मोहाली में स्लीपर बस में लगी आग: ड्राइवर की सूझबूझ से 30 यात्रियों की जान बची
दो महीनों में पांचवां बड़ा हादसा, सवालों के घेरे में स्लीपर बसों की सुरक्षा
मोहाली के जीरकपुर में शनिवार तड़के एक बार फिर स्लीपर बस हादसे ने यात्रियों की सांसें रोक दीं। आगरा से अमृतसर जा रही एक टूरिस्ट स्लीपर बस में अचानक आग लग गई। बस में करीब 30 यात्री सवार थे, लेकिन ड्राइवर की त्वरित समझदारी ने सभी की जान बचा ली। हादसा सुबह लगभग 5 बजे चंडीगढ़-दिल्ली हाईवे स्थित सिंघपुरा फ्लाईओवर के पास हुआ।
धुआं दिखाई दिया तो रोक दी बस, यात्रियों को उतारा बाहर
प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार बस जैसे ही सिंघपुरा पुल के पास पहुंची, ड्राइवर को इंजन से धुआं उठता दिखा। उस समय लगभग सभी यात्री गहरी नींद में थे। ड्राइवर ने बिना देरी किए बस को फ्लाईओवर किनारे रोका और सभी यात्रियों को उनका सामान लेकर सुरक्षित नीचे उतरवा दिया। इस दौरान किसी प्रकार की भगदड़ जैसी स्थिति नहीं बनी।
45 मिनट की मशक्कत के बाद आग पर काबू, बस खाक
सूचना मिलने के बाद डेराबस्सी और जीरकपुर से कुल तीन फायर टेंडर मौके पर पहुंचे। आग तेजी से फैल चुकी थी, लेकिन लगभग 45 मिनट की मेहनत के बाद आग पर काबू पा लिया गया। बस पूरी तरह जलकर राख हो गई।
फायर विभाग की प्रारंभिक जांच में शॉर्ट सर्किट या किसी तकनीकी खराबी को आग लगने की वजह माना गया है।
फ्लाईओवर पर आधे घंटे जाम, बाद में ट्रैफिक सुचारू
बस में आग लगने से फ्लाईओवर पर करीब 30 मिनट तक ट्रैफिक बाधित रहा। पुलिस ने बस को किनारे हटाकर रास्ता खुलवाया। यात्रियों को इसके बाद वैकल्पिक व्यवस्था से अमृतसर भेजा गया।
2 महीनों में स्लीपर बसों में पांच बड़े हादसे, बढ़ रहा खतराक्या स्लीपर बसें सुरक्षित हैं? सवालों के घेरे में डिजाइन, मेंटेनेंस और नियमों का पालन
देशभर में पिछले दो महीनों में लगातार स्लीपर बसों में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं। जीरकपुर की घटना इससे पहले हुए 4 दर्दनाक हादसों के बाद पांचवां बड़ा मामला है। जांच रिपोर्ट और विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि स्लीपर बसें सुरक्षा मानकों का पालन न होने के चलते यात्रियों के लिए ‘मौत का सफर’ साबित हो रही हैं।
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गलत डिजाइन, ओवरलोडिंग और खराब वायरिंग – हादसों की सबसे बड़ी वजह
हाल ही में राजस्थान के मनोहरपुर में डबल डेकर बस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आने से जलकर राख हो गई। जांच में पाया गया कि बस की छत पर नियमों के खिलाफ गैस सिलिंडर और कई सामान रखे थे, जिससे आग भड़की।
सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ बताते हैं—
कई ऑपरेटर बसों की वायरिंग व एसी सिस्टम की मेंटेनेंस पर खर्च नहीं करते
ओवरलोडिंग, घटिया मटीरियल और गलत डिजाइन से जोखिम बढ़ता है
कई बसों में इमरजेंसी गेट बंद पाए गए
ज्वलनशील पदार्थों का इंटीरियर में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है
पूर्व डीजीपी प्रो. विक्रम सिंह का कहना है कि नॉन-स्टैंडर्ड बॉडी बिल्डरों द्वारा बनाई गई बसें आग फैलने की सबसे बड़ी वजह बन रही हैं।
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ओवरलोडिंग और बसों से माल ढुलाई — जोखिम और बढ़ाता है
ऑल इंडिया मोटर एंड गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर बताते हैं कि कई ऑपरेटर यात्रियों के साथ-साथ माल ढुलाई भी करते हैं।
