दिल्ली धमाका : किसी बड़ी साजिश का संकेत
राजधानी की सुरक्षा पर गहरे सवाल, स्कूलों की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा आवश्यक
दिल्ली के रोहिणी सीआरपीएफ स्कूल में हुआ धमाका केवल एक हादसा नहीं बल्कि एक गहरी साजिश का संकेत है। यह घटना बताती है कि राजधानी जैसी सुरक्षित मानी जाने वाली जगह भी आतंकी या असामाजिक तत्वों के निशाने पर है। बच्चों के बीच इस तरह की घटना असहनीय और भयावह है। सरकार को चाहिए कि जांच एजेंसियाँ तेजी से कार्रवाई करें और दोषियों को कड़ी सजा दें। साथ ही स्कूलों और सार्वजनिक स्थलों की सुरक्षा व्यवस्था की समीक्षा हो ताकि भविष्य में ऐसी त्रासदियाँ दोहराई न जाएँ। नागरिक सुरक्षा ही राष्ट्र की वास्तविक ताकत है।
रविवार सुबह राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में स्थित सीआरपीएफ स्कूल के बाहर हुआ धमाका पूरे देश को हिला गया। यह केवल एक हादसा नहीं था, बल्कि संभवतः किसी बड़ी साजिश की कड़ी का संकेत है। देश की राजधानी में सुरक्षाबलों के स्कूल के पास इस तरह का विस्फोट होना न सिर्फ सुरक्षा एजेंसियों की चौकसी पर सवाल उठाता है, बल्कि इस बात की भी चेतावनी देता है कि आतंकी और विध्वंसकारी ताकतें अब भी सक्रिय हैं और अपने नापाक इरादों को अंजाम देने के मौके तलाश रही हैं।
यह धमाका रोहिणी सेक्टर-14 के सीआरपीएफ पब्लिक स्कूल की दीवार के पास हुआ। स्थानीय लोगों ने सुबह करीब सात बजे के आसपास तेज धमाके की आवाज सुनी। धमाका इतना तेज था कि आसपास के मकानों और दुकानों के शीशे टूट गए, दीवार में छेद हो गया और क्षेत्र में कुछ देर के लिए अफरातफरी मच गई। सौभाग्य से स्कूल बंद था, जिससे किसी जानमाल का नुकसान नहीं हुआ। हालांकि, यह बात राहत से ज्यादा चिंता का विषय है कि अगर यह घटना स्कूल खुलने के समय होती, तो बड़ी त्रासदी हो सकती थी।
दिल्ली पुलिस, एनआईए, एनएसजी और फॉरेंसिक टीमों ने तुरंत मौके पर पहुंचकर जांच शुरू की। जांच में सफेद पाउडर, तारों के टुकड़े और विस्फोटक पदार्थ के अंश मिले हैं, जिससे यह संभावना बलवती होती है कि धमाके में क्रूड बम या इम्प्रोवाइज्ड एक्सप्लोसिव डिवाइस (IED) का इस्तेमाल किया गया। जांच एजेंसियों ने सीसीटीवी फुटेज खंगाले हैं, जिसमें एक संदिग्ध युवक सफेद टी-शर्ट में क्षेत्र के आसपास घूमता दिखा। वहीं, सोशल मीडिया प्लेटफ़ॉर्म टेलीग्राम पर एक चैनल ने इस धमाके की जिम्मेदारी लेने का दावा किया, जिसे बाद में खालिस्तानी समर्थक तत्वों से जोड़ा गया। हालांकि इस दावे की पुष्टि जांच एजेंसियों ने नहीं की है, परंतु इससे यह संकेत अवश्य मिलता है कि घटना के पीछे किसी संगठित नेटवर्क की भूमिका हो सकती है।
दिल्ली देश की राजधानी है — यहाँ संसद, सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रपति भवन, प्रधानमंत्री कार्यालय और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों के मुख्यालय स्थित हैं। ऐसे में इस तरह का विस्फोट होना गंभीर सुरक्षा चूक को दर्शाता है। यह तथ्य और भी चिंताजनक है कि धमाका सीआरपीएफ स्कूल के बाहर हुआ — यानी एक ऐसे संस्थान के पास, जो स्वयं देश की सबसे सशक्त अर्धसैनिक बल से जुड़ा हुआ है। यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि जब सुरक्षा बलों की चौकी के पास ऐसी घटना हो सकती है, तो आम नागरिक कितना सुरक्षित है? दिल्ली पुलिस और खुफिया एजेंसियों को अब केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं बल्कि प्रो-एक्टिव रणनीति अपनानी होगी — यानी घटना के बाद नहीं, बल्कि पहले से ऐसे संकेतों को पहचानना और निष्क्रिय करना होगा।
ऐसी घटनाएँ केवल भौतिक क्षति नहीं करतीं, बल्कि समाज में भय और असुरक्षा का माहौल भी पैदा करती हैं। राजधानी में इस तरह का विस्फोट आम नागरिकों के मन में यह धारणा मजबूत करता है कि आतंकवादी ताकतें किसी भी समय, कहीं भी वार कर सकती हैं। स्कूल के बाहर हुआ धमाका बच्चों, अभिभावकों और शिक्षकों के मनोबल को प्रभावित करता है। बच्चे जिन स्कूलों में शिक्षा लेने जाते हैं, अगर वे स्थान भी असुरक्षित महसूस होने लगें, तो यह स्थिति किसी भी लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।
