डॉक्टर डे : जीवनदाता , देवदूत और मानवता के प्रहरी डॉक्टर
किसकी याद में और क्यों मनाया जाता है डॉक्टर दिवस ?
एक जुलाई राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस विशेष
लेखक नरेंद्र शर्मा परवाना -विभूति फीचर्स
हर साल एक जुलाई को भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। यह दिन केवल एक तारीख नहीं, बल्कि एक कृतज्ञ समाज का हृदयस्पर्शी सम्मान है उन चिकित्सकों के प्रति, जो जीवन और मृत्यु के बीच खड़े होकर हर दिन इंसानियत की रक्षा करते हैं। चिकित्सक न केवल रोगों का उपचार करते हैं, बल्कि वे उन आशाओं के रक्षक भी हैं, जो परिवारों की आंखों में झलकती हैं। कोरोना महामारी ने इस पेशे की महत्ता को और भी गहराई से उजागर किया, जब चिकित्सकों ने अपनी जान जोखिम में डालकर लाखों लोगों को जीवनदान दिया। यह दिन हमें उनके समर्पण, बलिदान और मानवता के प्रति उनकी अटूट निष्ठा को याद करने का अवसर देता है।
डॉक्टर दिवस की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि भारत में राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस की शुरुआत सन् 1991 में हुई थी। यह दिन डॉ. बिधान चंद्र रॉय की स्मृति में मनाया जाता है, जो पश्चिम बंगाल के दूसरे मुख्यमंत्री थे, एक उत्कृष्ट चिकित्सक और समाज सुधारक थे। उनकी जन्म और पुण्यतिथि दोनों एक जुलाई को ही पड़ती हैं, जो अपने आप में एक प्रेरक संयोग है। डॉ. रॉय ने चिकित्सा क्षेत्र में अपनी सेवाओं से न केवल मरीजों का जीवन बचाया, बल्कि मेडिकल शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं को मजबूत करने में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके जीवन से प्रेरणा लेकर यह दिन हमें चिकित्सकों के नैतिकता और समर्पण के मूल्यों को याद दिलाता है।
समाज की रीढ़ चिकित्सक
चिकित्सक समाज के वे अनमोल रत्न हैं, जो न केवल बीमारियों का उपचार करते हैं, बल्कि मानवता की सेवा में अपना जीवन समर्पित करते हैं। एक डॉक्टर का काम केवल तकनीकी ज्ञान तक सीमित नहीं है,इसमें धैर्य, करुणा और संवेदनशीलता की भी आवश्यकता होती है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण भारत में एक डॉक्टर जो सीमित संसाधनों में भी मरीजों का इलाज करता है, वह न केवल एक चिकित्सक है, बल्कि एक सामाजिक योद्धा भी है। वहीं, शहरी अस्पतालों में जटिल सर्जरी करने वाले डॉक्टर अपनी विशेषज्ञता से असंभव को संभव बनाते हैं। चाहे वह एक छोटे से क्लिनिक में मरीज को प्राथमिक उपचार देने वाला डॉक्टर हो या बड़े अस्पताल में जीवन रक्षक ऑपरेशन करने वाला विशेषज्ञ, दोनों ही समाज की रीढ़ हैं।
कोरोना काल में चिकित्सकों की भूमिका कोविड महामारी ने चिकित्सकों की भूमिका को एक नए आयाम में प्रस्तुत किया। जब पूरा विश्व ठहर सा गया था, तब चिकित्सक अपनी जान जोखिम में डालकर अस्पतालों में डटे रहे। पीपीई किट पहने, महीनों तक परिवारों से दूर रहकर, और अनगिनत घंटों तक काम करते हुए उन्होंने लाखों लोगों की जान बचाई। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली के एक अस्पताल में डॉ. रितु गर्ग ने लगातार 18 घंटे काम करके सैकड़ों मरीजों को ऑक्सीजन और दवाइयाँ उपलब्ध कराईं, जबकि उनकी खुद की जान खतरे में थी। कई चिकित्सकों ने अपने प्राणों की आहुति दी, जिसने समाज को यह सिखाया कि चिकित्सक केवल पेशेवर नहीं, बल्कि मानवता के सच्चे प्रहरी हैं।
