ऐसी थी पत्रकारिता : “पत्रकारिता में दोस्ती नहीं, सिर्फ सच्चाई का साथ”:
अमर उजाला के पत्रकार सुनील सरदाना की बेबाक रिपोर्टिंग की चर्चा हो रही सोशल मीडिया पर
कैथल। पत्रकारिता में निष्पक्षता और साहस की मिसाल बने अमर उजाला के तत्कालीन संवाददाता सुनील सरदाना ने करीब दो दशक पहले वह कर दिखाया, जो अक्सर मुश्किलों से भरा होता है। मामला एक पुलिसकर्मी द्वारा एक चाय विक्रेता को थप्पड़ मारने का था, जिससे पीड़ित की सुनने की क्षमता तक प्रभावित हो गई थी। चौंकाने वाली बात यह थी कि आरोपी पुलिसकर्मी सुनील सरदाना का करीबी मित्र था।
लेकिन पत्रकार सरदाना ने न दोस्ती देखी, न दबाव में आए—उन्होंने इस घटना की पूरी सच्चाई को खबर के रूप में फाइल कर दिया। खबर अमर उजाला में प्रकाशित होते ही जिलेभर में हलचल मच गई। पुलिस प्रशासन सकते में आ गया और पत्रकार के खिलाफ मौखिक प्रतिबंध तक लगा दिया गया—मिनी सचिवालय में प्रवेश और रूटीन प्रेस नोट देने पर रोक लगा दी गई।
इसके बावजूद सरदाना पीछे नहीं हटे। उन्होंने लगातार पीड़ितों की आवाज को प्राथमिकता दी और खबरें जारी रखीं। पुलिस की छवि को झटका लगा और कई मामलों में पीड़ितों के पक्ष से रिपोर्टिंग होने लगी। यह सिलसिला महीनों तक चला और पत्रकारिता में एक नई ऊर्जा भर दी।
इस घटना को याद करते हुए वरिष्ठ पत्रकार पूजन प्रियदर्शी ने भी सोशल मीडिया पर सरदाना की पत्रकारिता को सलाम किया और पुराने दिनों की यादें साझा कीं। उन्होंने बताया कि कैसे कैथल में अमर उजाला ने अपनी निर्भीक रिपोर्टिंग से अलग पहचान बनाई और ‘बस स्टैंड चौक’, ‘उपायुक्त कार्यालय’ और ‘ठरकी बाबा का पीसीओ’ जैसे यादगार ठिकानों से पत्रकारिता की मजबूत नींव रखी।
विशेष उल्लेख:
- सुनील सरदाना ने पूजन प्रियदर्शी से हिंदी टाइपिंग सीखी और अब उनकी स्पीड देखने लोग आते हैं।
- “चप्पल में दुल्हन”, “कंडेला कांड”, और बस दुर्घटनाओं जैसी स्टोरीज़ ने उस दौर की पत्रकारिता को नई ऊँचाई दी।
यह कहानी न सिर्फ एक पत्रकार के नैतिक बल की मिसाल है, बल्कि यह भी बताती है कि सही पत्रकारिता में न रिश्ता मायने रखता है, न डर—मायने रखता है तो सिर्फ सच्चाई और जनता के हक़ की आवाज़।
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