उन्होंने कहा—
“जैसलमेर हादसे में पटाखे, आंध्र में मोबाइल बैटरियां और कई अन्य मामलों में सिलिंडर तक बसों में पाए गए। सरकार को इसे सख्ती से रोकना चाहिए।”
रिटायर्ड मोटर लाइसेंसिंग ऑफिसर नंद गोपाल का कहना है कि पास होने के बाद कई बस मालिक सीटें बढ़ाकर इमरजेंसी रास्ते बंद कर देते हैं, जो हादसे में मौत का जाल बन जाते हैं।
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नई बस बॉडी पॉलिसी लागू, लेकिन जमीन पर नियमों का पालन नहीं
केंद्र सरकार ने 1 सितंबर से देशभर में नई बस बॉडी पॉलिसी लागू की है। इस कोड में 150 से अधिक सुरक्षा मानक शामिल हैं। लेकिन हाल के हादसों ने साफ कर दिया कि सड़क पर चल रही ज्यादातर बसें इस पॉलिसी के अनुरूप नहीं हैं।
जैसलमेर की दिल दहला देने वाली घटना ने खड़े किए सवाल
जैसलमेर की एसी स्लीपर बस में आग लगने से 26 यात्रियों की मौत हुई थी। चौंकाने वाली बात यह थी कि बस नई पॉलिसी लागू होने के बाद बनी थी, फिर भी—
इमरजेंसी गेट मौजूद नहीं था
फायर अलार्म और पानी की लाइन खराब थी
फायर एक्सटिंगुइशर खाली मिला
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विशेषज्ञ बोले— नियम हैं, पर अमल कमजोर
दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर अनिल छिकारा कहते हैं—
“कठोर जांच नहीं होगी तो पॉलिसी कागजों में ही रह जाएगी। मुश्किल से 5% बसों में फायर अलार्म या इमरजेंसी सिस्टम काम करता मिलता है।”
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हर 3–6 महीने में रूटीन जांच अनिवार्य हो
राजेंद्र कपूर का सुझाव है कि—
पहली गलती पर भारी जुर्माना
दोबारा गलती पर बस जब्त
ड्राइवर का लाइसेंस निलंबित
तभी सड़क सुरक्षा लागू होगी।
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नई बस बॉडी पॉलिसी में क्या है खास
इमरजेंसी एग्जिट गेट + शीशा तोड़ने के हथौड़े
स्मोक डिटेक्टर, फायर अलार्म, 360° कैमरे
ज्वलनशील सामग्री पर रोक
जीपीएस और फायर लाइन अनिवार्य
छत और पीछे दोनों ओर इमरजेंसी गेट
OEM स्तर की क्वालिटी मानकों का पालन
सूत्रों के अनुसार, महाराष्ट्र के समृद्धि एक्सप्रेसवे पर 26 मौतों के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यूरोप की नीति के आधार पर इस कोड का प्रारूप तैयार कराया था।
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नियम बने, पर लागू करने की ईमानदार प्रणाली अभी भी नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक राज्यों की आरटीओ और परिवहन एजेंसियां सख्ती से पालन न कराएं, तब तक ऐसी बसें सड़क पर खतरा बनी रहेंगी।
स्पष्ट है—
आज का जीरकपुर हादसा बड़ा नहीं बना, पर चेतावनी जरूर दे गया है कि स्लीपर बसों में सफर करना अभी भी जोखिमों से भरा है।
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क्या स्लीपर बसें सुरक्षित हैं? सवालों के घेरे में डिजाइन, मेंटेनेंस और नियमों का पालन
देशभर में पिछले दो महीनों में लगातार स्लीपर बसों में आग लगने की घटनाएं सामने आ रही हैं। जीरकपुर की घटना इससे पहले हुए 4 दर्दनाक हादसों के बाद पांचवां बड़ा मामला है। जांच रिपोर्ट और विशेषज्ञ लगातार चेतावनी दे रहे हैं कि स्लीपर बसें सुरक्षा मानकों का पालन न होने के चलते यात्रियों के लिए ‘मौत का सफर’ साबित हो रही हैं।
गलत डिजाइन, ओवरलोडिंग और खराब वायरिंग – हादसों की सबसे बड़ी वजह
