स्वतंत्र भारत में स्वच्छंदता नहीं स्वाधीनता की आवश्यकता
“हम भारतीय लोगों की स्वतंत्रता स्वच्छंदता में नहीं बदले,बल्कि स्वाधीनता में रुपांतरित हो।” यह वाक्य भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के मूल सिद्धांतों को प्रतिबिंबित करता है। यह महात्मा गांधी के विचारों से प्रेरित है, जहां उन्होंने स्वतंत्रता को मात्र राजनीतिक आजादी तक सीमित नहीं रखा, बल्कि इसे आत्म-नियंत्रण, आत्म-निर्भरता और नैतिक जिम्मेदारी से जोड़ा। स्वतंत्रता का अर्थ है गुलामी से मुक्ति, लेकिन यदि यह स्वच्छंदता में बदल जाए, तो यह समाज के लिए विनाशकारी सिद्ध हो सकती है। इसके विपरीत, स्वाधीनता का अर्थ है ऐसी आजादी जो व्यक्ति और राष्ट्र को सशक्त बनाए, जहां स्वतंत्रता का उपयोग सामूहिक कल्याण के लिए हो। यह उद्धरण आज के भारत के लिए अत्यंत प्रासंगिक है, जहां हम 78 वर्षों से स्वतंत्र हैं, लेकिन क्या हमारी स्वतंत्रता स्वाधीनता में रूपांतरित हो पाई है?भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जड़ें गहरी हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 की आजादी तक, लाखों भारतीयों ने बलिदान दिए। लेकिन महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता को मात्र ब्रिटिश शासन से मुक्ति नहीं माना “हिंद स्वराज” में उन्होंने स्पष्ट किया कि सच्ची स्वतंत्रता आत्म-शासन है, जहां व्यक्ति अपने मन, शरीर और आत्मा पर नियंत्रण रखे। गांधीजी ने कहा था कि “स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि हम जो चाहें करें, बल्कि यह कि हम सही कार्य करें।” इसी क्रम में, स्वच्छंदता का खतरा उन्होंने चेतावनी के रूप में उठाया। स्वच्छंदता वह स्थिति है जहां व्यक्ति बिना किसी नैतिक बंधन के कार्य करता है, जो अराजकता को जन्म देती है।
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की जड़ें गहरी हैं। 1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 की आजादी तक, लाखों भारतीयों ने बलिदान दिए। लेकिन महात्मा गांधी ने स्वतंत्रता को मात्र ब्रिटिश शासन से मुक्ति नहीं माना “हिंद स्वराज” में उन्होंने स्पष्ट किया कि सच्ची स्वतंत्रता आत्म-शासन है, जहां व्यक्ति अपने मन, शरीर और आत्मा पर नियंत्रण रखे। गांधीजी ने कहा था कि “स्वतंत्रता का अर्थ यह नहीं कि हम जो चाहें करें, बल्कि यह कि हम सही कार्य करें।” इसी क्रम में, स्वच्छंदता का खतरा उन्होंने चेतावनी के रूप में उठाया। स्वच्छंदता वह स्थिति है जहां व्यक्ति बिना किसी नैतिक बंधन के कार्य करता है, जो अराजकता को जन्म देती है।1942 के क्विट इंडिया आंदोलन में गांधीजी ने कहा, “हम भारत को आजाद करेंगे या प्रयास में मर जाएंगे।” लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि आजादी के बाद भारतीयों को स्वच्छंद नहीं होना चाहिए। उदाहरणस्वरूप, गांधीजी ने ग्राम स्वराज की अवधारणा दी, जहां गांव आत्म-निर्भर हों। यह स्वाधीनता का प्रतीक है, जहां स्वतंत्रता आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आत्म-निर्भरता में बदल जाए। नेहरू, पटेल और अन्य नेताओं ने भी इस विचार को अपनाया। नेहरू की “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” में स्वतंत्रता को रचनात्मक ऊर्जा के रूप में देखा गया, न कि विनाशकारी स्वच्छंदता के रूप में।
