संपूर्ण उत्तर भारत बाढ़ के कहर में , पर : आपदा के साये में राजनीति और दिखावे की दौड़ ज्यादा !
आपदा पीड़ित से ज्यादा मदद मांगने वाले लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय
700 से ज्यादा सांसद और 2500 से ज्यादा विधायक ज्यादातर ने नहीं खोली अपनी तिजोरी
किसानों के मसीहा कहे जाने वाले किसान नेता गायब
करोड़ों रुपए का चंदा लेने वाले राजनीतिक दल कब खोलेंगे अपनी तिजोरी
बॉलीवुड और पॉलीवुड एक्टर की निगाहें पंजाब की ओर बाकी राज्यों पर चुप्पी
आपदा में भी अवसर तलाश रही भारतीय जनता पार्टी
रीतेश माहेश्वरी
पंजाब, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू-कश्मीर और दिल्ली इस बार भीषण आपदा की चपेट में हैं। यह कहना कठिन है कि किस राज्य को अधिक नुकसान हुआ है और किसे कम, लेकिन इतना साफ है कि पंजाब की स्थिति सबसे ज्यादा चिंताजनक है। क्योंकि खुद केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान बृहस्पतिवार को पंजाब में थे । केंद्रीय कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान के मुताबिक, पंजाब की मौजूदा फसल पूरी तरह बर्बाद हो चुकी है और अगली फसल की संभावना भी धुंधली है। देश के अन्न भंडार का बड़ा हिस्सा पंजाब से ही आता है, ऐसे में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा पर भी असर पड़ना तय है। राज्य सरकार ने पंजाब को बाढ़ग्रस्त घोषित कर दिया है, लेकिन केंद्र से बाढ़ग्रस्त घोषित होने की आधिकारिक अधिसूचना अब तक ( खबर लिखे जाने के समय तक , हो सकता है जवाब यह खबर पढ़ रहा हूं तब तक जारी हो जाए ) जारी नहीं हुई है। और दूसरी तरफ बाढ़ पीड़ितों के लिए मदद मांगने वाले लोग सोशल मीडिया पर सक्रिय हो कर आपदा में अवसर तलाश रहे हैं । वही अपने आप को किसानों का मसीहा बताने वाले नेता आपदा में कहीं नजर नहीं आ रहे । तो केंद्र में सत्ताधारी दल भारतीय जनता पार्टी भी आपदा में अवसर तलाश में कोई कोर कसर नहीं छोड़ रही ।
सोशल मीडिया पर ‘मदद मांगने वालों’ की बाढ़
आपदा प्रभावित राज्यों की वास्तविक पीड़ितों से अधिक, सोशल मीडिया पर मदद मांगने वालों की भीड़ नज़र आ रही है। हर कोई आटा, कपड़ा, जूते या तंबू की मांग कर रहा है, लेकिन यह जानकारी साझा करने से खुद बच रहा है कि उसने खुद कितनी सहायता दी है। यह स्थिति यह सोचने पर मजबूर करती है कि कहीं मदद मांगने वाले ज्यादा और पीड़ित कम तो नहीं! या कहीं आपदा के बहाने अवसर तो नहीं तलाशा जा रहा ।
दानदाताओं से भी खबरी प्रशाद अखबार की सलाह दान देने के पहले दान लेने वाले का चाल चरित्र और चेहरा जरूर देखें । आपदा में दान अपनी क्षमता अनुसार जरूर करें क्योंकि आपदाग्रस्त राज्यों में रह रहे लोग भी भारतीय ही है ।
सांसद-विधायकों की चुप्पी
देश की संसद में 788 सदस्य (लोकसभा और राज्यसभा मिलाकर) और राज्यों की विधानसभाओं में 2500 से अधिक विधायक हैं। इनमें से कई करोड़पति और अरबपति हैं। यदि ये सभी अपने निजी खातों ( सरकारी नहीं ) से एक-एक करोड़ भी दान कर दें, तो अरबों रुपये का कोष बन सकता है। लेकिन अधिकतर नेता केवल अपील करने तक सीमित हैं, नेताओं के दान देने की खबरें बहुत कम सामने आई हैं । हो सकता है खबर छपने के बाद किसी नेता का जमीर जाग जाए और व्यक्तिगत तौर पर मदद करने के लिए वह उतर जाए ।
