नाली में तैरती पत्रकारिता : पेशेवर रिपोर्टिंग या टीआरपी की होड़ ?
पत्रकारिता सत्ता से सवाल और जनहित की बात करती है , न कि टीआरपी की दौड़ में नाली में उतरकर तमाशा !
नई दिल्ली रीतेश माहेश्वरी
10 जुलाई 2025 को एक प्रतिष्ठित डिजिटल टीवी चैनल और सोशल मीडिया पर एक रिपोर्टर का वीडियो वायरल हुआ जिसमें वह रिपोर्टर बाढ़ के पानी में एक किसी पुल के नीचे तैरते हुए रिपोर्टिंग कर रहा था । देखकर बड़ा आश्चर्य हुआ कि क्या पत्रकारिता का स्तर अब इस लेवल का हो गया है । कहां जाता था पत्रकारिता सत्ता से सवाल और जनहित के मुद्दे उठाने के लिए होती है पर अब ऐसा लगता है कि पत्रकारिता गटर के अंदर जाकर होने लगी है ।
सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हुए इस वीडियो पर अलग-अलग तरीके की प्रतिक्रियाएं भी सामने आई है । यह दृश्य न केवल चौंकाने वाला है, बल्कि इलेक्ट्रॉनिक मीडिया की गिरती मर्यादा पर भी सवाल भी खड़े करता है। रिपोर्टर ‘न्यूज नेशन’ चैनल से जुड़ा है और वीडियो में वह गंदे पानी में तैरते हुए अपनी रिपोर्ट पेश कर रहा है।
वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा ने इस पर तीखी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने कहा, “पहले तो मुझे लगा यह कोई बनावटी वीडियो है, लेकिन पुष्टि के बाद जब असली निकला तो मैंने खुद को पत्रकार कहलाने से ही अलग कर लिया।”
पत्रकार अनिल कुमार ने व्यंग्यात्मक लहजे में कहा, “यह पहला रिपोर्टर है जो बिना हाथ चलाए तैरते हुए रिपोर्टिंग कर रहा है। शायद अब चैनल यह भी पता लगवाएंगे कि गुड़गांव की नाली किस गटर से मिलती है।”
मीडिया के स्तर पर सवाल
वरिष्ठ पत्रकार उमाशंकर सिंह ने भी चिंता जताई और कहा, “इस रिपोर्टर ने शायद यह स्वेच्छा से किया हो, लेकिन डर है कि कहीं यह चलन न बन जाए और बाकी चैनलों में भी संपादक अपने रिपोर्टरों से यही उम्मीद करने लगें।”
यह घटनाक्रम एक बार फिर यह सोचने पर मजबूर करता है कि क्या खबर की असलियत अब ड्रामेबाजी में बदल गई है? क्या कैमरे के सामने की ‘नाटकीयता’ ही अब पत्रकारिता की सच्चाई बनती जा रही है?
पत्रकारिता का उद्देश्य सत्ता से सवाल करना और जनहित की बात करना है, न कि टीआरपी की दौड़ में नाली में उतरकर तमाशा करना। यह समय है जब मीडिया हाउसों को अपनी प्राथमिकताओं और मर्यादाओं की पुन: समीक्षा करनी चाहिए।
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