स्टाफ की कमी से पशुपालन चिकित्सा केंद्र बंद, ग्रामीणों की मुश्किलें बढ़ीं
रायपुररानी और खेड़ी के केंद्रों में दो दिन से सेवा बाधित, पशु रोगियों को इलाज में हो रही परेशानी
पशुपालन केंद्रों का दो दिन से बंद रहना परेशानियों की वजह
रायपुररानी। रायपुररानी और खेड़ी के पशुपालन चिकित्सा केंद्रों में पिछले दो दिनों से इलाज की सेवाएं पूरी तरह से ठप पड़ी हैं। स्टाफ की गंभीर कमी के कारण मवेशियों के इलाज में हो रही देरी ने ग्रामीणों को मानसिक और आर्थिक संकट में डाल दिया है। मवेशियों की बीमारी बढ़ती जा रही है और किसान अपनी मेहनत की कमाई बचाने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं।
कृषि और पशुपालन की रीढ़ हिला रही विभागीय लापरवाही
पशुपालन विभाग की लापरवाही ने ग्रामीणों की पूरी ज़िंदगी में खलल डाल दिया है। विभाग ने समय रहते पर्याप्त स्टाफ की तैनाती नहीं की, जिसकी वजह से केंद्र दो दिन से बंद पड़े हैं। इस कारण ग्रामीणों को प्राइवेट चिकित्सकों के पास जाकर इलाज करवाना पड़ रहा है, जो आर्थिक रूप से उन्हें भारी पड़ रहा है। जानकारी देते हुए बड़ौना खुर्द के किसान सौरव ने अपनी परेशानी बताते हुए कहा कि हमारे पशु को बुखार था, लेकिन अस्पताल बंद था। इलाज के लिए दूर जाना पड़ा और खर्चा भी ज़्यादा हुआ। क्या हम ऐसा हर बार करेंगे।
पशुपालन विभाग की सेमिनार संस्कृति: किसानों की समस्याओं का समाधान या और समस्या
रायपुररानी पशुपालन केंद्र की चिकित्सक प्रभारी डॉ. नीतू ने इस स्थिति की वजह स्टाफ की कमी बताई। उन्होंने खुलासा किया कि केंद्र में डॉक्टर और तकनीशियनों की कमी के कारण जब भी विभागीय सेमिनार या ट्रेनिंग होती है, अस्पताल को बंद करना पड़ता है। विभाग का कहना है कि स्टाफ बढ़ाने का वादा किया गया था, लेकिन वह वादा आज भी अधूरा है। क्या विभाग को अपनी प्राथमिकताओं पर ध्यान देना चाहिए या ये सेमिनार और ट्रेनिंग ही ग्रामीणों के लिए सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण हैं।
ग्रामीणों का गुस्सा और प्रशासन से ठोस समाधान की मांग
ग्रामीणों का कहना है कि जब से अस्पताल बंद हुए हैं, तब से उनकी परेशानियां और बढ़ गई हैं। पशुपालक अब मजबूरन निजी डॉक्टरों के पास जाते हैं, जो उन्हें अधिक शुल्क लेते हैं, जिससे उनका आर्थिक बोझ बढ़ रहा है। ग्रामीणों का आरोप है कि विभाग ने कभी भी उनकी समस्याओं को गंभीरता से नहीं लिया, और अब भी कोई हल निकलने की बजाय उनकी परेशानियों में इजाफा हो रहा है। फिलहाल, ग्रामीणों ने प्रशासन से तुरंत कार्रवाई की मांग की है। उनका कहना है कि अगर विभाग के कर्मचारियों की कमी के कारण केंद्रों को बंद रखना पड़ा, तो क्या यह सही है कि किसानों और मवेशियों को उनके इलाज के लिए एक और सप्ताह इंतजार करना पड़े? प्रशासन से निवेदन किया गया है कि वे तत्काल प्रभाव से पर्याप्त स्टाफ की तैनाती करें और सुनिश्चित करें कि अस्पताल बंद न हों। साथ ही, यदि विभागीय प्रशिक्षण या सेमिनार की आवश्यकता हो, तो उनके लिए वैकल्पिक व्यवस्था की जाए ताकि अस्पताल की सेवाएं प्रभावित न हों।
विभागीय लापरवाही के चलते किसान-मवेशियों की मेहनत पर पानी
पशुपालन से जुड़े अधिकांश किसान मवेशियों को अपनी आजीविका का मुख्य स्रोत मानते हैं, लेकिन विभागीय लापरवाही के चलते उनकी मेहनत पर पानी फिर रहा है। मवेशियों का इलाज न हो पाने के कारण गंभीर बीमारियों का खतरा और अधिक बढ़ गया है, जिससे किसान मानसिक तनाव का शिकार हो रहे हैं। क्या प्रशासन इस समस्या का हल ढूंढेगा। जबकि प्रशासन को अब इस मुद्दे पर त्वरित कार्रवाई करनी होगी। यदि विभाग और प्रशासन ने इस स्थिति को गंभीरता से नहीं लिया तो यह केवल किसानों के लिए नहीं, बल्कि पूरे क्षेत्र के पशुपालन पर भारी पड़ सकता है। वहीं, प्रशासन को यह सुनिश्चित करना होगा कि इस प्रकार की स्थिति भविष्य में न हो और पशुपालन सेवाएं बिना किसी व्यवधान के ग्रामीणों को मिलती रहें।
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