बिजनेस डील: अगर ट्रंप के लिए अमरीका फर्स्ट , तो मोदी के लिए इंडिया फर्स्ट होना ही चाहिए !
भारत-अमेरिका व्यापार समझौते पर ट्रंप का ‘इंडोनेशिया मॉडल’: भारत को सोच-समझकर रखना होगा कदम
भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार वार्ता एक निर्णायक मोड़ पर पहुंच गई है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने हाल ही में इस संकेत के साथ हलचल मचा दी कि भारत के साथ होने वाला समझौता इंडोनेशिया मॉडल पर आधारित होगा—एक ऐसा मॉडल जिसमें अमेरिकी वस्तुओं को स्थानीय बाजार में खुली छूट मिली और बदले में स्थानीय उद्योगों को भारी दबाव का सामना करना पड़ा।
नई दिल्ली गौरव कोठारी
क्या है ‘इंडोनेशिया मॉडल’?
ट्रंप के अनुसार, इंडोनेशिया ने अमेरिकी ऊर्जा, कृषि उत्पाद और बोइंग विमानों की बड़ी मात्रा में खरीद के साथ-साथ अपने बाजारों को अमेरिकी उत्पादों के लिए खोल दिया। बदले में अमेरिका ने इंडोनेशियाई सामान पर भारी टैक्स लगा दिया। अब ट्रंप चाहते हैं कि भारत भी इसी तरह का मॉडल अपनाए, जहां अमेरिकी उत्पाद बिना रुकावट भारतीय बाजार में पहुंच सकें।
उन्होंने स्पष्ट कहा, “भारत के बाजार अब हमारे लिए खुल रहे हैं। पहले हमारे लोग वहां व्यापार नहीं कर पाते थे, अब टैरिफ के जरिए हम ये रास्ता बना रहे हैं।”
भारतीय उद्योगों पर संभावित असर
अगर भारत ने इस मॉडल पर सहमति जताई तो सबसे बड़ा खतरा देश के कृषि और डेयरी क्षेत्रों को होगा। भारत के इन सेक्टरों में छोटे किसान और ग्रामीण अर्थव्यवस्था की बड़ी भागीदारी है। थिंक टैंक ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (GTRI) का कहना है कि अमेरिका के सस्ते और सब्सिडी वाले उत्पाद भारतीय बाजार में आएंगे, तो घरेलू कंपनियों को मुकाबले में टिकना मुश्किल होगा। इससे भारतीय उत्पादों की मांग और कीमत दोनों प्रभावित हो सकते हैं।
GTRI के प्रमुख अजय श्रीवास्तव ने चेताया, “यदि भारत बिना संतुलन के यह समझौता करता है, तो देशी उद्योगों को दीर्घकालिक नुकसान उठाना पड़ सकता है। समझौते में पारदर्शिता और संतुलन बेहद जरूरी है।”
वाशिंगटन में चल रही वार्ता
भारत का एक व्यापारिक प्रतिनिधिमंडल इस समय वाशिंगटन में है, जो पांचवीं बार वार्ता में हिस्सा ले रहा है। चर्चा का केंद्र बिंदु कृषि, ऑटोमोबाइल और औद्योगिक शुल्क जैसे क्षेत्र हैं। अमेरिका ने फिलहाल भारत पर लगाए गए कुछ अतिरिक्त शुल्कों को 1 अगस्त तक टाल दिया है, जिससे वार्ता की गंभीरता और बढ़ गई है।
अटके हुए मुद्दे और भारत की शर्तें
भारत अब तक डेयरी और कृषि उत्पादों पर अमेरिकी दबाव के आगे नहीं झुका है। इसके अलावा, भारत ने अमेरिका से स्टील और एल्युमिनियम पर 50% शुल्क, और वाहनों पर 26% टैक्स हटाने की मांग की है। भारत यह भी साफ कर चुका है कि अगर कोई पक्षपातपूर्ण समझौता थोपने की कोशिश की गई, तो वह विश्व व्यापार संगठन (WTO) के दायरे में जवाबी कार्रवाई करने को तैयार है।
क्या है आगे का रास्ता?
भारत के लिए यह एक निर्णायक क्षण है। यदि वह घरेलू हितों को नजरअंदाज कर जल्दबाजी में समझौता करता है, तो उसका असर सिर्फ बाजार पर नहीं, बल्कि लाखों छोटे उद्यमियों, किसानों और उपभोक्ताओं पर भी पड़ेगा। ट्रंप का व्यापारिक दृष्टिकोण ‘अमेरिका फर्स्ट’ रहा है, ऐसे में भारत को ‘इंडिया फर्स्ट’ नीति पर टिके रहकर समझदारी से कदम उठाने होंगे।
भारत-अमेरिका व्यापार समझौता यदि एकतरफा हुआ तो उसके परिणाम दूरगामी और गहरे हो सकते हैं। भारत को न केवल अपने आर्थिक हितों की रक्षा करनी है, बल्कि घरेलू बाजार की संवेदनशीलता और आत्मनिर्भरता को प्राथमिकता भी देनी है। अब यह देखना अहम होगा कि भारत इस कूटनीतिक चुनौती को कैसे संतुलित करता है।
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