हाल ही में राजस्थान के मनोहरपुर में डबल डेकर बस हाईटेंशन लाइन की चपेट में आने से जलकर राख हो गई। जांच में पाया गया कि बस की छत पर नियमों के खिलाफ गैस सिलिंडर और कई सामान रखे थे, जिससे आग भड़की।
सड़क सुरक्षा विशेषज्ञ बताते हैं
- कई ऑपरेटर बसों की वायरिंग व एसी सिस्टम की मेंटेनेंस पर खर्च नहीं करते
- ओवरलोडिंग, घटिया मटीरियल और गलत डिजाइन से जोखिम बढ़ता है
- कई बसों में इमरजेंसी गेट बंद पाए गए
- ज्वलनशील पदार्थों का इंटीरियर में बड़े पैमाने पर इस्तेमाल होता है
पूर्व डीजीपी प्रो. विक्रम सिंह का कहना है कि नॉन-स्टैंडर्ड बॉडी बिल्डरों द्वारा बनाई गई बसें आग फैलने की सबसे बड़ी वजह बन रही हैं।
ओवरलोडिंग और बसों से माल ढुलाई — जोखिम और बढ़ाता है
ऑल इंडिया मोटर एंड गुड्स ट्रांसपोर्ट एसोसिएशन के अध्यक्ष राजेंद्र कपूर बताते हैं कि कई ऑपरेटर यात्रियों के साथ-साथ माल ढुलाई भी करते हैं।
उन्होंने कहा— “जैसलमेर हादसे में पटाखे, आंध्र में मोबाइल बैटरियां और कई अन्य मामलों में सिलिंडर तक बसों में पाए गए। सरकार को इसे सख्ती से रोकना चाहिए।”
रिटायर्ड मोटर लाइसेंसिंग ऑफिसर नंद गोपाल का कहना है कि पास होने के बाद कई बस मालिक सीटें बढ़ाकर इमरजेंसी रास्ते बंद कर देते हैं, जो हादसे में मौत का जाल बन जाते हैं।
नई बस बॉडी पॉलिसी लागू, लेकिन जमीन पर नियमों का पालन नहीं
केंद्र सरकार ने 1 सितंबर से देशभर में नई बस बॉडी पॉलिसी लागू की है। इस कोड में 150 से अधिक सुरक्षा मानक शामिल हैं। लेकिन हाल के हादसों ने साफ कर दिया कि सड़क पर चल रही ज्यादातर बसें इस पॉलिसी के अनुरूप नहीं हैं।
जैसलमेर की दिल दहला देने वाली घटना ने खड़े किए सवाल
जैसलमेर की एसी स्लीपर बस में आग लगने से 26 यात्रियों की मौत हुई थी। चौंकाने वाली बात यह थी कि बस नई पॉलिसी लागू होने के बाद बनी थी, फिर भी—
- इमरजेंसी गेट मौजूद नहीं था
- फायर अलार्म और पानी की लाइन खराब थी
- फायर एक्सटिंगुइशर खाली मिला
विशेषज्ञ बोले— नियम हैं, पर अमल कमजोर
दिल्ली ट्रांसपोर्ट विभाग के पूर्व डिप्टी कमिश्नर अनिल छिकारा कहते हैं— “कठोर जांच नहीं होगी तो पॉलिसी कागजों में ही रह जाएगी। मुश्किल से 5% बसों में फायर अलार्म या इमरजेंसी सिस्टम काम करता मिलता है।”
हर 3–6 महीने में रूटीन जांच अनिवार्य हो
राजेंद्र कपूर का सुझाव है कि—
- पहली गलती पर भारी जुर्माना
- दोबारा गलती पर बस जब्त
- ड्राइवर का लाइसेंस निलंबित
तभी सड़क सुरक्षा लागू होगी।
नई बस बॉडी पॉलिसी में क्या है खास
- इमरजेंसी एग्जिट गेट + शीशा तोड़ने के हथौड़े
- स्मोक डिटेक्टर, फायर अलार्म, 360° कैमरे
- ज्वलनशील सामग्री पर रोक
- जीपीएस और फायर लाइन अनिवार्य
- छत और पीछे दोनों ओर इमरजेंसी गेट
- OEM स्तर की क्वालिटी मानकों का पालन
सूत्रों के अनुसार, महाराष्ट्र के समृद्धि एक्सप्रेसवे पर 26 मौतों के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने यूरोप की नीति के आधार पर इस कोड का प्रारूप तैयार कराया था।
नियम बने, पर लागू करने की ईमानदार प्रणाली अभी भी नहीं
विशेषज्ञों का कहना है कि जब तक राज्यों की आरटीओ और परिवहन एजेंसियां सख्ती से पालन न कराएं, तब तक ऐसी बसें सड़क पर खतरा बनी रहेंगी।
स्पष्ट है— आज का जीरकपुर हादसा बड़ा नहीं बना, पर चेतावनी जरूर दे गया है कि स्लीपर बसों में सफर करना अभी भी जोखिमों से भरा है।




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