चुनावी चंदा लेने वाले दल अब आपदा के नाम पर मांग रहे
करोड़ों रुपये चुनावी चंदे के रूप में लेने वाली राजनीतिक पार्टियां अब जनता से ही आपदा राहत के लिए चंदा मांग रही हैं। सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर वे लोगों से सहयोग की अपील तो कर रही हैं, लेकिन खुद कितना योगदान दिया है, इस पर कोई पारदर्शिता नहीं है। यह रवैया जनता के बीच सवाल खड़े कर रहा है। पार्टियां तो पार्टियां , उनके कार्यकर्ता भी सोशल मीडिया पर एक्टिव है और लोगों से ज्यादा से ज्यादा मदद की अपील कर रहे हैं पर खुद कितना किया इसकी किसी को जानकारी नहीं ।
बॉलीवुड-पॉलिवुड का झुकाव सिर्फ पंजाब की ओर
बॉलीवुड और पॉलिवुड के कई कलाकार पंजाब की मदद के लिए तो आगे आए हैं। हालांकि, बाकी प्रभावित राज्यों—हिमाचल, उत्तराखंड या जम्मू-कश्मीर—के लिए किसी ने अब तक कोई घोषणा नहीं की है। यह चयनात्मक मदद उन दर्शकों के लिए निराशाजनक है, जो इन्हीं राज्यों में रहते हैं और कलाकारों को स्टार बनाते हैं।
किसान आंदोलन के नेता कहां गुम?
किसान आंदोलन के दौरान किसानों के साथ ‘जीने-मरने’ की कसमें खाने वाले कई नेता आज आपदा की घड़ी में नदारद हैं। किसान आंदोलन के समय जब ट्रैक्टर मार्च की आवाज़ उठती थी, वही नेता किसानों को दिल्ली तक लाने में सक्रिय थे। लेकिन आज न तो कोई बयान आया है, न ही कोई ठोस कदम उठाया गया है।
भाजपा की ‘आपदा में अवसर’ नीति
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोविड काल में कहा था कि “आपदा में अवसर तलाशना चाहिए”। यही नीति अब पंजाब की बाढ़ पर भी दिख रही है। सूत्रों के अनुसार, हरियाणा सरकार द्वारा सभी जिले के उच्च अधिकारियों को मौखिक निर्देश दिए गए हैं कि ज्यादा से ज्यादा राशन किट तैयार कर पंजाब भेजी जाएं। अब उच्चायुक्तों को सरकारी फरमान का पालन तो करना ही है । उन्होंने भी अपने जिले के सामाजिक संस्थाओं को आर्डर जारी कर दिए । कई सामाजिक संस्थाओं के सामने अब यह संकट है कि वे अपनी मदद सीधे पीड़ितों तक पहुंचाएं या प्रशासन को सौंपें। यदि प्रशासन को देंगे तो उसका श्रेय सरकार को मिलेगा, जबकि संस्थाओं का नाम पीछे छूट जाएगा।



यह कड़वा सच है कि कुछ लोग मदद के नाम पर अपना घर भर सकते हैं क्योंकि वह हमेशा आपदा में अवसर तलाशते हैं , जबकि कुछ महज सोशल मीडिया पर फोटो डालने के लिए राहत सामग्री बांट रहे हैं। राजनीतिक दल अपनी रोटियां सेकने में लगे हैं और केंद्र की सत्ता पर बैठी पार्टी इस आपदा को अवसर में बदलने की रणनीति बना रही है। पीड़ितों की पीड़ा और नेताओं की राजनीति के बीच असली राहत कार्य कहीं खोता नज़र आ रहा है। पर इतना सब कुछ होने के बावजूद भी कुछ ऐसे समाजसेवी भी हैं जिनका ना तो फोटो की चिंता है ना ही अखबार में छापने की वह आपदा ग्रस्त लोगों तक हर जरूरी सामान पहुंचाने में व्यस्त है । यही है सच्ची सेवा ।
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