किसी की आस्था पर भारी पड़ रही उसकी “आह” !
सच्ची घटना पर आधारित है यह नीचे लिखी गई कविताएं , समझने वाले के लिए यह चंद लाइन इशारा बन सकती है , और ना समझ के लिए यह सिर्फ बेकार की लाइन
1 – “जो झूठ बोला लड़के ने”
लड़का बोले झूठ बड़ी शान से,
शादी हो गई फिर अरमान से।
माँ बाप परेशान, पत्नी हैरान,
सपनों का टूटा हर एक जहान।
रिश्तेदार भी आए मनाने,
लड़के को समझाने, राह दिखाने।
पर वो ना माने, दिल है जला,
उसके भी मन में है गहरा गिला।
कहानी बस इतनी आसान नहीं,
उसके दिल की कोई पहचान नहीं।
निजी समस्याएं, बोझ छिपाए,
चेहरे पर हँसी, पर भीतर से हाए।
बीवी चाहे बस प्यार का साथ,
पर वो उलझा समाज की बात।
दबाव है हर ओर से भारी,
कहाँ जाए ये किस्मत की सवारी?
समझ न सके कोई उसकी पीर,
जीवन बना जैसे कोई तीर।
राह दिखाओ, पर प्यार से अब,
झूठ से ना बंधे रिश्तों का सबब।
शायद समझे, वक्त लगे,
दिल का सच्चा दरवाज़ा खुले।
सच को अपनाए, रिश्ता सजे,
नई सुबह संग विश्वास जगे।
2nd अगर उठाया कुछ ऐसा वैसा कदम तो ….
झूठ पे झूठ वो लड़का बोले,
माँ-बाप भी साथ खड़े हैं।
पहली शादी हो चुकी फिर भी,
इज्ज़त से आँखें मोडे हैं।
माँ-बाप का धन किया बर्बाद,
सब कुछ जानते हुए भी चुप रहे।
फिर करवाई दूसरी शादी,
पर लड़के की फितरत न बदले।
दूज़ी लड़की की ज़िंदगी भी कर रहा तबाह लड़का ,
फिर भी सब उसे मनाने में लगे हैं।
कोई भी नहीं ले रहा सख्त फ़ैसला,
माँ-बाप भी अंदर ही अंदर साथ खड़े हैं।
उधर फिर एक बार लड़के का साथ,
इधर लड़की बेचारी करे आह ।
ना भाई, ना भाभी दे रहे सहारा,
बोझ सी लगने लगी हैं लड़की को राह ।
गलत कदम उठाया अगर उसने,
तो लेने के देने पड़ जाएंगे।
लड़के और उसके माँ-बाप ,
सच में बहुत पछताएंगे।
अभी भी समय है, सुधर जाओ,
वरना फिर मत कहना —
“पहले बताया नहीं था…”
“पहले बताया नहीं था…”
3rd – “आह की आवाज़“
किसी की भी आह होती है भारी,
जब भर उठे कमज़ोर नारी।
ना कोई साथ, ना सहारा कहीं,
ईश्वर भी कभी सुनता नहीं।
अपने आप से करे सवाल,
“क्या करूँ मैं अब?”—बिन हल, बेहाल।
रास्ते सब लगें अनजाने,
सही राह दिखाए कौन , वो भी कोई ना जाने।
सखी, साजन, परिवारी जन,
करें बातें—कुछ सच्ची, कुछ बनावटी मन।
पर कोई भी न समझे मन की पीर,
उस नारी की चुप्पी का , ना हो जज़्बातों में असर ग़मगीर।
वो चाहे एक सजीव संसार,
चाहे अपनापन, प्रेम-आधार।
मगर उसका साथी बना अनजान,
दे दोष क़िस्मत को, खुद बेज़ुबान
कहती वो—“कब तक यूं रोओगे?
चलो, साथ चलें, नसीब को मोड़ेंगे।”
मगर वो अड़ा है, निशब्द खड़ा,
क्योंकि उसका परिवार उसके साथ खड़ा है।
बस, यहीं से शुरू होती है वो आह की कहानी,
जितना समझ सका , उतनी की है बयानी।
कभी-कभी आहें तोड़ देती हैं आस्था,
और आँसू कह जाते हैं जीवन की व्यथा।
जब गिरते हैं आँसू अबला नारी के,
समझो, वो केवल अश्रु नहीं—एक पुकार है आंतरिक भारी।
हर दर्द ऊपर से ईश्वर नहीं देता,
कभी-कभी एक नारी का रोना भी पीड़ा बन जाता है।
4-लड़की अब “रामचरितमानस की राह पर”
लड़की अब चल पड़ी है रामचरितमानस की राह,
जहाँ निष्ठा है, संयम है, और जीवन की सच्ची चाह।
जैसे रामचन्द्र जी ने जब सहन की सीमा पार की,
तो क्रोधित हो तीर चढ़ा, समुंदर से भी बात की।
“विनय न मानत जलधि जड़, गए तीन दिन बीत,
बोले राम सपूत बिन, प्रीति न होत समीप।”
प्यार से समझाया हमने, दिन बीते कई सारे,
अब वक्त है कठोर बन, दिखाने कुछ इशारे।
जब घी सीधी उंगली से न निकले किसी हाल,
तो टेढ़ी करनी पड़ती है उंगली, ये है समय का चाल।
रामचरितमानस बन गया अब उसकी शक्ति का सार,
शब्दों की मर्यादा में ढल रहा उसका विचार।
शायद बदल जाए ज़िंदगी, बन जाए नई कहानी,
जहाँ फिर से खिल उठे, एक नारी की जुबानी।
अब उसका हर क़दम कहे, मैं धर्म की राह चली,
जो खो गया था खुद में कहीं, वो चेतना फिर से जगी।
अगर कोई समझे… तो।
रीतेश माहेश्वरी चंडीगढ़
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