‘सुपारी’ के धार्मिक वस्तु से आपराधिक शब्द बनने की कहानी !
“सुपारी” शब्द, जो कभी धार्मिक व सामाजिक परंपराओं का हिस्सा था, हत्या जैसे अपराध से कैसे जुड़ गया ?
इंदौर/शिलॉन्ग – राजा रघुवंशी हत्याकांड में नया मोड़ तब आया जब पत्नी सोनम रघुवंशी पर पति की हत्या की ‘सुपारी’ देने का आरोप लगा। यह मामला सिर्फ एक जघन्य अपराध नहीं, बल्कि एक भाषायी और सांस्कृतिक चर्चा का विषय भी बन गया है—आख़िर “सुपारी” शब्द, जो कभी धार्मिक व सामाजिक परंपराओं का हिस्सा था, हत्या जैसे अपराध से कैसे जुड़ गया?
सोनम और राजा रघुवंशी मेघालय के शिलॉन्ग में हनीमून पर गए थे। वहीं राजा की हत्या हो गई। पुलिस जांच में सामने आया कि इस हत्या के पीछे सोनम की भूमिका हो सकती है। आरोप है कि उसने ही अपने पति की हत्या की सुपारी दी थी। इस एक घटना ने समाज को सोचने पर मजबूर कर दिया है—कभी विवाह, पूजा या मेहमाननवाज़ी में प्रयुक्त होने वाली सुपारी, अब अपराध की भाषा में खून-खराबे का प्रतीक कैसे बन गई?
‘सुपारी’ का ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व
प्राचीन भारतीय परंपराओं में सुपारी को प्रतीकात्मक वस्तु माना जाता था। विवाह संबंध पक्के करने, संधियों के निर्धारण या सामाजिक जिम्मेदारियों को सौंपने के समय सुपारी दी जाती थी—इसका अर्थ होता था: अब यह कार्य आपके जिम्मे है।
समय के साथ यह प्रतीकात्मक चलन अपराध की दुनिया में भी पैठ बना गया। अंडरवर्ल्ड में जब किसी की हत्या की योजना बनाई जाती है, तो आमतौर पर कहा जाता है—”उसकी सुपारी दे दी गई है”, यानी हत्या के लिए सौदा तय हो चुका है।
अंडरवर्ल्ड से जुड़ता ‘सुपारी’ का अर्थ
प्रसिद्ध लेखक एस. हुसैन जैदी ने अपनी किताब “Dongri to Dubai: Six Decades of the Mumbai Mafia” में बताया है कि कैसे माहेमी जनजाति के प्रमुख ‘भीम’ अपने योद्धाओं को कठिन कार्य सौंपते समय सुपारी से भरी थाली सामने रखते थे। जो योद्धा सुपारी या पान उठाता था, उसे कार्य करना होता था। यही परंपरा माफिया कल्चर में रूपांतरित हो गई—पान की सुपारी से मर्डर कॉन्ट्रैक्ट तक।
मराठी संस्कृति और फिल्मों का योगदान
महाराष्ट्र में ‘सुपारी’ शब्द का उपयोग व्यावसायिक कॉन्ट्रैक्ट के संदर्भ में आम है। मुंबई पुलिस के रिटायर्ड एसीपी वसंत ढोबले के अनुसार, मराठी में जब कोई काम पक्का होता है तो कहा जाता है—“कामची सुपारी आली आहे”, यानी “काम का ठेका मिल गया है।” यही भाषा अपराध की दुनिया में प्रवेश कर गई।
बॉलीवुड ने भी इस शब्द के अपराधीकरण को बल दिया। मुंबई और अंडरवर्ल्ड पर आधारित फिल्मों ने ‘सुपारी’ को हिंसा और हत्या से जोड़ते हुए जनमानस में गहराई तक उतार दिया।
भाषा का बदला हुआ चेहरा
यह मामला बताता है कि कैसे एक सांस्कृतिक प्रतीक, भाषा के माध्यम से सामाजिक सोच और अपराध दोनों में शामिल हो जाता है। राजा रघुवंशी की हत्या सिर्फ एक घटना नहीं, बल्कि एक ऐसे शब्द की यात्रा भी है जिसने धर्म से अपराध तक का सफर तय किया है।
अब सवाल यही है—क्या समाज को फिर से शब्दों की असली पहचान और मूल्यों की ओर लौटने की ज़रूरत है?
Leave a Reply
Want to join the discussion?Feel free to contribute!