शुद्ध के लिए युद्ध में फंस गए समोसा और जलेबी !
समौसा और जलेबी भारत के सबसे प्रसिद्ध व्यंजनों में से एक है, जो अधिकतर लोगों द्वारा सेवन किए जाते हैं। पाठकों को बताता चलूं कि इन दिनों समौसा और जलेबी को लेकर चर्चाएं गर्म हैं, क्यों कि ये दोनों ही व्यंजन ऐसे हैं, जिन्हें शायद देश में सबसे ज्यादा सेवन किया जाता है। हर गली-मोहल्ले, दुकान, नुक्कड़, फुटपाथ, बाजार में मिलने वाले इन व्यंजनों के अलावा अन्य फ्राइड या तले हुए व्यंजनों को लेकर किया जा रहा प्रयास काफी सराहनीय इसलिए है, क्यों कि इनमें काफी मात्रा में नमक,तेल, शक्कर की मात्रा देखने को मिलती है।
तैलीय और मीठे खाद्य पदार्थों को लेकर हमारे देश में कोई विशेष गाइडलाइंस नहीं हैं, लेकिन अब इस पर यदि प्रयास किया जा रहा है तो इससे अच्छी बात भला और क्या हो सकती है ? पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही में स्वास्थ्य मंत्रालय ने 21 जून 2025 को ही लोगों में स्वास्थ्यकारी खानपान की आदत को बढ़ावा देने के लिए सरकारी संस्थानों में खाने से जुड़ी चीजों में शक्कर और तेल से जुड़ी जानकारी वाले बोर्ड लगाने के सुझाव संबंधी एक एडवाइजरी जारी की थी और इस एडवाइजरी(जो कि सुझाव था) के जरिए आम लोगों को रोजाना के खाद्य पदार्थों में छिपी वसा(फैट) और शक्कर(शुगर) से जुड़ी अहम जानकारी देने का लक्ष्य रखा गया था। एडवाइजरी में खाद्य पदार्थों से जुड़ी इन जानकारियों को कैफेटेरिया, मीटिंग रूम्स और अन्य सार्वजनिक जगहों पर लगाने की बात कही गई, ताकि इनके जोखिमों को लेकर जागरूकता बढ़ाई जा सके।
सरकार ने इसके जरिए लोगों में स्वस्थ खानपान की आदत और ज्यादा शारीरिक गतिविधियों को बढ़ावा देने की भी बात कही थी, ताकि वे ज्यादा फल, सब्जी और कम वसा वाला खाना खाएं और शक्कर वाले पेय पदार्थ या उच्च-वसा वाले स्नैक्स को भी कम करें, क्यों कि आज की भागम-भाग जिंदगी में हम अपने खान-पान पर अधिक ध्यान नहीं देते हैं और जिसके कारण स्वास्थ्य संबंधी अनेक समस्याएं हमारे देश में लगातार पैदा हो रहीं हैं। मसलन मोटापा, शुगर (डायबीटिज), हाई बीपी, हाई कालेस्ट्राल, हृदय संबंधी बीमारियां लगातार अपने पैर फैला रहीं हैं। कहना ग़लत नहीं होगा कि मधुमेह, मोटापा और उच्च रक्तचाप जैसी जीवनशैली संबंधी बीमारियों को रोकने के लिए चीनी, नमक और तेल का सेवन सीमित करना आज के समय में बहुत ही आवश्यक व जरूरी हो गया है।
वास्तव में होना तो यह चाहिए कि तैलीय और मीठे खाद्य पदार्थों के बारे में चेतावनी जारी हो, ताकि हम अपने स्वास्थ्य के प्रति सजग व जागरूक रह सकें। हालांकि, इसी बीच सोशल मीडिया पर समोसा जलेबी को लेकर एक पोस्ट भी शेयर की जा रही है कि समोसा- जलेबी सेहत के लिए हानिकारक है और इसके साथ ही दावा किया जा रहा है कि समोसा और जलेबी के पैकट में चीनी और तेल की मात्रा के लिए स्वास्थ मंत्रालय जल्द ही इस पर लेबल लगाने वाली है, जो कि भ्रामक है।

पाठकों को बताता चलूं कि सरकार की ओर से लेबल पर कितनी चीनी और तेल की मात्रा है, इससे संबंधी कोई सूचना नहीं दी गई है। दरअसल, जैसा कि ऊपर भी जानकारी दे चुका हूं कि आम लोगों में स्वास्थ्यकारी खानपान की आदत को बढ़ावा देने के लिए सरकारी संस्थानों में खाने से जुड़ी चीजों में शक्कर और तेल से जुड़ी जानकारी वाले बोर्ड लगाने का प्रस्ताव दिया गया था। बहरहाल, यह प्रस्ताव अच्छा है, क्यों कि हमारे देश में, अनुमानतः 10 करोड़ से अधिक लोग मधुमेह (डायबिटीज) से पीड़ित हैं और बड़ी बात यह है कि यह संख्या बहुत ही तेजी से बढ़ रही है, और कुछ अनुमानों के अनुसार, 2050 तक यह आंकड़ा 13.5 करोड़ को भी पार कर सकता है। इतना ही नहीं,लगभग 13.6 करोड़ लोग प्री-डायबिटिक स्थिति में हैं, जिसका मतलब है कि उन्हें कभी भी मधुमेह हो सकता है।
