खरी-अखरी: विक्रम के काधे से उतरने को तैयार नहीं हो रहा बेताल
नरेन्द्र मोदी और अमित शाह (गुजरात लाॅबी) को ये मुगालता हो गया है कि वो ही बीजेपी के पर्यायवाची बन गये हैं और उनके ना रहने पर बीजेपी खत्म हो जायेगी जबकि हकीकत ये है कि बीजेपी मोदी-शाह के रहते खत्म हो चुकी है ! बीजेपी का केवल नाम रह गया है सही मायने में बीजेपी कांग्रेस पार्ट टू बन चुकी है। बीजेपी के साथ चिपका लेबल “पार्टी विथ डिफरेंट” को मोदी-शाह की सत्ता लोलुपता ने बहुत पहले निगल लिया है। बीजेपी के खांटी नेता और कार्यकर्ता दूसरी पार्टी के भृष्ट आयातित नेताओं की वजह से खुद को अपमानित और दोयम दर्जे का महसूस कर रहे हैं। सौ टके की बात तो ये है कि जिस दिन बीजेपी मोदी-शाह के साये से मुक्त होगी उसके अच्छे दिन शुरू हो जायेंगे। गुजराती जोड़ी ने पार्टी को पार्टी की जगह गेंग (गिरोह) बना दिया गया है। इस जोड़ी का खौफ इतना ज्यादा है कि बीजेपी का पितृ संगठन आरएसएस मोदी-शाह की पसंद से इतर जिसको भी पार्टी की कमान सौंपने की सोचता है उसी की चड्डी का नाड़ा टूटने लगता है। कहावत है लोहे को लोहा ही काटता है तो तय है कि गुजरात लाॅबी को निपटाने के लिए गुजरात का ही कोई ऐसा बंदाबैरागी चाहिए जिसको इस गुजरात लाॅबी से कोई पुराना हिसाब चुकता करना हो और ये गुजरात लाॅबी के भीतर भी कहीं न कहीं उसका खौफ़ जदा हो। आरएसएस के तरकश में एक ही ऐसा तीर है जो ना केवल इस गुजरात लाॅबी से बीजेपी को मुक्ति दिला सकता है बल्कि सही मायने में लकवाग्रस्त हो चुकी पार्टी में जान फूंक कर फिर वही पार्टी विथ डिफरेंट की पोजिशन पर लाकर खड़ा कर सकता है। उस शक्स का नाम है संजय जोशी। जिसके अच्छे खासे समर्थकों का जमावड़ा पार्टी के भीतर मौजूद है। मगर आरएसएस भी कहीं शिवराज सिंह चौहान, वसुंधरा राजे सिंधिया, नितिन गडकरी के नाम उछाल कर मोदी-शाह की पसंद के धर्मेंद्र प्रधान, भूपेन्द्र यादव, मनोहर लाल खट्टर से मुर्गे लड़ा कर मजे ले रहा है और एक खूंट में बैठकर संजय जोशी अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं।
राजनीतिक गलियारों में इस बात की कानाफूसी हो रही है कि आरएसएस की नजरों के तारे नितिन गडकरी को निपटाने के लिए मोदी-शाह की जोड़ी उनके मंत्रालय की फाइलों को खखांलने लगी है क्योंकि एक बार फिर से गडकरी को बीजेपी का राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाने या फिर मोदी के विकल्प बतौर प्रधानमंत्री बनाने के पत्तों को संघ ने फेंटना शुरू कर दिया है। आरएसएस और मोदी-शाह के बीच चल रही रस्साकशी में फंस कर नितिन गडकरी ऊंची कुर्सी पर बैठेंगे या फिर बलि का बकरा बनकर सलाखों के पीछे बैठकर चक्की पीसिंग करेंगे ये तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में ही है । नितिन गडकरी ने बीते दिनों कहा भी है कि पैसे देकर मेरे खिलाफ अभियान चलाया जा रहा है। गत दिनों सुप्रीम कोर्ट में ऐथॅनाल को लेकर दायर की गई याचिका में नितिन गडकरी के लड़कों की कंपनी को घसीटने की चर्चा आम हो चली थी।
