मगध के बाद अवध : कायम रहेगा इंडिया गठबंधन ?
बिहार की हार ने बढ़ाई यूपी में तकरार! 2027 से पहले INDIA गठबंधन की एकता पर खड़े हो गए कई सवाल !
बिहार विधानसभा चुनाव में करारी हार ने INDIA गठबंधन की अंदरूनी कमजोरियों को सतह पर ला दिया है। 2 दिन में ही इस हार का सबसे बड़ा असर उत्तर प्रदेश में दिख रहा है, जहां सपा–कांग्रेस की सीट-साझेदारी को लेकर उठे सवाल 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले विपक्षी एकता पर गहरी छाया डाल रहे हैं। एक तरफ भाजपा लगातार आक्रामक रुख में है, वहीं विपक्ष में अविश्वास और रणनीतिक भ्रम की स्थिति बढ़ती दिख रही है।
बिहार के नतीजों ने भाजपा के आत्मविश्वास को नया आधार दिया है। जिस मॉडल ने 2024 के लोकसभा चुनाव में यूपी में सपा-कांग्रेस गठबंधन को 80 में से 43 सीटें दिलाकर विपक्ष को मजबूत बनाया था, वही मॉडल अब दबाव में है। राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा तेज है कि क्या यह गठबंधन विधानसभा चुनाव तक टिक पाएगा या फिर 2017 की तरह चुनाव नजदीक आते ही मतभेद गहरा जाएंगे।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हालिया तीखे हमलों ने बहस को और धार दी है। कांग्रेस को “माओवादी” और “मुस्लिम लीग की शाखा” बताने के उनके बयान विपक्षी खेमे में बेचैनी बढ़ाने वाले माने जा रहे हैं। भाजपा नेताओं को विश्वास है कि बिहार का प्रभाव सीधे यूपी की राजनीति पर पड़ेगा। यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य का बयान *“मगध के बाद अब अवध”* इस रणनीतिक आत्मविश्वास को और रेखांकित करता है।
इधर कांग्रेस और सपा दोनों बाहरी तौर पर एकता का दावा कर रहे हैं, लेकिन भीतर कई सवालों की चिंगारी सुलग रही है। कांग्रेस यूपी में अपनी खोई ज़मीन वापस पाना चाहती है, जबकि सपा को डर है कि अत्यधिक समझौते से उसके संगठन पर दबाव बढ़ेगा। भाजपा इन कमजोरियों को भांपकर पहले से तैयारी में जुट गई है—2027 के लिए बूथ से लेकर प्रदेश स्तर तक संगठनात्मक माइक्रो-प्लानिंग सक्रिय हो चुकी है।
2024 की सफलता के बाद सपा-कांग्रेस को लगा था कि वे 2027 में भाजपा को कड़ी टक्कर देंगे। लेकिन बिहार के नतीजों ने उस रणनीति में बाधा डाल दी है। विपक्षी खेमे के कई रणनीतिकार मानते हैं कि अगर दोनों दल समय रहते सीटों और नेतृत्व की स्पष्ट रूपरेखा तय नहीं करते, तो गठबंधन दबाव में टूट सकता है।
फिर भी सपा इसे झटका मानने को तैयार नहीं। पार्टी के वरिष्ठ नेता राजेंद्र चौधरी का कहना है कि “परिणामों की समीक्षा होगी, लेकिन INDIA गठबंधन मज़बूत है।” वहीं कांग्रेस भी आधिकारिक तौर पर किसी फूट की बात नहीं मान रही, लेकिन अंदरूनी असहमतियाँ खुलकर दिखने लगी हैं।
दूसरी तरफ भाजपा इस पूरे घटनाक्रम को अपने विस्तार के अवसर की तरह देख रही है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा प्रदेश संगठन 2027 के लिए पहले ही ज़ोरदार जमीन तैयार करने में जुट गए हैं। पार्टी का दावा है कि बिहार की तरह यूपी में भी विकास और कल्याण योजनाओं का मॉडल निर्णायक बढ़त दिलाएगा।
कुल मिलाकर, बिहार की हार केवल एक चुनावी परिणाम नहीं है । इसने विपक्षी गठबंधन की एकता, रणनीति और भविष्य पर बड़े सवाल खड़े कर दिए हैं। 2027 की लड़ाई में कौन कितना मजबूत होकर उतरेगा, यह बहुत हद तक आने वाले महीनों में सपा और कांग्रेस के रिश्तों की दिशा तय करेगी।



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