कुछ अध्ययनों में यह भी अनुमान लगाया गया है कि 2050 तक दुनिया में मधुमेह से पीड़ित लोगों की संख्या दोगुनी हो जाएगी, जिसमें भारत में भी मामलों की संख्या में भारी वृद्धि होगी।एक उपलब्ध जानकारी के अनुसार हमारे देश को ‘दुनिया की मधुमेह राजधानी’ के रूप में भी जाना जाता है। मधुमेह ही नहीं भारत में मोटापे से पीड़ित लोगों की संख्या भी बहुत अधिक है। आंकड़े बताते हैं कि भारत में 100 मिलियन (10 करोड़) से ज्यादा लोग मोटापे की समस्या से जूझ रहे हैं।एक अन्य आंकड़े की बात करें तो हमारे देश में, लगभग 135 मिलियन लोग मोटापे से पीड़ित हैं, और यह संख्या दक्षिण एशियाई क्षेत्र में सबसे तेजी से बढ़ती हुई मोटापे की दर का हिस्सा है। इतना ही नहीं, साल 2050 तक, भारत की लगभग एक तिहाई आबादी मोटापे से पीड़ित हो सकती है, जो एक महामारी का रूप ले सकती है।बहरहाल, यहां यह कहना ग़लत नहीं होगा कि मोटापे के कारण गंभीर और क्रोनिक बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। अनेक अध्ययनों से यह पता चलता है कि अधिक वजन के शिकार लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता भी कमजोर हो जाती है, जिसके कारण उनमें संक्रामक बीमारियों का जोखिम काफी बढ़ जाता है। हालांकि, यहां यह एक अलग बात है कि हमारे देश में मोटापा बढ़ रहा है और इसके खिलाफ जागरूकता भी लगातार बढ़ रही है।
इस क्रम में स्वयं हमारे देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ‘फिट इंडिया अभियान’ के तहत देश की आम जनता से तेल और चीनी का उपभोग कम करने का आह्वान किया था। उन्होंने यहां तक भी कहा था कि लोग अपने भोजन में तेल को कम करके विकसित भारत बनाने में योगदान दे सकते हैं। यहां पाठकों को बताता चलूं कि इस क्रम में अत्यधिक तेल और मिठास के खिलाफ आकाशवाणी पर भी निरंतर प्रचार पिछले कुछ समय से चल रहा है। वास्तव में जब आम लोगों को इन व्यंजनों (विशेषकर समौसा और जलेबी) में वसा और चीनी,नमक आदि की मात्रा के बारे में पता होगा तो इसका असर आम जनता पर निश्चित ही कहीं न कहीं पड़ेगा और वे अपने स्वास्थ्य के प्रति जागरूक हो सकेंगे। वास्तव में तमाम रेस्तरां और मिष्ठान भंडारों पर इस चेतावनी को लटकाना आवश्यक है, क्यों कि अक्सर व्यंजनों को तैयार करते समय वसा,तेल व नमक आदि की मात्रा की परवाह नहीं की जाती है। चेतावनी के कारणलोग तेल और चीनी के प्रयोग को कम करने के लिए प्रेरित होंगे। वास्तव में बचाव बहुत जरूरी है।
कहना ग़लत नहीं होगा कि जब समोसे, जलेबी जैसे खाद्य पदार्थों पर चेतावनी रहेगी, तो खानपान में सुधार की गति को और बल मिलेगा और हम फिट इंडिया की ओर अग्रसर हो पाएंगे। समौसा,जलेबी ही नहीं आज बाजार में बहुत से व्यंजन ऐसे उपलब्ध होते हैं जिनमें तेज मसाले, नमक, चीनी,वसा,मैदा, कृत्रिम रंग और विभिन्न रसायनों तक का खतरनाक उपयोग हो रहा है। समौसा और जलेबी बनाने में तो एक ही तेल का बार-बार उपयोग किया जाता है और यह बात किसी व्यक्ति विशेष से छिपी हुई नहीं है। खराब, गलत, अस्वास्थ्यकर सामग्रियों का इस्तेमाल तत्काल रुकना चाहिए।
हालांकि, यह भी एक कटु सत्य है कि मात्र चेतावनी से सुधार होने वाला नहीं है, क्यों कि चेतावनी तो तंबाकू उत्पादों पर भी लिखी/छपी होती है। खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता सुनिश्चित करने वाले महकमों, उसके अधिकारियों, स्वास्थ्य विभाग को भी इसके लिए युद्ध स्तर पर सक्रिय होना पड़ेगा, तभी हम वास्तव में अपने देश को स्वास्थ्य के क्षेत्र में अग्रणी बनाकर विकसित भारत का सपना साकार कर पायेंगे, अन्यथा यह सब बातें कागजों तक ही सीमित रह जाएंगी, धरातल पर नहीं उतरेंगी। वास्तव में ‘शुद्ध के लिए युद्ध’ होना चाहिए।
सुनील कुमार महला,
फ्रीलांस राइटर, कालमिस्ट व युवा साहित्यकार, उत्तराखंड।
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