नरेन्द्र मोदी का 75 साल पूरा करना अब उनको ही डराने लगा है कारण उन्होंने जिन्हें 75 साल पूरा करने पर बीजेपी के मार्गदर्श मंडल में बैठाया है उन्होंने अपने बगल में एक खाली कुर्सी रख छोड़ी है नरेन्द्र मोदी के लिए। बीजेपी के संस्थापक सदस्यों में से एक वरिष्ठ बीजेपी नेता और पूर्व केन्द्रीय मंत्री मुरली मनोहर जोशी तो खुलकर नरेन्द्र मोदी को मार्गदर्शक मंडल की खाली कुर्सी पर बैठने का न्यौता दे रहे हैं मगर वहां बैठे वरिष्ठों द्वारा कहीं मुड़थपड़ी न खेली जाने लगे इससे डर कर मोदी बिदकते हुए दिख रहे हैं। संघ अपने शताब्दी वर्ष में एक बार फिर सत्ता के त्रिशूल को अपने हाथों में लेकर एक दूसरी लाइन पर चलना चाहता है। सत्ता त्रिशूल का वर्तमानी मतलब है मोदी की सत्ता, बीजेपी और राज्यों के पर्ची मुख्यमंत्रियों की सत्ता। जो आज की तारीख में मोदी-शाह की मुठ्ठी में कैद है। खबर तो यह भी कहती है कि कि संघ त्रिशूल का एक शूल (केंद्र की सत्ता) मोदी को देने के लिए तैयार है क्योंकि वह जानता है कि बैसाखी के सहारे चलने वाली सत्ता को वह जब चाहेगा लंगड़ी मार कर गिरा सकता है। मगर बीजेपी की कमान वह पूरे तरीके से अपने हाथ में लेना चाहता है। कहने को तो संघ ध्यान भटकाने के लिए कहता रहता है कि पार्टी का अध्यक्ष चुनना बीजेपी का काम है हम तो केवल सलाह देते हैं। मोदी-शाह की जोड़ी लम्बे समय से टार्च जला कर अध्यक्ष ढ़ूढ़ रही है लेकिन संघ की सलाह के अंधियारे या कहें भारी भरकम उजियारे से मोदी-शाह को अध्यक्ष ढ़ूढ़े नहीं मिल रहा है। मोदी-शाह जिन नामों को लेकर संघ के पास सलाह लेने जाते हैं संघ उन नामों को एक सिरे खारिज करके अपनी तरफ से कुछ नाम बतौर सलाह रख देता है। ये छछूंदर के सिर पर चमेली का तेल लगाने वाले खेल को लम्बे समय देश देख रहा है । वैसे अब इस सांप-छछूंदर के खेल का पटाक्षेप करते हुए संघ प्रमुख को अपने तरकश के अमोघ तीर (संजय जोशी) को सामने रख देना चाहिए।
संघ के फ्लैशबैक में झांकियेगा तो पता चलता है कि संघ अपने 3 दर्जन से ज्यादा अनुशांगिग संगठनों को अपनी विचारधारा के अनुसार चलाता है और उन संगठनों में जो भी अपनी उपयोगिता खो देता है उसे जोंक की तरह से उपयोग करने के बाद छोड़ देने या कहें किनारे लगाने से परहेज नहीं करता है। इसके सबसे सटीक उदाहरण के तौर पर विश्व हिंदू परिषद के तात्कालिक अंतरराष्ट्रीय महासचिव गुजरात से आने वाले प्रवीण भाई तोगड़िया को पेश किया जा सकता है। कैसे उन्हें एक झटके में बाहर का रास्ता दिखा दिया गया था। कैसे आडवाणी को किनारे लगाया गया यह भी सभी ने देखा है। बीजेपी के भीतर मोदी-शाह को लेकर उठ रहे बगावती स्वर भले ही वे अभी फुसफुसाहट की तरह सुनाई दे रहे हैं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फेल हो रही भारत की विदेश नीति, कूटनीति, अर्थनीति, राजनीति, सुरसा के मुंह माफिक पसर रही बेकारी, बेरोजगारी, मंहगाई, संगठन में सत्ता लोलुपता के चलते आयातित किये गये चरित्रहीन नेताओं से पार्टी विथ डिफरेंट की छबि पर लग रहे दाग-धब्बों से लगता है कि अब संघ के लिए नरेन्द्र मोदी और अमित शाह अनुपयोगी हो चुके हैं और संघ अब उनसे पिंड छुड़ाना चाहता है। यह अलग बात है कि मोदी-शाह बेताल की भांति विक्रम (संघ) के कांधे से उतरे के लिए तैयार नहीं हैं।