1942 के क्विट इंडिया आंदोलन में गांधीजी ने कहा, “हम भारत को आजाद करेंगे या प्रयास में मर जाएंगे।” लेकिन उन्होंने यह भी जोड़ा कि आजादी के बाद भारतीयों को स्वच्छंद नहीं होना चाहिए। उदाहरणस्वरूप, गांधीजी ने ग्राम स्वराज की अवधारणा दी, जहां गांव आत्म-निर्भर हों। यह स्वाधीनता का प्रतीक है, जहां स्वतंत्रता आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आत्म-निर्भरता में बदल जाए। नेहरू, पटेल और अन्य नेताओं ने भी इस विचार को अपनाया। नेहरू की “डिस्कवरी ऑफ इंडिया” में स्वतंत्रता को रचनात्मक ऊर्जा के रूप में देखा गया, न कि विनाशकारी स्वच्छंदता के रूप में।
ऐतिहासिक रूप से, कई राष्ट्रों में स्वतंत्रता स्वच्छंदता में बदल गई। फ्रांसीसी क्रांति (1789) ने स्वतंत्रता दी, लेकिन स्वच्छंदता के कारण रक्तपात हुआ। रूसी क्रांति (1917) में भी यही हुआ। भारत ने इससे सीख ली। संविधान सभा में डॉ. आंबेडकर ने कहा कि “स्वतंत्रता का दुरुपयोग लोकतंत्र को नष्ट कर सकता है।” इसलिए, भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के साथ कर्तव्य भी जोड़े गए, ताकि स्वतंत्रता स्वच्छंदता न बने।
स्वतंत्रता का अर्थ है बाहरी बंधनों से मुक्ति। भारत में यह ब्रिटिश उपनिवेशवाद से आजादी थी। लेकिन यदि यह स्वच्छंदता में बदल जाए, तो व्यक्ति समाज के नियमों को ताक पर रख देता है। स्वच्छंदता वह है जहां “मैं जो चाहूं, करूं” का सिद्धांत हावी हो। इसके विपरीत, स्वाधीनता आत्म-निर्भरता है। यह “आत्मनिर्भर भारत” अभियान की तरह है, जहां स्वतंत्रता उत्पादकता में बदलती है। स्वाधीनता में व्यक्ति अपनी जिम्मेदारियों को समझता है। प्लेटो की “रिपब्लिक” में स्वतंत्रता को न्याय से जोड़ा गया, जहां बिना नियंत्रण की आजादी अराजकता है।
भारतीय दर्शन में, गीता कहती है: “योग: कर्मसु कौशलम्” -कार्य में कुशलता, जो स्वाधीनता का आधार है।
आज का भारत विश्व की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है, लेकिन क्या हमारी स्वतंत्रता स्वाधीनता में रूपांतरित हो रही है? एक ओर, डिजिटल इंडिया, मेक इन इंडिया जैसे अभियान स्वाधीनता की दिशा दिखाते हैं। स्टार्टअप संस्कृति ने युवाओं को स्वतंत्र बनाया, लेकिन आत्म-निर्भर भी। पेटीएम और ओला जैसी कंपनियां, जो विदेशी निर्भरता से मुक्ति देती हैं।
लेकिन स्वच्छंदता के खतरे भी हैं। सोशल मीडिया पर फेक न्यूज का प्रसार स्वतंत्रता का दुरुपयोग है। 2020 के दिल्ली दंगों में सोशल मीडिया ने स्वच्छंदता दिखाई, जहां अभिव्यक्ति की आजादी हिंसा में बदली। पर्यावरण के क्षेत्र में, प्लास्टिक का अंधाधुंध उपयोग स्वच्छंदता है, जबकि स्वच्छ भारत अभियान स्वाधीनता की ओर कदम है। गांधीजी ने स्वच्छता को स्वतंत्रता से ऊपर माना, जैसा की एक उद्धरण में कहा गया: “स्वच्छता राजनीतिक स्वतंत्रता से अधिक महत्वपूर्ण है।”
शिक्षा में, स्वतंत्रता छात्रों को विचार करने की आजादी देती है, लेकिन स्वच्छंदता कॉपिंग और अनुशासनहीनता में बदलती है। नई शिक्षा नीति स्वाधीनता की दिशा है, जहां कौशल-आधारित शिक्षा आत्म-निर्भरता सिखाती है। राजनीतिक रूप से, चुनावी स्वतंत्रता लोकतंत्र की ताकत है, लेकिन वोट बैंक पॉलिटिक्स स्वच्छंदता है।
स्वतंत्रता एक यात्रा है, जो स्वाधीनता पर समाप्त होनी चाहिए। भारत ने 1947 में स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन स्वाधीनता अभी अधर में है। हमें गांधीजी, नेहरू और आंबेडकर के विचारों से प्रेरणा लेनी चाहिए। यदि हम स्वच्छंदता से बचें और आत्म-निर्भरता अपनाएं, तो भारत विश्व गुरु बन सकता है। यह रूपांतरण व्यक्तिगत स्तर से शुरू होता है, प्रत्येक भारतीय अपनी स्वतंत्रता को जिम्मेदारी से जोड़े। तभी हम सच्चे अर्थ में स्वाधीन होंगे।
संदीप सृजन विभूति फीचर्स
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