व्यवसायीकरण बनाम मानवता की सेवा आज के दौर में चिकित्सा क्षेत्र में व्यवसायीकरण एक गंभीर चुनौती बनकर उभरा है। कुछ निजी अस्पतालों में मरीजों को अनावश्यक टेस्ट और महंगे इलाज के लिए मजबूर किया जाता है, जिससे इस पवित्र पेशे की गरिमा पर सवाल उठते हैं। फाइव-स्टार अस्पताल, ऊंची सैलरी और लैब में टेस्ट में मुनाफे की चाह ने कुछ मामलों में चिकित्सा को व्यापार बना दिया है। अनेक निजी अस्पतालों में सामान्य बीमारियों के लिए भी लाखों रुपये का बिल थमाया जाता है, जो आम आदमी की पहुँच से बाहर है। यह व्यवसायीकरण चिकित्सकों और मरीजों के बीच विश्वास को कमजोर करता है। हालांकि, इसके बावजूद कई चिकित्सक आज भी मानवता की सेवा को सर्वोपरि मानते हैं। उदाहरण के लिए, डॉ. गोविंद प्रकाश अग्रवाल जैसे चिकित्सक, जिन्होंने अपनी चिकित्सा सेवाओं से हजारों लोगों को नवजीवन दिया, सस्ता और गुणवत्तापूर्ण उपचार किया। चिकित्सा में मानवता और व्यवसाय का संतुलन बनाया। समाज को चाहिए कि वह ऐसे चिकित्सकों को प्रोत्साहित करे और व्यवसायीकरण को नियंत्रित करने के लिए नीतियां बनाएं।
चुनौतियां और भविष्य की राह चिकित्सकों के सामने कई चुनौतियां हैं। अत्यधिक कार्यभार, मरीजों का असंतोष, सरकारी स्वास्थ्य सेवाओं में कमी और बढ़ती चिकित्सकीय हिंसा उनके लिए बड़ा खतरा हैं। हाल के वर्षों में डॉक्टरों पर हमले की घटनाएं बढ़ी हैं, जो न केवल उनके मनोबल को तोड़ती हैं, बल्कि पूरे स्वास्थ्य तंत्र को कमजोर करती हैं। इसके लिए एक सुरक्षित माहौल और कठोर कानूनों की आवश्यकता है। साथ ही, मेडिकल शिक्षा को और अधिक मानवीय और संवेदनशील बनाने की जरूरत है, ताकि भविष्य के चिकित्सक न केवल तकनीकी रूप से कुशल हों, बल्कि मानवता के प्रति भी समर्पित हों। राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस हमें उन अनगिनत चिकित्सकों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का अवसर देता है, जो समाज की सेवा में अपना जीवन समर्पित करते हैं। यह दिन हमें यह भी याद दिलाता है कि चिकित्सकों को केवल धन्यवाद नहीं, बल्कि सम्मान, सुरक्षा और समर्थन की भी आवश्यकता है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि चिकित्सा क्षेत्र में व्यवसायीकरण मानवता की सेवा के सामने बाधा न बने।
महावाक्य
जब विज्ञान में संवेदना जुड़ती है, तब डॉक्टर जन्म लेते हैं, और वही मानवता का सबसे भरोसेमंद प्रहरी होता है। आइए, इस चिकित्सक दिवस पर हम सब मिलकर उनके योगदान को नमन करें और उनके प्रति अपनी जिम्मेदारी को निभाएं।
खबरी प्रशाद के लिए विभूति फीचर से नरेंद्र शर्मा परवाना
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!