलनों के अनुसार, वायु प्रदूषण से जुड़ी बीमारियों के कारण स्वास्थ्य खर्च और उत्पादकता में गिरावट से अर्थव्यवस्था पर भी भारी असर पड़ता है। विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि यदि भारत ने समय रहते इस खतरे को गंभीरता से नहीं लिया, तो यह संकट न केवल स्वास्थ्य बल्कि आर्थिक मोर्चे पर भी देश के लिए बड़ी चुनौती बन सकता है।
अमेरिका और पश्चिमी देशों के डेटा साफ संकेत दे रहे हैं कि वायु प्रदूषण को नजरअंदाज करने की कीमत आने वाली पीढ़ियों को चुकानी पड़ सकती है। भारत के लिए यह चेतावनी का अंतिम अवसर माना जा रहा है—जहां रोकथाम के साथ-साथ बड़े पैमाने पर इलाज और निगरानी तंत्र खड़ा करना अब अनिवार्य हो गया है।





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