मुजफ्फरनगर कांड से उत्तराखंड के अलग राज्य की भड़की थी चिंगारी, जब पुलिस ने निहत्थे लोगों पर चलाई थी गोली, 7 की हुई थी मौत
जब भी उत्तराखंड स्थापना दिवस की तारीख 9 नवंबर आती है तो इस राज्य के लिए बलिदान देने वाले शहीदों को जरूर याद किया जाता है जो मुजफ्फरनगर कांड में मारे दिए गए थे। इस खबर में पढ़िए मुजफ्फरनगर कांड की कहानी क्या है।
9 नवंबर, ये तारीख कोई आम दिन नहीं, बल्कि लाखों पहाड़ियों के सपने, संघर्ष और बलिदान का दिन है। 9 नवंबर को ही साल 2000 में आज का उत्तराखंड और तब का उत्तरांचल, भारत का 27वां राज्य बना था। लेकिन खास बात ये है कि इस नए प्रदेश की नींव महज सियासी फैसलों से नहीं, बल्कि उस दर्द और नाइंसाफी से पड़ी थी जो साल 1994 में ”मुजफ्फरनगर कांड” और ”रामपुर तिराहा गोलीकांड” के तौर पर देश ने देखा था। उस वक्त उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव की सरकार थी और रामपुर तिराहा कांड को उनकी हुकूमत के काले अध्याय के रूप में जाना जाता है। इस आर्टिकल में पढ़ें मुजफ्फरनगर कांड की कहानी।
पहाड़ी इलाके में क्यों उठी थी अलग राज्य की मांग?
ये तब की बात है जब उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड अलग-अलग राज्य नहीं थे। उन दिनों यूपी के पहाड़ी क्षेत्र ‘उत्तरांचल’ के लोग लंबे वक्त से अपने अलग राज्य की मांग कर रहे थे। उनका आरोप था कि पहाड़ों के डेवलपमेंट की बातें सिर्फ कागजों में सिमट जाती हैं, सड़कें टूटी हैं, स्कूलों में टीचर नहीं हैं, हॉस्पिटल्स में डॉक्टर नहीं हैं और नौकरियां मैदानी इलाकों तक सीमित हैं। उन लोगों की डिमांड थी कि पहाड़ों की समस्याओं को पहाड़ के लोग ही समझ सकते हैं। इस वजह से उत्तरांचल का अलग राज्य होना जरूरी है।
रामपुर तिराहा पर निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर चली गोली
इसी बीच आता है 2 अक्तूबर, 1994 यानी गांधी जयंती का दिन। हजारों आंदोलनकारी पहाड़ी इलाके से दिल्ली मार्च के लिए रवाना हुए, शांतिपूर्वक अपनी आवाज राजधानी में उठाने। जब ये काफिला मुजफ्फरनगर पहुंचा तो वहां इतिहास का एक काला अध्याय लिखा गया। यूपी पुलिस ने मुजफ्फरपुर के रामपुर तिराहे पर जब उन्हें रोका तो झड़प हो गई। पहले पत्थरबाजी हुई, जिसमें कई पुलिसकर्मी घायल हो गए। फिर पुलिस ने हालात काबू करने के लिए लाठीचार्ज किया और बाद में निहत्थे प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चला दीं। इस घटना में 7 लोगों की मौत हो गई और कई गंभीर रूप से घायल हुए। रामपुर तिराहे पर हुए गोलीकांड का परिणाम ये हुआ कि पहाड़ के सीने में बगावत की आग जल उठी।
जब पहाड़ के हर घर में गूंजी आंदोलन की आवाज!
मुजफ्फरनगर की घटना यूपी से अलग राज्य की मांग के आंदोलन का टर्निंग पॉइंट बन गई। पहाड़ी इलाके के हर घर, हर गांव में आक्रोश की लहर दौड़ने लगी। छात्र, महिलाएं और बच्चे सब सड़कों पर उतर आए। धीरे-धीरे ये आंदोलन तेज हुआ और पहाड़ के हर जिले में नारे लगने लगे- “हमारा पहाड़, हमारा राज्य!”
आखिरकार मिल गया पहाड़ियों को अपना अलग राज्य
फिर कई साल तक संघर्ष और प्रदर्शनों के के बाद आखिरकार तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 9 नवंबर 2000 को तब के उत्तरांचल का सपना साकार हुआ। नई सुबह की किरणों ने पहाड़ों को नए राज्य उत्तरांचल की पहचान दी। हालांकि, बाद में इसका नाम बदलकर उत्तराखंड कर दिया गया।
आज उत्तराखंड स्थापना दिवस पर जश्न के साथ-साथ उन लोगों को भी याद किया जाता है जिन्होंने अपने खून से इस प्रदेश की नींव लिखी। ये दिन याद दिलाता है कि परिवर्तन की शुरुआत हमेशा एक छोटी सी चिंगारी से होती है। कभी-कभी यही छोटी चिंगारी इतिहास को गढ़ देती है।



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