जब हार (तय) सामने दिखाई दे रही हो तो साजो-सामान समेट कर लौट जाना ही समझदारी है (बड़े बुजुर्गों की सीख)
खरी-अखरी
बिहार में चुनाव आयोग द्वारा अपनाई जा रही है प्रक्रिया को लेकर जिन सवालों पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई चल रही है और सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट के भीतर से जिस तरह की टिप्पणियां निकल कर देश के सामने आ रही हैं वे साफ – साफ संकेत दे रही है कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले का ऊंट किस करवट बैठने जा रहा है। यह अलग बात है कि बीच-बीच में सुप्रीम कोर्ट इस तरह की टिप्पणियां भी करता रहता है कि आम लोगों को लगे कि सुप्रीम कोर्ट निष्पक्षता के तराजू में तौल कर फैसले देगा मगर अधिकांशत: जब भी अंतिम फैसला आया तो वह सत्तानुकूल ही आया। कुछ फैसले तो ऐसे आये जो न इधर के रहे न उधर के यानी न तुम जीते न हम हारे फिर भी पलडा सत्ता की तरफ ही झुका दिखाई दिया। बिहार में चल रही एसआईआर के मामले पर प्रारंभिक सुनवाई के समय सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि अगर तथ्यों के साथ गडबडियां सामने आई तो पूरी प्रक्रिया पर रोक लगाई जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट ने ही आधार कार्ड, वोटर कार्ड और राशन कार्ड पर भी विचार करने को कहा था लेकिन चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट के सुझाव को हवा हवाई बना दिया। मगर अब जब सुनवाई आगे बढ़कर फैसले के करीब आती जा रही है तो न्यायमूर्तियों की टिप्पणियां एक – एक करके चुनाव आयोग की प्रक्रिया को हरी झंडी देती हुई दिखाई दे रही है। तो क्या ये मान लिया जाय कि अब जो भी हो रहा है और आगे होने वाला है वह केवल औपचारिक ही होगा और फैसला भी वही आयेगा जिसके संकेत न्यायमूर्तियों की टिप्पणियां दे रही हैं। चुनाव आयोग ने जिस तरह का हलफनामा सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया है उसने खुद की साख के साथ ही सुप्रीम कोर्ट की साख को भी दांव पर लगा दिया है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने भूसे में से एक सुई ढूंढने की तर्ज पर जिस तरीके से 2024 के लोकसभा चुनाव को प्रभावित किये जाने का खुलासा किया है और वह भी चुनाव आयोग के द्वारा ही दिए गए दस्तावेजों के जरिए। तो उसने तीसरी बार प्रधानमंत्री बने नरेन्द्र मोदी की साख को भी कटघरे में खड़ा कर दिया है। अब गेंद सुप्रीम कोर्ट के पाले में है देखना है कि वह अपने फैसले से किस तरह लोकतंत्र को जिंदा रहने का रास्ता प्रशस्त करता है, लोगों के मन में संविधान पर आस्था कायम रहेगी, देश की आवाम चुनाव आयोग और चुनाव पर विश्वास कर पायेगी, या फिर सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले से सब कुछ धराशायी हो जायेगा। क्योंकि सवाल तो दो ही हैं क्या नरेन्द्र मोदी फर्जी वोटों के आसरे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने हैं ? चुनाव आयोग की सारी मशक्कत के बाद भी बिहार के अंदर अगर बीजेपी चुनाव हार गई तो उसका पूरा परसेप्शन जो उसने तथाकथित राष्ट्रवाद के जरिए बनाया है एक झटके में बिखर जायेगा ? मतलब एक तरफ 2024 के लोकसभा का चुनाव परिणाम है तो दूसरी तरफ बिहार में नम्बर के महीने में होने वाला विधानसभा चुनाव है। सुप्रीम कोर्ट का फैसला कुछ भी आये मगर इतना तो तय है कि जिस तरह से सुप्रीम कोर्ट के संभावित फैसले को लेकर चर्चाओं का बाजार गर्म है उसके अनुसार वह दोनों परिस्थितियों में भारत की राजनीति की जडों से हिलाकर रख देगा। राजनीतिक विश्लेषकों के भीतर जो विचार मंथन चल रहा है उसके अनुसार सुप्रीम कोर्ट के भीतर जिन याचिकाओं पर सुनवाई चल रही है उन समस्त याचिकाकर्ताओं को बिना शर्त अपनी याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट से वापस ले लेना चाहिए। क्योंकि यही एक रास्ता है जो सुप्रीम कोर्ट, चुनाव आयोग और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की साख के साथ ही उनकी खुद की (याचिकाकर्ताओं की) साख को बचा सकता है।
अश्वनी बडगैया अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
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