इसे इस तरह भी समझा जा सकता है कि खबर है कि निखालिस संघ-बीजेपी की विचारधारा पर चलने वाले बीजेपी के 3 दर्जन से अधिक सांसद मोदी को लेकर सवाल खड़े कर रहे हैं। यह बात दीगर है कि संघ की समझाईस के कारण वे आवाजें हलक से बाहर नहीं निकल रही हैं। ध्यान दीजिए 2019 में जो मुरली मनोहर जोशी नरेन्द्र मोदी की तारीफ करते हुए आशीर्वाद दे रहे थे वो आज मुखर होकर नरेन्द्र मोदी को मार्गदर्शक मंडल में लाने के लिए मोर्चा खोल चुके हैं। आखिर मुरली मनोहर जोशी में इतनी हिम्मत आई कहां से ? जाहिर है इसके पीछे संघ का सपोर्ट है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 100 साल होने पर जिस तरह से नरेन्द्र मोदी संघ और सरसंघचालक के कसीदे पढ़ रहे हैं उससे यही संदेश निकल रहा है कि नरेन्द्र मोदी अपनी कुर्सी बचाने के लिए अपना आखिरी दांव चल रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने भाषणों में यह भी भूल जाते हैं कि पिछले 11 सालों से तो वे ही भारत के भाग्य विधाता बने हुए हैं तो फिर देश के भीतर घुसपैठियों का आना किसकी शह पर हो रहा है ? क्या इसके लिए रक्षामंत्री राजनाथ सिंह और गृहमंत्री अमित शाह सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं ? और अगर हैं तो वे आज तक कुर्सी पर कैसे बैठे हुए हैं ? क्या मंत्रीमंडल की सामूहिक जिम्मेदारी के सिध्दांत पर खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जिम्मेदार नहीं हैं ? क्या उन्हें घुसपैठ की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा नहीं दे देना चाहिए.? या फिर ये विशुद्ध रूप से जुमलेबाजी है और अगर यह जुमलेबाजी है तो सर्वाधिक शर्मनाक और शर्मशार करने वाली जुमलेबाजी है।
लगता है कि गुजराती जोड़ी का तरकस खाली हो चुका है और उसने आखिरी हथियार के रूप में रथ का पहिया उठा लिया है और रथ के पहिये से युद्ध नहीं जीता जाता है वह भी तब जब सामने से ब्रह्मास्त्र चल रहे हों। नरेन्द्र मोदी की बाॅडी लेंग्वेज बताती है कि अब उनका औरा अस्ताचल की ओर प्रस्थान कर चुका है। मोदी-शाह की अंतिम जीवन दायनी बिहार का विधानसभा चुनाव है। जीते तो नैया पार वरना बिहार का चुनाव ताबूत में आखिरी कील साबित होगा। वैसे अब मोदी-शाह का औरा खत्म करने के लिए विपक्ष की कतई जरूरत समझ में नहीं आती क्योंकि बीजेपी के भीतर ही मोदी-शाह के खिलाफ विपक्ष जन्म ले चुका है और यही कारण है कि आज तक बीजेपी संसदीय दल की बैठक नहीं बुलाई गई है और न ही बीजेपी के संसदीय दल ने नरेन्द्र मोदी को आज तक अपना नेता चुना है। भारत के भीतर जिस पार्टी को “सिध्दांतवादी पार्टी” कहा जाता था वह भारतीय जनता पार्टी 2014 के बाद से न तो “पार्टी विथ डिफरेंट” रही न ही अब उसके पास ऐसे प्रभावशाली प्रवक्ता हैं जिन्हें लोग सुनना पसंद करते थे क्योंकि वे तथ्यों के साथ अपनी बात रखते थे लेकिन आज के प्रवक्ता फूहड़बाजी के अलावा कुछ करते ही नहीं हैं इसे भाजपा का दुर्भाग्य ही कहा जा सकता है। जिसका अह्सास मोदी-शाह को बखूबी हो गया है और इसी की घबराहट को उजागर करती दिख रही है मोदी-शाह की बाॅडी लेंग्वेज !
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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