ऐसी घटनाओं के बाद राजनीतिक दलों की बयानबाज़ी शुरू हो जाती है — कोई इसे कानून-व्यवस्था की नाकामी बताता है तो कोई राजनीतिक साजिश कहता है। लेकिन सच्चाई यह है कि आतंकवाद और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियाँ किसी पार्टी या विचारधारा की नहीं होतीं, ये पूरी मानवता के खिलाफ होती हैं। इसलिए इस तरह के मामलों में राजनीतिक लाभ-हानि की सोच से ऊपर उठकर राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता देना समय की मांग है। केंद्र और राज्य सरकारों को मिलकर ऐसी नीतियाँ बनानी होंगी जो केवल कागज़ी जांचों तक सीमित न रहें, बल्कि जमीनी स्तर पर ठोस निवारक कदम सुनिश्चित करें।
आज आतंकवादी और असामाजिक तत्व पारंपरिक तरीकों से हटकर डिजिटल प्लेटफ़ॉर्म, सोशल मीडिया और डार्क वेब का उपयोग कर रहे हैं। टेलीग्राम चैनल के माध्यम से जिम्मेदारी लेने की कोशिश इसी प्रवृत्ति का हिस्सा है — जिससे आतंक फैलाना, भ्रम पैदा करना और जांच को भटकाना आसान हो जाता है। इसलिए अब सुरक्षा एजेंसियों को साइबर इंटेलिजेंस पर उतना ही ध्यान देना होगा जितना फिजिकल सुरक्षा पर दिया जाता है। फर्जी संदेशों, हैकिंग नेटवर्क और डिजिटल फंडिंग की निगरानी जरूरी है।
हर बार जब कोई ऐसी घटना होती है, तो हम यह सोचकर चुप हो जाते हैं कि सुरक्षा एजेंसियाँ सब संभाल लेंगी। लेकिन सच्चाई यह है कि आम नागरिक भी सुरक्षा तंत्र की पहली कड़ी हैं। संदिग्ध वस्तु, अनजान व्यक्ति या असामान्य गतिविधि पर नजर रखना और तत्काल पुलिस को सूचित करना — यह नागरिक कर्तव्य बनना चाहिए। सुरक्षा सिर्फ बंदूक और बुलेटप्रूफ जैकेट से नहीं आती, बल्कि सजग नागरिक चेतना से भी आती है।
भारत लंबे समय से सीमापार आतंकवाद का शिकार रहा है। कई बार राजधानी दिल्ली और अन्य महानगर आतंकी संगठनों के निशाने पर रहे हैं। रोहिणी विस्फोट जैसी घटनाएँ यह याद दिलाती हैं कि हमारे शत्रु तंत्र हर समय सक्रिय हैं और देश की स्थिरता को अस्थिर करने के प्रयास में हैं। ऐसे में भारत को अपनी आंतरिक सुरक्षा नीति को और सुदृढ़ करना होगा — विशेषकर शहरी क्षेत्रों की खुफिया निगरानी को तकनीकी रूप से उन्नत बनाना आवश्यक है।
हर ऐसी घटना में निष्कर्ष आने में महीनों लग जाते हैं। जनता को समय-समय पर अपडेट देना जरूरी है ताकि अफवाहें न फैलें। सभी केंद्रीय और अर्धसैनिक संस्थानों के आसपास की सुरक्षा समीक्षा तत्काल की जानी चाहिए। सोशल मीडिया पर उग्रवादी संदेशों और चैनलों पर सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए। नागरिकों को सुरक्षा अभियान का भागीदार बनाना — स्कूलों और बाजारों में जागरूकता अभियान चलाना भी आवश्यक है। ऐसे मामलों पर सभी दलों को एक मंच से बयान देना चाहिए, ताकि दुश्मन यह न समझे कि देश अंदर से बँटा हुआ है।
दिल्ली के रोहिणी क्षेत्र में हुआ यह धमाका भले ही सौभाग्य से किसी बड़ी जनहानि का कारण नहीं बना, लेकिन यह घटना हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि आतंकवाद की चुनौती अब भी हमारे चारों ओर मौजूद है। यह केवल एक पुलिस केस नहीं, बल्कि राष्ट्रीय सुरक्षा, सामाजिक एकता और नागरिक जिम्मेदारी से जुड़ा मामला है। जरूरत इस बात की है कि हम घटना को महज़ “एक धमाका” न मानें, बल्कि इसे एक चेतावनी के रूप में लें — एक ऐसी चेतावनी जो बताती है कि लापरवाही की गुंजाइश अब नहीं बची।
राष्ट्र की सुरक्षा केवल सैनिकों के कंधों पर नहीं टिकी होती, बल्कि हर नागरिक की सजगता और एकता में निहित होती है। अगर हम सभी मिलकर सतर्क रहें, जागरूक रहें और एकजुट रहें — तो कोई भी साजिश हमें तोड़ नहीं सकती।
– डॉ प्रियंका सौरभ





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