चुनाव सुधार : भ्रामक प्रचार का समाधान आवश्यक
महाराष्ट्र, हरियाणा और बिहार में जनमानस ने जिस प्रकार से खुलकर मतदान किया,उससे स्पष्ट हो गया है, कि जनता आधी छोड़ पूरी को ध्यावे पूरी मिले न आधी पावे, जैसे सत्य को समझ चुकी है। वह सत्ता प्राप्ति के लिए किये जाने वाले अकल्पनीय सुविधाओं के वादों पर यकीन नहीं करती। वह अपने क्षेत्र में किसी भी प्रकार की अराजकता को स्वीकार करने के पक्ष में नहीं है। वह अतीत का स्मरण करके सोच समझकर निर्णय लेती है, भावनाओं में बहकर मतदान नहीं करती।
इतिहास साक्षी है कि उत्तर प्रदेश और बिहार ऐसे प्रदेश रहे हैं, जिनमें एक समय में अराजकता अपनी चरम सीमा पर रही। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के शासनकाल में जिस प्रकार से आम आदमी का जीना मुहाल था, सड़कों पर चलना भी सुरक्षित नहीं था, उस स्थिति से निजात पाने के लिए उत्तर प्रदेश के मतदाताओं ने प्रदेश की सत्ता से समाजवादी पार्टी को बेदखल किया। उसी प्रकार बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के शासन काल में जंगलराज से निजात पाने के लिए जनता ने नीतीश कुमार को अपना मत एवं समर्थन दिया, जो लम्बे समय से बरक़रार है।
मतदाताओं ने जाति व धर्म की संकीर्णता से ऊपर उठकर सुशासन को ही एकमात्र विकल्प मानकर बढ़ चढ़ कर मतदान किया तथा चुनाव को प्रभावित करने के लिए नाकारा व अस्तित्वहीन राजनीतिक दलों के झूठे व भ्रामक विमर्श को नकार दिया तथा स्पष्ट सन्देश दिया कि स्वस्थ लोकतंत्र में आम मतदाता किसी भी वंशवादी राजनीतिक दल या नकारात्मक राजनीति करने वाले अराजक तत्वों का गुलाम नहीं है।
कहना गलत न होगा, कि स्वस्थ लोकतंत्र के लिए देश,काल और परिस्थिति के अनुसार समय समय पर चुनाव सुधार किये जाने आवश्यक हैं। देश का दुर्भाग्य है,कि अपनी संकीर्ण राजनीति के चलते कतिपय राजनीतिक दल चुनाव सुधारों का विरोध करते रहे हैं। बिहार हो अथवा बंगाल,इन राज्यों में एस.आई.आर. का विरोध केवल इसलिए किया गया,कि लाखों की संख्या में बने फर्जी वोटों को न काटा जाए। अब जब पूरे देश में विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है तथा पश्चिमी बंगाल में अवैध रूप से बसे घुसपैठियों को खदेड़ा जा रहा है, तब राजनीतिक दलों में अधिक बौखलाहट दिखाई दे रही है।
बिहार चुनाव परिणामों ने जाति आधारित राजनीति करने वाले विघटनकारी तत्वों की नींद उड़ा दी है। उन्हें एक समय में दिल्ली में हुए चुनावों में आम आदमी पार्टी की बम्पर विजय पर कोई संदेह नहीं हुआ,अब बिहार में आम आदमी द्वारा सुशासन के पक्ष में बढ़ चढ़ कर दिया गया जनादेश उन्हें हजम नहीं हो पा रहा है।
समझ नहीं आता,कि एक ही प्रकार के जनादेश को वे प्रतिकूल नजरिए से देखने की निर्लज्जता कैसे दिखा सकते हैं। बहरहाल जो भी हो, चुनाव को पारदर्शी बनाने के लिए मतदाता सूचियों को दुरुस्त करने, फर्जी वोट काटने की प्रक्रिया को सतर्कता से पूर्ण किया जाना चाहिए,ताकि चुनावों की निष्पक्षता पर किसी भी प्रकार से भ्रामक विमर्श को विस्तार का अवसर न मिले।
डॉ. सुधाकर आशावादी-विनायक फीचर्स





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